डॉ. अनन्या मिश्र
सन् 1947 में प्राप्त हुई राजनीतिक स्वतंत्रता ने भारत की आत्मा की जंजीरें तोड़ दीं और उसे मुक्त आकाश का स्पर्श कराया. उस स्वर्णिम प्रभात से लेकर आज के क्षण तक, हमने संघर्ष और संकल्प से भरी एक दीर्घ यात्रा तय की है. हमने विज्ञान के शिखरों का आलिंगन किया, लोकतंत्र की जड़ों को गहन और दृढ़ बनाया तथा अर्थव्यवस्था को वैश्विक मंच पर प्रतिष्ठित स्थान दिलाया. किंतु समय की गति अब नई मांग कर रही है. स्वतंत्रता का अर्थ मात्र विदेशी शासन की बेड़ियों से मुक्ति भर नहीं रह गया; यह अब वह अदृश्य शक्ति है जो हमें अवसरों की समानता, विचारों की निर्बाध उड़ान, नवाचार की अनंत संभावनाएं और सतत विकास की अटल आधारशिला प्रदान करती है. यह स्वतंत्रता वह अमृत है, जो भारत को केवल समृद्ध ही नहीं, बल्कि जगत के पथप्रदर्शक के रूप में प्रतिष्ठित करने की क्षमता रखती है.
इस अमृत की धड़कन, इसकी जीवन-धारा, हमारे युवा हैं. शिक्षा के क्षेत्र में वास्तविक आजादी की आवश्यकता आज सर्वाधिक प्रखर रूप में हमारे सम्मुख है. हमारे पास 15 से 24 वर्ष आयु के लगभग 23 करोड़ युवा हैं और यह विश्व की सबसे विराट युवा शक्ति है. निःसंदेह, बीते एक दशक में हमने उल्लेखनीय उपलब्धियां अर्जित की हैं. 2014 में जहां डिजिटल शिक्षा की पहुंच कुछ चुनिंदा महानगरों और संस्थानों तक सीमित थी, वहीं 2024 तक प्रधानमंत्री ई-विद्या, स्वयम् पोर्टल और दी क्षा जैसी योजनाओं ने गुणवत्तापूर्ण ज्ञान को करोड़ों विद्यार्थियों के द्वार तक पहुंचा दिया है.
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 ने पाठ्यक्रम की लचक, बहुभाषिक शिक्षा तथा कौशल-आधारित अधिगम को अपनाकर शिक्षा की संरचना में नए क्षितिज खोले हैं, और इनसे एक नए भारत की बौद्धिक नींव मजबूत हुई है. फिर भी, 2024 की अखिल भारतीय उच्च शिक्षा सर्वेक्षण रिपोर्ट यह सच्चाई उजागर करती है कि इस विराट युवा वर्ग में से केवल 27 प्रतिशत ही उच्च शिक्षा के शिखर तक पहुंच पाते हैं.
यह आंकड़ा हमें स्पष्ट संकेत देता है कि अब समय है कि हम शिक्षा व्यवस्था को शेष जड़ताओं, असमानताओं और संकीर्णताओं से मुक्त करें. हमें ऐसी प्रणाली का निर्माण करना होगा जो भूगोल, सामाजिक पृष्ठभूमि या आर्थिक सीमाओं से परे, हर छात्र-छात्रा को समान अवसर दे; जो उन्हें केवल परीक्षा का परीक्षार्थी नहीं, बल्कि एक सृजनशील विचारक, जिज्ञासु शोधकर्ता और प्रभावी समाधानकर्ता बनाए.
माध्यमिक स्तर से ही कृत्रिम बुद्धिमत्ता, हरित प्रौद्योगिकी, वैश्विक व्यापार और सतत विकास जैसे विषयों का समावेश तथा डिजिटल अवसंरचना का गांव-गांव तक विस्तार - यह सब उस नवस्वतंत्र शिक्षा का प्रारंभिक चरण होगा. नवाचार और उद्यमिता में वास्तविक आजादी आज के भारत के लिए अनिवार्य है.
आज हमारे पास 1.8 लाख से अधिक पंजीकृत स्टार्टअप हैं, जो हमें विश्व के तीसरे सबसे बड़े स्टार्टअप तंत्र का गौरव प्रदान करते हैं. यह उपलब्धि हमारे युवाओं की कल्पनाशक्ति, साहस और दृढ़ संकल्प की गवाही देती है. फिर भी एक कटु सत्य यह है कि इनमें से कई स्टार्टअप अपने प्रारंभिक वर्षों में ही संसाधनों के अभाव और पूंजी की कमी के कारण दम तोड़ देते हैं.
विकसित भारत का पथ तभी सुगम और स्थायी होगा जब नीति-निर्माण में दीर्घकालिक स्थिरता हो, नियम-प्रक्रियाएं सरल और पारदर्शी हों तथा वित्तीय सहयोग सुलभ हो. यदि एक राष्ट्रीय ‘इनोवेशन सैंडबॉक्स’ की स्थापना हो, जो युवाओं को प्रोटोटाइप के लिए आवश्यक पूंजी, सरकारी डेटा और वैश्विक बाजार से सीधा जुड़ाव प्रदान करे तो भारतीय नवाचार न केवल उड़ान भरेगा, बल्कि आकाश की सीमाएं भी पार कर जाएगा.