आखिर कहां से आएगी 12 फीसदी की वृद्धि दर ?

By अभय कुमार दुबे | Published: July 10, 2019 02:27 PM2019-07-10T14:27:26+5:302019-07-10T14:27:26+5:30

अगर भारतीय अर्थव्यवस्था को पांच खरब डॉलर के स्तर तक पहुंचना है तो उसे 2024 तक लगातार 12 फीसदी प्रतिवर्ष की दर से वृद्धि करनी होगी. इसके लिए जरूरी है कि अर्थव्यवस्था के तीनों क्षेत्र (प्राथमिक यानी कृषि, द्वितीयक यानी उद्योग और तृतीयक यानी सेवा) वृद्धि के इंजिन की तरह काम करें.

Where will the 12 percent growth rate come from? | आखिर कहां से आएगी 12 फीसदी की वृद्धि दर ?

हम जिस आठ फीसदी ग्रोथ के सपने संजो रहे हैं, साल के अंत में वह घट कर छह फीसदी पर आ जाएगी? 

Highlightsहम जानते हैं कि निजी क्षेत्र के पास तकरीबन दो लाख करोड़ की नकदी आरक्षित पड़ी हुई है. पब्लिक सेक्टर की फायदे वाली कंपनियों के पास भी सवा लाख करोड़ की ऐसी रकम निष्क्रिय पड़ी है.

यह देख कर अच्छा लगता है कि भारत के आर्थिक प्रबंधकों ने ग्लोबल मंदी से पैदा होने वाली सीमाओं के बावजूद अगले पांच साल में पांच खरब डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने का संकल्प लिया है. जाहिर है कि ऐसा करके सरकार ने अपने दावों की कड़ी जांच किए जाने की स्थितियां भी पैदा कर दी हैं. आगे बढ़ने से पहले यह कहना जरूरी है कि अगर नरेंद्र मोदी और निर्मला सीतारमण की जोड़ी भारत को पांच खरब तक या उसके कुछ नजदीक तक भी पहुंचा पाई तो इतिहास उनसे पहले के सभी नेताओं को भुला कर केवल उन्हें ही याद रखेगा. यहां यह भी ध्यान रखने की जरूरत है कि मोदी ने चुनाव तो बहुत अच्छा जीता है, लेकिन आíथक दृष्टि से यह जीत ग्रोथ रेट के किसी उछाल का नतीजा न हो कर समाज के विभिन्न हिस्सों (जैसे गरीब स्त्रियां, किसान, मध्यवर्ग वगैरह) को लक्ष्य बना कर दी गई आíथक रियायतों का परिणाम अधिक है. 

अगर भारतीय अर्थव्यवस्था को पांच खरब डॉलर के स्तर तक पहुंचना है तो उसे 2024 तक लगातार 12 फीसदी प्रतिवर्ष की दर से वृद्धि करनी होगी. इसके लिए जरूरी है कि अर्थव्यवस्था के तीनों क्षेत्र (प्राथमिक यानी कृषि, द्वितीयक यानी उद्योग और तृतीयक यानी सेवा) वृद्धि के इंजिन की तरह काम करें. किसी एक क्षेत्र से उम्मीद नहीं की जा सकती कि वह हमें इतनी तेजी से और इतनी दूर तक ले जा पाएगा. प्रश्न उठता है कि क्या भारतीय अर्थव्यवस्था के संचालकों के पास इतनी क्षमता और योजना है कि वे तीनों क्षेत्रों को छलांगें मार कर आगे बढ़ा सकें? कहीं ऐसा तो नहीं है कि हम जिस आठ फीसदी ग्रोथ के सपने संजो रहे हैं, साल के अंत में वह घट कर छह फीसदी पर आ जाएगी? 

हकीकत कितनी भी नाखुशगवार हो, उसे समझ लेना हर तरह से अच्छा ही होता है. जिस समय वित्त मंत्री बजट पेश कर रही थीं, उस समय हमारा ग्रोथ रेट 5.58 प्रतिशत पर था. चाहे कारों का उद्योग हो या मोटरसाइकिलों का- जबर्दस्त मंदी का सामना कर रहे थे. ग्रामीण इलाकों के बाजारों में चीजें बिक नहीं रही थीं. यानी मांग काफी दबी हुई थी. इसका असर साफ तौर पर गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) की बुरी हालत के रूप में दिखाई पड़ रहा था. इन कंपनियों के पास एक तरफ तो कर्ज देने के लिए पूंजी का अभाव था, और दूसरी तरफ कर्ज लेने वालों की भी किल्लत थी. सरकार ने इस समस्या का सामना करने के लिए बैंकों को सत्तर हजार करोड़ रुपए की पूंजी अगले तीन साल में देने का निश्चय किया है ताकि बैंकों में मांग को बढ़ाने की क्षमता पैदा हो सके. सरकार के पास यह रकम कहां से आएगी. समझा जाता है कि वह कुछ रकम रिजर्व बैंक के आरक्षित कोष से लेगी, कुछ पेट्रोल-डीजल को महंगा करने के जरिये उगाही जाएगी और कुछ आम तौर से टैक्स वसूली बढ़ने से प्राप्त हो जाएगी. जहां तक रिजर्व बैंक का सवाल है, उसके आरक्षित कोष से रकम उठाने पर विवाद है. ऐसा करने की वांछनीयता की जांच करने के लिए जो कमेटी बनाई गई थी, उसने कहा है कि ऐसा नहीं किया जाना चाहिए. पर हमारे वित्त सचिव कमेटी के इस निष्कर्ष पर अपनी असहमति दर्ज करा आए हैं, यानी सरकार कमेटी की मनाही के बावजूद ऐसा करेगी. 

मान लीजिए, सब कुछ ठीक रहा और बैंकों और गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों की हालत ठीक हो गई, तो भी केवल सेवा का तृतीयक क्षेत्र ही दुरुस्त होगा. सरकार के पास कृषि और उद्योग को बीमारी की हालत से निकाल कर भला-चंगा करने का क्या फामरूला है? दरअसल, मामला यहीं फंसा हुआ है. मोदी के शासनकाल में खेती में निवेश की दर, जो पहले ही काफी कम थी, और घटी है. सीतारमण के इस बजट में भी अगर मुद्रास्फीति को समायोजित करके देखा जाए तो कृषि के लिए किए जाने वाले आवंटन ऐसी कोई उम्मीद नहीं जगाते कि यह क्षेत्र निकट भविष्य में उछाल की स्थिति में आ पाएगा. इसी तरह उद्योग का क्षेत्र निजी क्षेत्र से बड़े पैमाने पर निवेश की मांग करता है. लेकिन, पिछले पांच साल में निजी पूंजी द्वारा किया जाने वाला निवेश घटता गया है. यहां बजट के आंकड़ों में देखने की बात यह है कि सरकार खुद कितना निवेश करना चाहती है. बजट में दिखाया गया है कि सरकार का पूंजीगत व्यय (इसे निवेश माना जा सकता है) 9.4 फीसदी बढ़ेगा. यह कुल घरेलू उत्पादन का महज 1.6 फीसदी होगा. अर्थात् निवेश के मामले में सरकार पिछले बजट के मुकाबले कोई खास ज्यादा धन लगाने नहीं जा रही है. रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर सी. रंगराजन के अनुसार बजट में ऐसा कोई उपाय नहीं है जिससे निजी पूंजी में निवेश के लिए उत्साह पैदा हो, हालांकि सरकार के दोनों वित्तीय सलाहकार दावा कर रहे हैं कि यह बजट निजी पूंजी के निवेश से निकलने वाली वृद्धि दर की संभावनाओं पर टिका है. 

हम जानते हैं कि निजी क्षेत्र के पास तकरीबन दो लाख करोड़ की नकदी आरक्षित पड़ी हुई है. पब्लिक सेक्टर की फायदे वाली कंपनियों के पास भी सवा लाख करोड़ की ऐसी रकम निष्क्रिय पड़ी है. पिछले पांच साल से सरकार इस रकम को तिजोरियों से निकाल कर अर्थव्यवस्था में गतिशील करने के लिए प्रेरणादायक माहौल नहीं बना पाई. जब तक यह नहीं होगा, पांच खरब की अर्थव्यवस्था बनने का स्वप्न कागज पर ही बना रहने के लिए अभिशप्त रहेगा.

Web Title: Where will the 12 percent growth rate come from?

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