Social sites: मानव सभ्यता के विकास में इंसानों का सामाजिक होना एक बड़ा बदलाव था. बात सिर्फ हमारे दिमागों के उन्नत होने की नहीं है, बल्कि भाषा, बोलचाल और संचार की जिन खूबियों के बल पर इंसानों के विभिन्न समुदायों ने एक-दूसरे से अपनी जानकारियों को साझा किया, उसने दूसरी सभी जीव प्रजातियों पर उसे जीत दिला दी. सभ्यता के विकास के हजारों वर्षों के क्रम में हालांकि चीजें बहुत ज्यादा नहीं बदलीं, लेकिन पहले औद्योगिकीकरण और फिर इंटरनेट के आविष्कार और विस्तार ने एक झटके में हमें एक नई दुनिया में पहुंचा दिया.
इसमें भी इंटरनेट के सबसे करिश्माई पहलू सोशल साइट्स ने जैसे पूरी दुनिया को हमारी हथेलियों में सिमटा दिया. पर अब इधर, इसी सोशल साइट्स पर बंदिशों की मांग उठ रही है. पूरी दुनिया के समाज सोशल साइट्स के दुष्प्रभावों को लेकर चिंतित हैं. सरकारें और कुछ समझ नहीं पा रहीं तो उनका विचार है कि क्यों न सोशल साइट्स पर ही प्रतिबंध लगा दें.
ज्यादा कुछ नहीं कर सकते तो इनको मजबूर कर दें कि खबरदार, वे बच्चों को अपने हाथों की कठपुतली न बनाएं. इन दिनों ऑस्ट्रेलिया की सरकार यही कर रही है, जिससे सवाल उठा है कि क्या इन पर पाबंदी ही समस्या का समाधान है. असल में, ऑस्ट्रेलियाई सरकार ने एक ऐसे कानून का प्रस्ताव किया है जिसके तहत सोलह साल से कम उम्र के बच्चों के लिए सोशल साइट्स का इस्तेमाल प्रतिबंधित किया जा सकता है. इस पाबंदी से उन मैसेजिंग सेवाओं और गेमिंग साइट्स को छूट होगी, जो बच्चों के लिए उपयोगी सामग्री (कंटेंट) बनाती हैं.
प्रस्ताव में कहा गया कि फेसबुक, टिकटॉक, एक्स और इंस्टाग्राम जैसे सोशल साइट्स प्लेटफॉर्म बच्चों की पहुंच से दूर किए जाएं. यानी बच्चे इन मंचों पर अपने अकाउंट नहीं बना सकें. यदि 16 वर्ष से कम उम्र के बच्चों के अकाउंट पहले से हैं, तो कानून लागू होने पर वे उन्हें चला न सकें. यह कैसे होगा- इसे इन्हें चलाने वाली सोशल साइट्स कंपनियां ही तय करें.
यदि उन्होंने कानून नहीं माना तो उन पर लाखों डॉलर का जुर्माना लगाया जाएगा. प्रस्तावित कानून का मकसद बच्चों को उनका बचपन लौटाना, उन्हें सोशल साइट्स के नुकसान से बचाना और उनके अभिभावकों को राहत दिलाना है, जो अपनी संतानों के दिन भर फोन में घुसे रहने से आजिज आ गए हैं. कहने को तो दुनिया में ऐसी कठोर पाबंदी लगाने वाला ऑस्ट्रेलिया पहला देश हो सकता है.
लेकिन सच ये है कि यह समस्या विश्वव्यापी हो चली है. जैसे, भारत में भी इसे लेकर काफी चिंता है कि हमारे कम उम्र बच्चे सोशल मीडिया के माध्यम से पता नहीं क्या कुछ देख रहे हैं. सोशल साइट्स कंपनियां जिस आजादी की वकालत करती हैं, उसमें भी कई बार विरोधाभास दिखाई देते हैं जो असल में उनके कारोबारी पहलुओं से या कहें कि आर्थिक नफा-नुकसान से जुड़े होते हैं.
शायद यही वजह है कि इन कंपनियों के मनमानीपूर्ण व्यवहार और गैर-जवाबदेही को लेकर ऑस्ट्रेलिया, चीन, भारत और यूरोप-अमेरिका तक में चिंता जताई जा रही है. कह सकते हैं कि आज जो काम ऑस्ट्रेलियाई सरकार कर रही है, पूरी दुनिया की सरकारों को उसका अनुसरण करना चाहिए.