रेणु जैन
अथर्व वेद में कहा गया है कि हे धरती मां, जो कुछ भी तुमसे लूंगा वह उतना ही होगा जितना तू पुनः पैदा कर सके. तेरे मर्मस्थल पर या तेरी जीवन शक्ति पर कभी आघात नहीं करूंगा. मनुष्य जब तक प्रकृति के साथ किए गए इस वादे पर कायम रहा, सुखी और संपन्न रहा किंतु जैसे ही इस वादे का अतिक्रमण हुआ, प्रकृति के विध्वंसकारी और विघटनकारी रूप उभर कर सामने आए.
सैलाब और भूकम्प आए. पर्यावरण में जहरीली गैसें घुलीं. मनुष्य की आयु कम हुई और धरती एक-एक बूंद पानी के लिए तरसने लगी. गौरतलब है कि प्राकृतिक संसाधनों के प्रबंधन पर अध्ययन करने वाली अमेरिकी गैर सरकारी संस्था ‘ग्लोबल फुट प्रिंट’ ने अपनी एक रिपोर्ट पेश की है जिसमें कहा गया है कि दुनिया में प्राकृतिक संसाधनों का इस कदर दोहन हो रहा है कि साल भर में इस्तेमाल होने वाले प्राकृतिक संसाधन मात्र छह महीने में ही खत्म हो रहे हैं.
पर्यावरण और वन्य जीवों के संरक्षण के लिए काम करने वाली संस्था ‘वर्ल्ड वाइल्ड फंड फॉर नेचर’ ने भी ग्लोबल फुट प्रिंट की चेतावनी पर चिंता जाहिर की है तथा कहा है कि मनुष्य की संसाधनों से मांग प्रकृति के भरण-पोषण की क्षमता से कहीं ऊपर जा पहुंची है. पिछले कुछ समय से दुनिया में जंगलों की अंधाधुंध कटाई हो रही है तथा वाहनों से रोजाना हजारों लाखों टन धुंआ निकल रहा है.
जो हवा को प्रदूषित कर रहा है. कारखाने नदियों में जहरीला कचरा बहा रहे हैं तो कुछ बड़े राष्ट्र समुद्र में परमाणु परीक्षण करके उसे विषाक्त बना रहे हैं. अनियंत्रित शहरीकरण, औद्योगीकरण और कृषि में रसायनों के अंधाधुंध इस्तेमाल के कारण वन्य जीव-जंतु भी कम हुए हैं. इस समय दुनिया में पक्षियों की करीब 9900 ज्ञात प्रजातियां हैं.
पक्षी विज्ञानी आर.के. मलिक के अनुसार बदलती जलवायु, मानवीय हस्तक्षेप तथा भोजन में घुल रहे जहरीले पदार्थ पक्षियों के लिए जानलेवा साबित हो रहे हैं. एक अनुमान के अनुसार आने वाले 100 सालों में पक्षियों की 1183 प्रजातियां विलुप्त हो सकती हैं. इसके अलावा बाघों तथा हाथियों द्वारा मानव बस्तियों पर हमले की खबरें भी अक्सर आती हैं.
इसका भी सीधा-सा कारण है कि लगातार जंगलों के कटने और घटने के कारण मनुष्य तथा जंगली जानवरों के बीच टकराव बढ़ रहा है. भूटान दक्षिण पूर्व एशिया में बसा हुआ बहुत छोटा सा देश है लेकिन इसकी ख्याति इस कारण है कि यह खुशनुमा देश है. इस देश से सीख लेनी चाहिए कि यहां पर्यावरण की चिंता करने का फायदा देश के नागरिकों को इस रूप में मिला है कि वे प्रदूषण रहित माहौल में रहते हैं.
देश का 60 फीसदी हिस्सा ऐसा है जहां किसी तरह का निर्माणकार्य नहीं है. यहां के लोग प्रकृति से मिल-जुल कर रहते हैं. यहां शहरों को कांक्रीट के जंगल में बदलने की होड़ नहीं है. सन् 1980 के बाद से ही यहां जीने की उम्र 20 साल बढ़ी है और प्रति व्यक्ति आय 450 गुना. भूटान में हवा, पानी और धरती स्वच्छ है. यहाँ के लोग संतुष्ट हैं और इसी कारण खुश भी हैं. यहां खुशी सबसे ऊपर है. भारत में अगर हमें खुश रहना है तोप्राकृतिक संसाधनों को बचाना होगा.