अर्थव्यवस्था की हकीकत स्वीकारने का वक्त

By रहीस सिंह | Published: June 28, 2019 02:41 PM2019-06-28T14:41:20+5:302019-06-28T14:41:20+5:30

अभी तक सबसे तेज रफ्तार से आगे बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था के रूप में भारतीय अर्थव्यवस्था का गुणगान किया जा रहा था, लेकिन 5.8 प्रतिशत पर आ टिकने के बाद यह तमगा भी छिन गया. दूसरी तरफ सरकार जो सात प्रतिशत की विकास दर के दावे कर रही थी उसकी पुष्टि तमाम आंकड़े नहीं कर पा रहे.

Time to accept the reality of the economy | अर्थव्यवस्था की हकीकत स्वीकारने का वक्त

अर्थव्यवस्था की हकीकत स्वीकारने का वक्त

Highlightsसरकार जो सात प्रतिशत की विकास दर के दावे कर रही थी उसकी पुष्टि तमाम आंकड़े नहीं कर पा रहे. पिछले दिनों जीडीपी वृद्धि को लेकर भारत के मुख्य आर्थिक सलाहकार रहे अरविंद सुब्रमण्यम ने भी उंगली उठा दी.

चुनाव तक अर्थव्यवस्था के हर नकारात्मक पहलू और अपने पिछले कार्यकाल में की गई गलतियों को नकराते हुए भाजपा पुन: सत्ता में आ गई, लेकिन अब ऐसा लगने लगा है कि नरेंद्र मोदी सरकार आर्थिक चुनौतियों से आंख-मिचौली नहीं खेल पा रही है. यही वजह है कि आम बजट पेश होने से पहले ही प्रधानमंत्री ने देश के कुछ अर्थशास्त्रियों और उद्योग जगत से जुड़े लोगों के साथ विचार-विमर्श के उद्देश्य से बैठक की. सवाल है कि अपने पिछले कार्यकाल में आर्थिक हालात पर विचार-विमर्श से लंबी दूरी बनाए रखने वाले प्रधानमंत्री मोदी क्या अब उन गलतियों को भी स्वीकार करेंगे जिनकी वजह से भारतीय अर्थव्यवस्था की यह हालत हुई है? क्या उनके सलाहकार उन्हें वास्तव में सलाह देंगे या फिर उनके निर्णय पर एक सुर में बोलेंगे? क्या प्रधानमंत्री वास्तव में अर्थव्यवस्था के रोग को पहचान गए हैं या फिर इसे बिना पहचाने ही उपचार के लिए वैद्यों की सलाह ले रहे हैं? 

अभी तक सबसे तेज रफ्तार से आगे बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था के रूप में भारतीय अर्थव्यवस्था का गुणगान किया जा रहा था, लेकिन 5.8 प्रतिशत पर आ टिकने के बाद यह तमगा भी छिन गया. दूसरी तरफ सरकार जो सात प्रतिशत की विकास दर के दावे कर रही थी उसकी पुष्टि तमाम आंकड़े नहीं कर पा रहे. पिछले दिनों जीडीपी वृद्धि को लेकर भारत के मुख्य आर्थिक सलाहकार रहे अरविंद सुब्रमण्यम ने भी उंगली उठा दी. हार्वर्ड यूनिवर्सिटी, जहां के वे विजिटिंग फेलो हैं, ने उनका एक पेपर पब्लिश किया है जिसमें उन्होंने लिखा है कि भारत ने ऋण, निवेश और निर्यात में दयनीय वृद्धि के बावजूद जीडीपी में चमत्कारिक वृद्धि (औसत 7.5 प्रतिशत) दर्ज की. इसके लिए उन्होंने 1991 के बाद के तुलनात्मक उदाहरणों की तलाश की, लेकिन कोई मिला नहीं. वे लिखते हैं कि ऐसी परिस्थितियों में कोई भी देश 7 प्रतिशत से अधिक तीव्र गति से नहीं बढ़ सकता और न ही वास्तव में 5 प्रतिशत से अधिक तेजी से किसी भी देश ने विकास किया है. उनका तर्क है कि भारत के विकास संबंधी आंकड़े अतिरंजित हैं.

अभी भी जो दिखाई दे रहा है, उसमें सबसे अहम बात यही है कि सरकार अर्थव्यवस्था में जान फूंकने के लिए रिजर्व बैंक पर दबाव डाल रही है. जबकि यह सीधा रास्ता नहीं है. जो दिखाई दे रहा है उसके आधार पर यह कहना तर्कसंगत लगता है कि सरकार आर्थिक संकट के पीछे के कारणों को या तो समझ नहीं पाई है या फिर समझना नहीं चाहती (क्योंकि इन कारणों में उसकी अपनी ही नीतियां हैं). इसलिए अभी यह मानकर चलना चाहिए कि आर्थिक सुधार को और तेजी से लागू किया जाएगा, यह सिर्फ शोर ही है क्योंकि सरकार उन्हीं नीतियों पर चलेगी जिनकी वजह से अर्थव्यवस्था इस हालत तक पहुंची है. सरकार को हकीकत स्वीकारनी चाहिए ताकि  अर्थव्यवस्था को मिडिल इनकम ट्रैप में फंसने से बचाया जा सके. 
 

Web Title: Time to accept the reality of the economy

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