अवधेश कुमार का ब्लॉग: जीवनदायी रक्त जानलेवा न बने

By अवधेश कुमार | Published: April 8, 2019 09:29 AM2019-04-08T09:29:56+5:302019-04-08T09:29:56+5:30

निष्कर्ष यह कि रक्तदान के पूर्व मरीज की तथा रक्तदान के बाद रक्त की सभी संबंधित जांच सख्ती से हो जाए तभी डॉक्टर उसे सुरक्षित होने का प्रमाणपत्न दें. दूसरे, उनको ठीक तापमान पर इस तरह संरक्षित किया जाए जहां संक्रमण की संभावना बिल्कुल नहीं हो.

Awadhesh Kumar blog: life-saving blood did not become dead | अवधेश कुमार का ब्लॉग: जीवनदायी रक्त जानलेवा न बने

अवधेश कुमार का ब्लॉग: जीवनदायी रक्त जानलेवा न बने

इस समय तमिलनाडु के सरकारी अस्पतालों में पिछले चार महीने में दूषित, मृत या निर्धारित समयावधि पार कर चुके खून चढ़ाने से 15 महिलाओं की दुखद मृत्यु की खबर सुर्खियों में है. ये महिलाएं या तो गर्भवती थीं या उन्हें बच्चा जनने के दौरान ज्यादा रक्तस्राव के बाद  रक्त चढ़ाया गया था.

डॉक्टरों और अधिकारियों की एक टीम द्वारा कई ब्लड बैंकों की जांच करने पर पाया गया है कि रक्तदान संबंधी जांच तथा उनको सुरक्षित रखने के लिए निर्धारित मानकों का उल्लंघन हो रहा है. डॉक्टरों और अधिकारियों ने बिना रक्त जांच रिपोर्ट देखे ही सुरक्षित होने का प्रमाणपत्न दे दिया.

परिणामत: शरीर में जाते ही वे रक्त जानलेवा बनते गए. शायद यह मामला भी सामने नहीं आता लेकिन बार-बार जब कुछ गर्भवती महिलाओं की हालत रक्त चढ़ाने के बाद बिगड़ी और तमाम कोशिशों के बावजूद वे नहीं बच सकीं तो उपचार कर रहे डॉक्टरों का माथा ठनका. उन्होंने ऐसी सारी मौतों का अंकेक्षण कराने की अनुशंसा की. अंकेक्षण में मृत्यु के सारे कारणों की समीक्षा होती है, जिनमें उपचार का पूर्ण विवरण तथा उन ब्लड बैंकों की जांच शामिल है जहां से रक्त लाए गए थे. 

वस्तुत: किन्हीं कारणों से खराब हो चुके या दूषित-संक्रमित रक्त चढ़ाने से मरीजों की मृत्यु या रोगग्रस्त हो जाने की घटनाएं आती रहती हैं. कुछ मामलों में जांच के बाद दोषी अधिकारियों-कर्मचारियों के खिलाफ कार्रवाई होती है, सरकारी ब्लड बैंकों की कमियों को दूर करने के कदम उठाए जाने तथा प्राइवेट को बंद करने तक की सूचनाएं आती हैं, पर फिर कुछ अंतराल पर ऐसी ही घटना अन्यत्न घटित हो जाती है. 

रक्त चढ़ाने से न जाने कितने मरीजों को मौत के मुंह से बाहर निकाला जाता है. मेडिकल विज्ञान की प्रगति ने रक्तदान और उसे मरीजों को दिए जाने की प्रक्रि या को सुलभ बना दिया है इसलिए यह कहना तो कतई उचित नहीं है कि रक्त चढ़ाना हमेशा जोखिम भरा है. उपरोक्त अध्ययन रिपोर्ट को भी देखें तो कुल रक्त में से करीब चार प्रतिशत ही संक्रमित थे. यानी 96 प्रतिशत खून बिल्कुल सुरक्षित थे. तो दूषित रक्त की संख्या बड़ी नहीं है, पर इसका पकड़ में नहीं आना खतरनाक है.

निष्कर्ष यह कि रक्तदान के पूर्व मरीज की तथा रक्तदान के बाद रक्त की सभी संबंधित जांच सख्ती से हो जाए तभी डॉक्टर उसे सुरक्षित होने का प्रमाणपत्न दें. दूसरे, उनको ठीक तापमान पर इस तरह संरक्षित किया जाए जहां संक्रमण की संभावना बिल्कुल नहीं हो. ब्लड बैंकों में सारी जांच तथा उनके रखरखाव के मानकों का पालन हो रहा है या नहीं इसकी निगरानी की पुख्ता व्यवस्था होना आवश्यक है. 

Web Title: Awadhesh Kumar blog: life-saving blood did not become dead

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