हर अस्पताल में क्यों न हो एक पुस्तकालय ! 

By पंकज चतुर्वेदी | Updated: September 25, 2025 07:41 IST2025-09-25T07:39:35+5:302025-09-25T07:41:36+5:30

इसी को देखकर दिल्ली में भी छतरपुर स्थित राधास्वामी सत्संग में बनाए गए विश्व के सबसे बड़े क्वारंटीन सेंटर में हजारों पुस्तकों के साथ लाइब्रेरी शुरू  करने की पहल की गई थी

Why shouldn't every hospital have a library | हर अस्पताल में क्यों न हो एक पुस्तकालय ! 

हर अस्पताल में क्यों न हो एक पुस्तकालय ! 

तमिलनाडु के तिरुची के महात्मा गांधी मेमोरियल शासकीय चिकित्सालय के एक उपेक्षित पड़े कोने में  पुस्तकालय क्या शुरू हुआ, मरीज ही नहीं उनके साथ आने वाले तीमारदारों को भी एक ऐसा स्थान मिल गया जहां उन्हें सुकून, ज्ञान  और समय बिताने का बेहतर साधन मिल गया है. अभी वहां कुछ किताबें हैं और अंग्रेजी और तमिल के पांच अखबार और कुछ पत्रिकाएं उपलब्ध हैं. काम के बोझ से तनावग्रस्त कर्मचारी भी धीरे-धीरे इस तरफ आकर्षित हो रहे हैं. यह बात कोविड  के दौरान  प्रमाणित हो चुकी थी कि यदि अस्पतालों में भर्ती मरीजों को  मनोरंजक किताबें दी जाती हैं तो उनके ठीक होने की गति बढ़ जाती है.

कोविड की दूसरी लहर के दौरान दिल्ली से सटे गाजियाबाद में कोरोना के लक्षण वाले मरीजों को जब एकांतवास या क्वारंटीन में रखा जाता तो वह उनके लिए किसी सजा की तरह था. मरीज भय और भ्रम के चलते बदहवास से थे. आए दिन एकांतवास केंद्रों से मरीजों के झगड़े या तनाव की खबरें आ रही थीं. तभी जिला प्रशासन ने नेशनल बुक ट्रस्ट के सहयोग से कोई 200 बच्चों की पुस्तकें वहां वितरित कर दीं.

उस समय 65 महिलाओं सहित लगभग 250 लोग कोविड-19 के सामान्य लक्षण या एहतियात के तौर पर एकांतवास शिविर में थे. रंगबिरंगी पुस्तकों ने कुछ ही दिन में उनके दिल में जगह बना ली. जहां एक-एक पल बिताना मुश्किल हो रहा था, उनका समय पंख लगाकर उड़ गया. डॉक्टर्स ने भी माना कि पुस्तकों ने क्वारंटीन किए गए लोगों को तनावरहित बनाया. इससे उनके स्वस्थ्य होने की गति भी बढ़ी. इसी को देखकर दिल्ली में भी छतरपुर स्थित राधास्वामी सत्संग में बनाए गए विश्व के सबसे बड़े क्वारंटीन सेंटर में हजारों पुस्तकों के साथ लाइब्रेरी शुरू  करने की पहल की गई थी. वहां भर्ती  मरीजों की रिकवरी जल्दी हुई और वे स्वस्थ व प्रसन्न दिखे.

यह कड़वा सच है कि भारत में अस्पतालों में भीड़ और अव्यवस्था का बड़ा कारण दूरदराज से आए मरीजों के साथ आए तीमारदार होते हैं. मरीज तो भीतर बिस्तर पर चिकित्साकर्मियों की निगरानी में होता है, जबकि तीमारदार बाहर खुले में बैठे, प्रतीक्षा कक्ष में मोबाइल फोन पर व्यस्त या फिर ऐसे ही किसी गैरजरूरी काम में समय काटते हैं. ऐसे लोग न केवल खुद मानसिक रूप से थकते और अव्यवस्थित हो जाते हैं बल्कि तंत्र के लिए भी दिक्कतें खड़ी करते हैं. तिरुची के अस्पताल के पुस्तकालय में ऐसे लोगों को सकारात्मक बनाए रखने का हल खोज लिया गया.

वैसे दुनिया के विकसित देशों के अस्पतालों में पुस्तकालय की व्यवस्था का अतीत सौ साल से भी पुराना है. अमेरिका में 1917 में सेना के अस्पतालों में कोई 170 पुस्तकालय स्थापित कर दिए गए थे. ब्रिटेन में सन्‌ 1919 में वार लाइब्रेरी की शुरुआत हुई. आज अधिकांश यूरोपीय देशों  के अस्पतालों में मरीजों को व्यस्त रखने, उन्हें ठीक होने का भरोसा देने के लिए उन्हें ऐसी पुस्तकें प्रदान करने की व्यवस्था है. देश के सभी जिला अस्पतालों, मेडिकल कालेज और बड़े समूह के निजी अस्पतालों में हिंदी, अंग्रेजी और स्थानीय भाषा की कुछ सौ अच्छी पुस्तकें रखी जाएं तो यह नए तरीके का पुस्तकालय अभियान बन सकता है.

Web Title: Why shouldn't every hospital have a library

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