जयंतीलाल भंडारी का ब्लॉग: रोजगार की चुनौतियां और श्रम सुधारों की जरूरत

By डॉ जयंती लाल भण्डारी | Published: May 13, 2020 05:14 AM2020-05-13T05:14:36+5:302020-05-13T05:14:36+5:30

अमेरिकी शोध और सलाहकार फर्म गार्टनर सहित खाड़ी देशों की कुछ कंपनियां अपनी रोजगार नीति पर नए सिरे से विचार करते हुए दिखाई दे रही हैं.

Jayantilal Bhandari's blog: employment challenges and the need for labor reforms | जयंतीलाल भंडारी का ब्लॉग: रोजगार की चुनौतियां और श्रम सुधारों की जरूरत

सांकेतिक तस्वीर

इन दिनों राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कोविड-19 के भारत पर पड़ने वाले आर्थिक प्रभावों से संबंधित रिपोर्टो में कहा जा रहा है कि कोविड-19 ने भारत के रोजगार परिदृश्य को सबसे अधिक चिंताजनक और चुनौतीपूर्ण बना दिया है. इन विभिन्न रिपोर्टो में दो बातें रेखांकित हो रही हैं.

एक, अब भारत में रोजगार चुनौतियों और रोजगार निराशाओं के बीच लोगों की आजीविका बचाने के लिए बड़ा राहत पैकेज जरूरी है. दो, अर्थव्यवस्था में नई जान फूंकने के लिए श्रम सुधार भी जरूरी हैं. लेकिन श्रम सुधारों को लागू करते समय श्रमिकों के हितों पर भी ध्यान दिया जाए.

उल्लेखनीय है कि 11 मई को प्रधानमंत्नी नरेंद्र मोदी के साथ विभिन्न राज्यों के मुख्यमंत्रियों की बैठक में प्रधानमंत्नी ने भी राज्यों से उद्योग और श्रम कानूनों के सरलीकरण का आग्रह करते हुए कहा कि ऐसा किए जाने से चीन से निकलती हुई कंपनियों के भारत आने की अपार संभावनाएं बढ़ेंगी.    

हाल ही में प्रकाशित अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) की रिपोर्ट में कहा गया है कि कोरोना प्रकोप और लॉकडाउन से भारत के असंगठित क्षेत्न के श्रमिकों के रोजगार पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है. देश में बेरोजगारी की चुनौती कितनी तेजी से बढ़ती जा रही है इसका अनुमान प्राइवेट थिंक टैंक सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी के द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट से लगाया जा सकता है.

इसके मुताबिक भारत में जनवरी 2020 में बेरोजगारी की दर 7.2 प्रतिशत थी. यह फरवरी में 7.8 प्रतिशत हो गई और मार्च में 8.7 प्रतिशत हो गई. यह अप्रैल 2020 में छलांगें लगाकर बढ़ते हुए 23.5 फीसदी के स्तर पर पहुंच गई. इतना ही नहीं लॉकडाउन से कारोबार बंद होने से अप्रैल 2020 में देश में बेरोजगारों की संख्या 12.20 करोड़ से ज्यादा हो गई. इनमें से 9.13 करोड़ लोगों का रोजगार अप्रैल 2020 में समाप्त हुआ.

निस्संदेह कोरोना और लॉकडाउन के कारण देश के सूक्ष्म, लघु और मध्यम आकार के उद्योगों (एमएसएमई) की मुश्किलें बढ़ने से इस क्षेत्न में नौकरी और रोजगार बचाना बड़ी चुनौती बन गई है. खास तौर से देश के करीब 45 करोड़ के वर्क फोर्स में से 90 फीसदी श्रमिकों और कर्मचारियों की रोजगार मुश्किलें बढ़ गई हैं. प्रवासी श्रमिकों को फिर से बसाने की चुनौती है. देश के कोने-कोने में पैदल, ट्रकों और ट्रेनों से लाखों श्रमिक शहर छोड़कर अपने-अपने गांवों में जाते हुए दिखाई दे रहे हैं. ये ऐसे श्रमिक हैं जिनके पास सामाजिक सुरक्षा की कोई छतरी नहीं है.

छोटे उद्योग और कारोबार पहले से ही मुश्किलों के दौर से आगे बढ़ रहे थे, अब कोरोना और लॉकडाउन के कारण ये ठप हो गए हैं. ऐसे में छोटे उद्योग में और कारोबारियों के सामने उनके कर्मचारियों को वेतन और मजदूरी देने का संकट खड़ा हो गया है. ये उद्यमी और कारोबारी यह कहते हुए दिखाई दे रहे हैं कि उनके पास वेतन मजदूरी देने के लिए रुपया नहीं है. ऐसे में उनके लिए नौकरियां और रोजगार बचाए रखना मुश्किल हो गया है.

इतना ही नहीं कोरोना और लॉकडाउन की वजह से जब देश के उद्योग-कारोबार ठप पड़ गए हैं तब नई पीढ़ी के लिए कैम्पस प्लेसमेंट के माध्यम से रोजगार देने वाले कई नियोक्ताओं खास तौर से बहुराष्ट्रीय कंपनियों के द्वारा जून-जुलाई 2020 से आरंभ की जाने वाली रोजगार पेशकश को या तो वापस लिया जा रहा है या फिर उन्हें आगे बढ़ाने की बात कही जा रही है.

अमेरिकी शोध और सलाहकार फर्म गार्टनर सहित खाड़ी देशों की कुछ कंपनियां अपनी रोजगार नीति पर नए सिरे से विचार करते हुए दिखाई दे रही हैं. ऐसी स्थिति में देश के विभिन्न प्रोफेशनल एजुकेशन संस्थानों में प्लेसमेंट की प्रक्रिया भी उलझ गई है.

ऐसे में रोजगार की चिंताओं के बीच सरकार को यह रणनीति बनानी होगी कि विभिन्न उद्योगों में कृषि और सेवा क्षेत्न में रोजगार और नौकरियों के अवसर कैसे बनाए रखे जा सकें. यद्यपि इस समय 4 मई से देश की करीब 82 फीसदी अर्थव्यवस्था खोल दी गई है, फिर भी देश के अधिकांश उद्योग कारोबार बिलकुल ठप हैं.

ऐसे में बड़ी संख्या में कंपनियां घाटे में होंगी और काफी लोग बेरोजगार तो होंगे ही. ऐसे में सरकार की प्राथमिकता सभी रोजगार व श्रमिकों का संरक्षण करना है. इसलिए जहां सरकार के द्वारा उद्योग कारोबार को बचाने के लिए विशेष राहत देना जरूरी है वही सरकार के द्वारा श्रमिकों के वेतन भत्ताें के एक हिस्से का भार तब तक उठाना चाहिए, जब तक कि उद्योग कारोबार के हालात लाभप्रद नहीं होते.

Web Title: Jayantilal Bhandari's blog: employment challenges and the need for labor reforms

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