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Delhi Pollution: नीति-नियंताओं के लिए प्रदूषण कब बनेगा गंभीर मुद्दा? 

By योगेश कुमार गोयल | Updated: November 24, 2024 11:55 IST

Delhi Pollution:  वातावरण में कण प्रदूषण (पीएम) की मात्रा बहुत ज्यादा होने के कारण स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरे बढ़ जाते हैं.

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ठळक मुद्देविशेषज्ञों के मुताबिक अभी अगले कुछ दिनों तक ऐसी स्थिति बनी रह सकती है.हवा में घुले इस जहर के कारण लोगों को न केवल सांस लेना मुश्किल होता है.पार्टिकुलेट मैटर (पीएम) वातावरण में मौजूद ठोस कणों और तरल बूंदों का मिश्रण होता है.

Delhi Pollution:  पिछले कुछ दिनों से दिल्ली सहित देश के कुछ इलाकों में वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) 400 के पार है. इस तरह की वायु गुणवत्ता को सेहत के लिए कई प्रकार से बेहद खतरनाक माना जाता है. दरअसल वायु प्रदूषण को लेकर हर साल की यही कहानी है. इस वर्ष अक्तूबर महीने से ही वायु प्रदूषण को लेकर स्थिति विकराल बनी हुई है और दिल्ली में तो इन दिनों एक प्रकार से सांसों का आपातकाल सा दिखाई दे रहा है, जहां चारों ओर स्मॉग की चादर छाई दिखती है. स्मॉग की यह चादर कितनी खतरनाक है, इसका अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि सूर्य की तेज किरणें भी इस चादर को पूरी तरह नहीं भेद पातीं. विशेषज्ञों के मुताबिक अभी अगले कुछ दिनों तक ऐसी स्थिति बनी रह सकती है.

हवा में घुले इस जहर के कारण लोगों को न केवल सांस लेना मुश्किल होता है बल्कि अन्य खतरनाक बीमारियों का खतरा भी बढ़ रहा है. पिछले कई वर्षों से दिल्ली दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों में से एक बनी हुई है. यह कोई एक दिन या चंद दिनों की ही कहानी नहीं है बल्कि आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार 2022 में तो दिल्ली की हवा सालभर में केवल 68 दिन ही बेहतर अथवा संतोषजनक रही थी.

2023 में भी स्थिति बहुत संतोषजनक नहीं रही और इस वर्ष भी हालात बदतर रहे हैं. लोगों की सांसों पर वायु प्रदूषण का खतरा इतना खतरनाक होता जा रहा है कि वैज्ञानिक अब दिल्ली में साल-दर-साल बढ़ते प्रदूषण के कारण बढ़ रहे स्वास्थ्य संबंधी गंभीर दुष्प्रभावों को लेकर चिंता जताने लगे हैं.

विभिन्न अध्ययनों में यह भी सामने आ चुका है कि वायु प्रदूषण के कारण दिल्ली में रहने वाले अपने जीवन के औसतन 12 वर्ष खो देते हैं लेकिन बेहद हैरान-परेशान करने वाली स्थिति यह है कि हमारे नीति-नियंताओं के लिए यह कभी भी गंभीर मुद्दा नहीं बनता. सर्दियों में कोहरे के कारण स्मॉग की मौजूदगी ज्यादा पता चलती है.

दरअसल मौसम में बदलाव के साथ वायु प्रदूषण का प्रभाव कई गुना ज्यादा बढ़ जाने का सबसे बड़ा कारण यही होता है कि ठंड के मौसम में प्रदूषण के भारी कण ऊपर नहीं उठ पाते और वायुमंडल में ही मौजूद रहते हैं, जिस कारण स्मॉग जैसे हालात बनते हैं. चूंकि इस मौसम में तापमान में और गिरावट आने की संभावना है और ऐसी स्थिति में प्रदूषण की स्थिति और गंभीर हो सकती है, वातावरण में कण प्रदूषण (पीएम) की मात्रा बहुत ज्यादा होने के कारण स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरे बढ़ जाते हैं.

पार्टिकुलेट मैटर (पीएम) वातावरण में मौजूद ठोस कणों और तरल बूंदों का मिश्रण होता है. हवा में मौजूद कण सूक्ष्म होते हैं, जिन्हें नग्न आंखों से नहीं बल्कि केवल इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोप का उपयोग करके ही देखा जा सकता है. कण प्रदूषण में पीएम 2.5 और पीएम 10 शामिल होते हैं, जो बहुत खतरनाक होते हैं.

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