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वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉग: कालाधन खत्म कैसे हो? 

By वेद प्रताप वैदिक | Updated: June 26, 2019 06:44 IST

गहन अनुसंधान करनेवाली तीन वित्तीय संस्थाओं ने संसदीय समिति की मदद में जमीन-आसमान एक कर दिए लेकिन उनका भी कहना है कि 1980 से 2010 के दौरान भारतीयों ने विदेशों में 15 लाख करोड़ से 35 लाख करोड़ रु. तक कालाधन छिपा रखा है.

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जिनकी जिंदगी ही कालेधन पर निर्भर है, वे यह क्यों और कैसे बताएंगे कि देश और विदेशों में कालाधन कितना है और उसे कैसे-कैसे छिपाकर रखा गया है. हमारी लोकसभा की स्थायी वित्त समिति ने कालेधन का पता करने में बरसों खपा दिए लेकिन उसके हाथ अभी तक कोई ठोस आंकड़ा तक नहीं आया है. 

गहन अनुसंधान करनेवाली तीन वित्तीय संस्थाओं ने संसदीय समिति की मदद में जमीन-आसमान एक कर दिए लेकिन उनका भी कहना है कि 1980 से 2010 के दौरान भारतीयों ने विदेशों में 15 लाख करोड़ से 35 लाख करोड़ रु. तक कालाधन छिपा रखा है. यह धन पैदा हुआ है निर्माण-कार्यो, खनन, दवा-निर्माण, पान-मसाला, गुटखा, तंबाकू, सट्टा, फिल्म और शिक्षा के क्षेत्नों में. तीनों संस्थाओं ने अलग-अलग दावे किए हैं. तीनों ने यह भी कहा है कि यह कालाधन देश की सकल संपदा (जीडीपी) के सात प्रतिशत से 120 प्रतिशत भी हो सकता है.

इन तीनों संस्थाओं को 2011 में डॉ. मनमोहन सिंह की कांग्रेस सरकार ने यह काम सौंपा था. वास्तव में यह काम तो करना चाहिए था मोदी सरकार को, क्योंकि 2014 का चुनाव वह इसी नारे पर जीती थी. लेकिन कोई भी सरकार कालेधन को खत्म कैसे कर सकती है? वर्तमान सरकार को चाहिए था कि उसने नोटबंदी और जीएसटी जो लागू की, उससे कालेधन पर कितना काबू पाया गया, वह यह बताती. इस सरकार ने तो बेनामी चुनावी बांड जारी करके कालेधन की आवाजाही को और भी सरल बना दिया है. 

अच्छा तो यह है कि सरकार किसी तरह आयकर को ही खत्म करे ताकि कालेधन की कल्पना ही खत्म हो जाए. सरकार को जिस धन पर टैक्स नहीं दिया जाता, उसे काला कहने के बजाय अवैध कृत्यों से कमाए पैसे को काला कहा जाए तो बेहतर होगा. लेकिन सरकार के खर्च चलाने के लिए वैकल्पिक आमदनी के रास्ते खोजने की कोशिशें क्यों नहीं की जाएं? नागरिकों पर उनकी आय के बजाय व्यय पर टैक्स लगाने की कोई नई व्यवस्था क्यों नहीं बनाई जाए? यह काम मुश्किल है लेकिन असंभव नहीं. 

टॅग्स :मोदी सरकारमनमोहन सिंहइकॉनोमी
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