प्रकृति पर जीत हासिल करने की सनक में जिंदगी का सत्यानाश!, भविष्यवक्ता रे कुर्जवील का दावा-वर्ष 2030 से इंसानों की मौत बंद

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: August 6, 2025 05:25 IST2025-08-06T05:25:25+5:302025-08-06T05:25:25+5:30

सिद्धांत बताता है कि समय के साथ, इन अनुकूलित जीवों के लक्षण अगली पीढ़ियों में हस्तांतरित होते हैं, जिससे प्रजातियों का क्रमिक विकास होता है.

Destruction life in craze win over nature Prophet Ray Kurzweil claims human deaths stop year 2030 blog Hemdhar Sharma | प्रकृति पर जीत हासिल करने की सनक में जिंदगी का सत्यानाश!, भविष्यवक्ता रे कुर्जवील का दावा-वर्ष 2030 से इंसानों की मौत बंद

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Highlightsरे कुर्जवील की 147 भविष्यवाणियों में से अब तक 86 प्रतिशत सही साबित हो चुकी हैं.हैरतअंगेज तरक्की को देखते हुए इस भविष्यवाणी को हल्के में नहीं लिया जा सकता.सैकड़ों वर्ष, हजारों वर्ष, लाखों वर्ष या अनंतकाल तक?

हेमधर शर्मा

मशहूर कम्प्यूटर वैज्ञानिक और भविष्यवक्ता रे कुर्जवील ने एक सनसनीखेज दावा किया है कि आज से पांच साल बाद अर्थात वर्ष 2030 से इंसानों की मौत बंद हो जाएगी, यानी हम अमर हो जाएंगे! हो सकता है अभी हमें यह दावा अविश्वसनीय लगे, लेकिन ध्यान रखना होगा कि रे कुर्जवील की 147 भविष्यवाणियों में से अब तक 86 प्रतिशत सही साबित हो चुकी हैं.

तकनीकी विकास की हैरतअंगेज तरक्की को देखते हुए उनकी इस भविष्यवाणी को हल्के में नहीं लिया जा सकता. रे ने अपनी किताब ‘द सिंगुलैरिटी इज नियर’ में लिखा है कि 2030 तक तकनीक इतनी आगे बढ़ जाएगी कि इंसान हमेशा जीवित रह सकता है. कुर्जवील के अनुसार, नैनोटेक्नोलॉजी और रोबोटिक्स के मेल से शरीर में नैनोबोट्स डाले जाएंगे.

ये नैनोबोट्स हमारे शरीर की डैमेज सेल्स व टिशूज को ठीक करते रहेंगे, जिससे उम्र बढ़ने की प्रक्रिया रोक दी जाएगी और कई बीमारियों से प्राकृतिक रूप से बचाव हो सकेगा. अमर होने की मानवीय आकांक्षा कोई नई बात नहीं है. अमृत पाने के लिए देवताओं और दैत्यों द्वारा मिलकर समुद्र मंथन किए जाने की पौराणिक कथा जग-प्रसिद्ध है.

सौभाग्य से ऐसे किसी अमृत की खोज अभी तक हो नहीं पाई है. ‘सौभाग्य’ इसलिए क्योंकि शारीरिक अमरता के दुष्परिणामों पर शायद हमने अभी तक विचार नहीं किया है. करीब एक सदी पहले ब्रिटिश दार्शनिकों- हरबर्ट स्पेंसर और चार्ल्स डार्विन ने ‘सर्वाइवल ऑफ द फिटेस्ट’ अर्थात योग्यतम की उत्तरजीविता का सिद्धांत प्रतिपादित किया था.

इसके अनुसार जो जीव अपने पर्यावरण के लिए सबसे अच्छी तरह अनुकूलित होते हैं, उनके जीवित रहने और अपना वंश आगे बढ़ाने की संभावना अधिक होती है. यह सिद्धांत बताता है कि समय के साथ, इन अनुकूलित जीवों के लक्षण अगली पीढ़ियों में हस्तांतरित होते हैं, जिससे प्रजातियों का क्रमिक विकास होता है.

जाहिर है कि हम इंसान आज जो कुछ भी हैं, वह लाखों-करोड़ों वर्षों के क्रमिक विकास का नतीजा है. बकौल कुर्जवील, अगर हम अमर होने में सफल हो गए तो भविष्य में क्या हमारे विकास की यह प्रक्रिया जारी रह पाएगी? और हमारे अमर होने की मियाद क्या होगी...सैकड़ों वर्ष, हजारों वर्ष, लाखों वर्ष या अनंतकाल तक?

दिन के बारह घंटों में ही अपनी दिनचर्या से हम इतना थक जाते हैं कि अगर रात का विश्राम न मिले तो शायद कुछ ही दिनों में बीमार पड़ जाएं. इसी तरह मृत्यु भी क्या एक नई शुरुआत करने के लिए लंबे विश्राम की तरह नहीं होती होगी! जवानी के दिनों में हम भले ही लंबी उम्र की कामना करें लेकिन बुढ़ापे का लंबा होना अभिशाप बन जाता है.

तो क्या एक अमर दुनिया में सारे जवान लोग ही रहेंगे, बच्चों की किलकारियां नहीं गूंजेंगी? और बच्चे अगर पैदा होते रहे लेकिन मृत्यु किसी की न हो तो यह धरती कितनी जनसंख्या का बोझ संभाल पाएगी?हकीकत तो यह है कि हम कितनी भी कोशिश कर लें, मृत्यु को आने से अनंत काल तक नहीं रोक सकते, जन्म लेने के साथ ही उसका आना तय हो जाता है.

हां, जीवन को थोड़ा लंबा जरूर कर सकते हैं. लेकिन यह भी हमने प्राकृतिक की बजाय अगर कृत्रिम तरीके से किया तो अपने बुढ़ापे को शायद इतना नारकीय बना लेंगे, जिसकी आज कल्पना भी नहीं कर सकते. धरती पर जीवन की शुरुआत के बाद से ही प्रकृति ने अरबों वर्षों के क्रमिक विकास के जरिये हमारा आज का रूप गढ़ा है.

दुर्भाग्य से आज हम कृत्रिम विकास के जरिये उसी पर जीत हासिल करने को अपनी उपलब्धि समझने लगे हैं, लेकिन हमारी सर्वोत्तम भलाई किसमें है, यह सिर्फ प्रकृति ही शायद अच्छी तरह से जानती है. फिर हम उस पर जीत हासिल करने की सनक को छोड़, उससे सामंजस्य बनाकर क्यों नहीं रह सकते?  

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