लम्पी स्किन बीमारी से राजस्थान-गुजरात में हजारों पशुओं की मौत, कैसी है ये बीमारी और क्या है बचाव?

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Updated: August 10, 2022 12:17 IST2022-08-10T12:17:52+5:302022-08-10T12:17:52+5:30

लम्पी स्किन बीमारी मवेशियों का एक वायरल संक्रमण है. मूल रूप से अफ्रीका में पाया जाता है, लेकिन अब यह मध्य पूर्व, एशिया और पूर्वी यूरोप के देशों में भी फैल गया है.

What is lumpy skin disease in cattle, More than three thousand animals died, know all details and prevention | लम्पी स्किन बीमारी से राजस्थान-गुजरात में हजारों पशुओं की मौत, कैसी है ये बीमारी और क्या है बचाव?

पशुओं में फैलती लम्पी स्किन बीमारी (फाइल फोटो)

सत्यवान ‘सौरभ’

ढेलेदार त्वचा रोग एक वायरल बीमारी है जो मवेशियों और भैंसों में लंबे समय तक रुग्णता का कारण बनती है़  ये रोग पॉक्स वायरस लम्पी स्किन डिजीज वायरस (एलएसडीवी) के कारण होता है. यह पूरे शरीर में दो से पांच सेंटीमीटर व्यास की गांठों के रूप में प्रकट होता है, विशेष रूप से सिर, गर्दन, अंगों, थन (मवेशियों की स्तन ग्रंथि) और जननांगों के आसपास. गांठें धीरे-धीरे बड़े और गहरे घावों की तरह खुल जाती हैं. 

इस साल ये रोग अप्रैल-मई में पाकिस्तान में फैला तो अब बीते कुछ सप्ताह में ये हमारे देश में राजस्थान व गुजरात में तीन हजार से अधिक व पंजाब में चार सौ से अधिक पशुओं की मौत का कारण बना है. 2019 के विपरीत, जब एलएसडी के बांग्लादेश से भारत में प्रवेश करने और मध्य और दक्षिणी भारत में फैलने का संदेह था, इस बार के प्रकोप का स्रोत पाकिस्तान में माना जाता है.

ढेलेदार त्वचा रोग मवेशियों का एक वायरल संक्रमण है. मूल रूप से अफ्रीका में पाया जाता है, लेकिन अब यह मध्य पूर्व, एशिया और पूर्वी यूरोप के देशों में भी फैल गया है. लंपी स्किन रोग के कारण पशुओं की खाल पर गिल्टियां बनने और तेज बुखार आने से उनकी मौत हो रही है. कमजोर पशु इस बीमारी की ज्यादा चपेट में आ रहे हैं. 

इस रोग से पीड़ित पशुओं में तेज बुखार आता है. ऐसे पशुओं की चमड़ी में गिल्टियां बनती हैं. ढेलेदार त्वचा रोग के हालिया भौगोलिक प्रसार ने अंतरराष्ट्रीय चिंता का कारण बना दिया है. इस साल ये रोग अप्रैल-मई में पाकिस्तान में फैला तो अब बीते कुछ सप्ताह में ये हमारे देश में राजस्थान व गुजरात में है.  

मवेशियों की विदेशी नस्लें जैसे जर्सी, देशी नस्लों की तुलना में कम प्रतिरक्षा के कारण एलएसडी के प्रति अधिक संवेदनशील होती हैं. हालांकि भैंस कम प्रभावित होती हैं क्योंकि उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता बेहतर होती है. अब तक मनुष्यों या यहां तक कि बकरी और भेड़ों में एलएसडीवी के हस्तांतरण का कोई मामला सामने नहीं आया है. 

संक्रमित जानवरों द्वारा उत्पादित दूध को भी मानव उपभोग के लिए सुरक्षित माना जाता है, जब तक कि इसे उबालकर या उपभोग से पहले पाश्चुरीकृत किया जाता है. बरसात के मौसम के साथ इसके चल रहे प्रकोप मेल खाते हैं जब मच्छरों का प्रजनन बड़े पैमाने पर होता है और जानवर तनाव में रहते हैं. दफनाने की कोई नीति नहीं होने से एलएसडी से मरने वाले मवेशियों के शव राजस्थान में कई स्थानों पर पड़े पाए गए हैं, जिससे संक्रमण फैलने की आशंका बढ़ गई है.

एलएसडीवी के खिलाफ पर्याप्त सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए, अतिसंवेदनशील वयस्क मवेशियों को सालाना टीका लगाया जाना चाहिए. लगभग 50 प्रतिशत मवेशियों में टीकाकरण के स्थान पर सूजन (10–20 मिलीमीटर (1⁄2–3⁄4 इंच व्यास) विकसित हो जाती है. यह सूजन कुछ ही हफ्तों में गायब हो जाती है. अधिकांश मवेशी प्राकृतिक संक्रमण से उबरने के बाद आजीवन प्रतिरक्षा विकसित करते हैं. 

इसके अतिरिक्त प्रतिरक्षा गायों के बछड़े मातृ एंटीबॉडी प्राप्त करते हैं और लगभग 6 महीने की उम्र तक नैदानिक रोग के लिए प्रतिरोधी होते हैं. अतिसंवेदनशील गायों से पैदा हुए बछड़े भी अतिसंवेदनशील होते हैं और उन्हें टीका लगाया जाना चाहिए. इन बीमारियों के खिलाफ टीकाकरण भारत के पशुधन स्वास्थ्य और रोग नियंत्रण कार्यक्रम के अंतर्गत आता है. 

गांठदार त्वचा रोग के उपचार के लिए कोई विशिष्ट एंटीवायरल दवाएं उपलब्ध नहीं हैं. उपलब्ध एकमात्र उपचार मवेशियों की सहायक देखभाल है. इसमें घाव देखभाल स्प्रे का उपयोग करके त्वचा के घावों का उपचार और द्वितीयक त्वचा संक्रमण और निमोनिया को रोकने के लिए एंटीबायोटिक दवाओं का उपयोग शामिल हो सकता है. प्रभावित जानवरों की भूख को बनाए रखने के लिए निवारक दवाओं का उपयोग किया जा सकता है.

Web Title: What is lumpy skin disease in cattle, More than three thousand animals died, know all details and prevention

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