नवीन जैन का ब्लॉग: कुपोषण से बौने होते बच्चे
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: November 3, 2018 09:31 PM2018-11-03T21:31:04+5:302018-11-03T21:31:04+5:30
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण की हाल ही में आई रिपोर्ट में इस बात का खुलासा हुआ है कि बिहार के शून्य से पांच साल तक के 48़ 3 फीसदी बच्चे कुपोषण की वजह से बौनेपन का शिकार हैं।
(नवीन जैन)
इसमें कोई शक नहीं कि भारत ने कुछ ही वर्षो में विभिन्न क्षेत्रों में बहुत प्रगति की है और वह विश्वशक्ति बनने की ओर तेजी से आगे बढ़ रहा है, लेकिन कुछ जमीनी सच्चाइयां ऐसी हैं जो इस प्रगति का मुंह चिढ़ाती हैं। इनमें सबसे ऊपर नाम आता है कुपोषण का।
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण की हाल ही में आई रिपोर्ट में इस बात का खुलासा हुआ है कि बिहार के शून्य से पांच साल तक के 48़ 3 फीसदी बच्चे कुपोषण की वजह से बौनेपन का शिकार हैं। इस पूरे राज्य के 38 जिलों में से 23 जिलों के बच्चों की स्थिति गंभीर बनी हुई है। इसी तरह मध्य प्रदेश में भी कुपोषण की स्थिति चिंताजनक है। इस प्रांत में तकरीबन 43 लाख बच्चे कुपोषण का शिकार हैं। आयु के अनुपात में कम लंबाई वाले दुनिया के हर दस बच्चों में से तीन भारत के होते हैं।
गौरतलब है कि भारत में पांच वर्ष से कम आयु के 21 फीसदी बच्चे कुपोषण की गिरफ्त में हैं। देश में बाल कुपोषण 1998-2000 के बीच 17।1 फीसदी था जो 2012-16 के बीच बढ़कर 21 फीसदी हो गया। कहा तो यहां तक जाता है कि पड़ोसी देश श्रीलंका और चीन का रिकॉर्ड इस मामले में भारत से बेहतर है जहां क्रमश: 15 फीसदी तथा 9 फीसदी बच्चे कुपोषण तथा अवरुद्ध विकास से पीड़ित हैं। हमारे देश की 33़।6 फीसदी महिलाएं गंभीर रूप से कुपोषण तथा 55 फीसदी एनीमिया की शिकार हैं। ऐसे में जब ये महिलाएं कम उम्र में मां बनती हैं तो इनके शिशुओं पर जान का खतरा मंडराता रहता है।
सामान्यत: तीन साल के लड़के की लंबाई 94़ 9 सेंटीमीटर तथा लड़की की लंबाई 93 सेंटीमीटर होनी चाहिए लेकिन सर्वेक्षण में लड़कों की लंबाई 89 सेंटीमीटर तथा लड़कियों की लंबाई 88 सेंटीमीटर पाई गई।
विटामिन, पोषक तत्वों और ऊर्जा के अंतर्ग्रहण की गंभीर कमी को भुखमरी कहते हैं। अधिक समय तक भुखमरी के कारण शरीर के कुछ अंग स्थायी रूप से नष्ट हो सकते हैं। बच्चे मरते तो कुपोषण से हैं लेकिन लोगों को लगता है कि उनकी मौत बीमारियों के कारण हो रही है। साथ ही गर्भवती महिलाओं को उचित पोषक तत्व युक्त भोजन न मिल पाना बच्चों की मृत्यु का मुख्य कारण है। इस भयावह स्थिति से बचने के लिए अभिभावकों को जागरूक करने के अलावा आंगनवाड़ी केंद्रों को मॉडल बनाते हुए उनमें शौचालय तथा शुद्ध पानी के लिए भी व्यवस्था होनी चाहिए। सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली को सुदृढ़ बनाए जाने के अलावा स्वास्थ्य कर्मियों का प्रशिक्षित होना भी जरूरी है।