तमाम विश्लेषकों का मत है कि आने वाले समय में भारत की अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ बनाने के लिए सबसे महत्वपूर्ण विषय शिक्षा का है. आने वाला समय नई तकनीकों के सृजन का होगा. यदि हमारे युवा नई तकनीकों की खोज कर सकेंगे तो भारत आगे बढ़ेगा अन्यथा हम पिछड़ते जाएंगे. हमारे युवाओं को इस दिशा में प्रेरित करने के लिए प्राथमिक शिक्षा में सुधार सबसे महत्वपूर्ण है. वहीं पर युवाओं की नींव रखी जाती है. लेकिन यहीं हालत खस्ता है. विद्यार्थियों की रुचि पढ़ने की नहीं है क्योंकि उनकी दृष्टि केवल हाईस्कूल का सर्टिफिकेट हासिल करने की होती है जिससे वे सरकारी नौकरी का आवेदन भर सकें. अध्यापकों की भी पढ़ाने की रुचि नहीं होती है क्योंकि उनकी सेवाएं सुरक्षित रहती हैं और उनके संगठनों के राजनीतिक दबाव में कोई भी सरकार सख्त कदम उठाने को तैयार नहीं है.
कुछ समय पहले मुङो फैजाबाद के सरकारी इंटर कॉलेज में जाने का अवसर मिला जहां से मैंने शिक्षा पाई थी. साठ के दशक में वह विद्यालय जिले का सर्वश्रेष्ठ विद्यालय था. हमारे अध्यापक मनोयोग से पढ़ाते थे. वर्तमान में देखा कि छात्न केवल मध्याह्न् तक कक्षा में आते थे जिससे कि वे मध्याह्न् भोजन प्राप्त कर सकें. इसके बाद वे और अध्यापक दोनों ही विद्यालय छोड़कर चले जाते थे और टय़ूटोरियल में वही छात्न उन्हीं शिक्षकों से बाहर बड़ी ऊंची रकम देकर शिक्षा प्राप्त करते थे. अर्थ हुआ कि अध्यापक पढ़ाने में सक्षम हैं लेकिन विद्यालय में पढ़ाने में उनकी रुचि नहीं है. और, चूंकि वे विद्यालय में नहीं पढ़ाते हैं इसलिए छात्न टय़ूटोरियल में उन्हीं से पढ़ने को मजबूर होते हैं. और भी विशेष यह कि इन सरकारी अध्यापकों का वेतन लगभग पचास हजार प्रति माह है. जबकि समकक्ष निजी विद्यालयों में शिक्षकों का वेतन दस हजार रुपए मात्न है. फिर भी निजी विद्यालयों के रिजल्ट सरकारी विद्यालयों की तुलना में उत्तम हैं जो बताते हैं कि मूल परेशानी है कि सरकारी अध्यापकों की पढ़ाने में रुचि नहीं है. यह दुरूह वर्तमान परिस्थिति इसके बावजूद है कि शिक्षा पर सरकार द्वारा भारी रकम व्यय की जा रही है.
प्राइमरी शिक्षा में उत्तर प्रदेश ने वर्ष 2017-18 में 50,142 करोड़ रु पए का खर्च किया था. राज्य में शिक्षा प्राप्त करने की आयु के कुल 3.8 करोड़ बच्चे हैं. यदि इस रकम को सरकारी अध्यापकों को वितरित करने के स्थान पर छात्नों को सीधे वितरित कर दिया जाए तो प्रत्येक छात्न को 14,547 रुपए प्रतिवर्ष दिए जा सकते हैं. सरकार पर एक रुपए का भी अतिरिक्त बोझ नहीं आएगा. इस रकम से छात्न अपने मनचाहे टय़ूटोरियल अथवा विद्यालय की फीस अदा कर सकते हैं. वर्तमान में यह रकम शिक्षा को नहीं, अपितु शिक्षकों को दी जा रही है. दोनों में बहुत फासला है. बल्किसरकारी विद्यालयों के पास उपलब्ध विशाल जमीन एवं मकानों को प्राइवेट विद्यालयों को लीज पर देने से सरकार अच्छी रकम अर्जित भी कर सकती है. छात्नों का शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार भी सुरक्षित रहेगा.
यही बात उच्च शिक्षा पर भी लागू होती है. हमें संपूर्ण सरकारी उच्च शिक्षा तंत्न के सुधार पर ध्यान देना होगा. मेरा मानना है कि जिस प्रकार प्राथमिक शिक्षा में सरकारी विद्यालयों को समाप्त कर उसी रकम को छात्नों को वितरित कर दिया जाए तो शिक्षा में सुधार होगा; उसी प्रकार एक राष्ट्रीय परीक्षा के माध्यम से उन तमाम बच्चों को चयनित किया जाए जो कि उच्च शिक्षा प्राप्त करने के हकदार बनते हैं और इन सभी को सरकार द्वारा वर्तमान में जो उच्च शिक्षा पर खर्च किया जा रहा है उस रकम को वाउचर के माध्यम से दे देना चाहिए जिससे वे मनचाहे कॉलेज में अच्छी गुणवत्ता की शिक्षा पा सकें.