विजय दर्डा का ब्लॉगः वेल्थ क्रिएटर के लिए पहले माहौल तो बनाइए!

By विजय दर्डा | Published: August 26, 2019 06:29 AM2019-08-26T06:29:06+5:302019-08-26T06:29:06+5:30

नीति आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार ने भी माना है कि यह 70 साल में सबसे गंभीर आर्थिक संकट है. ऑटोमोबाइल सेक्टर की हालत खराब है. हजारों लोग बेरोजगार हुए हैं. इंडियन टेक्सटाइल एसोसिएशन ने तो विज्ञापन दिया है कि आने वाले वक्त में बहुत सी नौकरियां जाएंगी.

First create an atmosphere for wealth creators, most severe indian economic crisis in 70 years | विजय दर्डा का ब्लॉगः वेल्थ क्रिएटर के लिए पहले माहौल तो बनाइए!

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Highlightsपिछले सप्ताह के अपने कॉलम में मैंने ‘वेल्थ क्रिएटर’ के संदर्भ में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बयान का संक्षिप्त सा जिक्र किया था. केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय (सीएसओ) के आंकड़े कहते हैं कि  बेरोजगारी की दर 45 साल के सर्वोच्च स्तर पर है.

पिछले सप्ताह के अपने कॉलम में मैंने ‘वेल्थ क्रिएटर’ के संदर्भ में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बयान का संक्षिप्त सा जिक्र किया था. मैंने लिखा था कि वेल्थ क्रिएटर यानी धन पैदा करने वाले उद्योगपतियों को निश्चय ही सम्मान की दृष्टि से देखा जाना चाहिए लेकिन मैंने इस बात का भी जिक्र किया था कि हमारी सरकारी एजेंसियां उन सभी को न केवल शंका की नजर से देखती हैं बल्कि गुनहगार मानकर चलती हैं. मेरी राय बहुत स्पष्ट है कि रोजगार पैदा करने वालों के प्रति इसी रवैये ने हमारी आर्थिक स्थिति को क्षति पहुंचाई है. हम जब तक रोजगार पैदा करने वालों के प्रति सहयोग का रवैया नहीं अपनाएंगे तब तक स्थिति सुधरने वाली नहीं है. 

नीति आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार ने भी माना है कि यह 70 साल में सबसे गंभीर आर्थिक संकट है. ऑटोमोबाइल सेक्टर की हालत खराब है. हजारों लोग बेरोजगार हुए हैं. इंडियन टेक्सटाइल एसोसिएशन ने तो विज्ञापन दिया है कि आने वाले वक्त में बहुत सी नौकरियां जाएंगी. पारले जी में हजारों नौकरियां खतरे में हैं. मंदी के कारण रुपया रोज टूट रहा है. केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय (सीएसओ) के आंकड़े कहते हैं कि  बेरोजगारी की दर 45 साल के सर्वोच्च स्तर पर है. आंकड़े कह रहे हैं कि पुरुषों की बेरोजगारी दर 6.2 और महिलाओं की बेरोजगारी दर 5.7 प्रतिशत है. 

आंकड़ों का थोड़ा और विश्लेषण करें तो पता चलता है कि शहरों में 7.8 प्रतिशत युवा बेरोजगार हैं जबकि गांवों में 5.3 प्रतिशत. सरकार यह दावा करती रही है कि आर्थिक विकास की दर तेज है तो सवाल पैदा होना स्वाभाविक है कि फिर रोजगार कहां हैं? नौकरियां क्यों जा रही हैं?

मैं कोई अर्थशास्त्री नहीं हूं लेकिन एक सजग पत्रकार और राजनेता होने के नाते देश और दुनिया के गंभीर विषयों पर पैनी दृष्टि तो रखता ही हूं. जब भारत के पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यम कहते हैं कि आर्थिक वृद्धि दर को बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया जा रहा है तो फिर मन में सवाल पैदा होते ही हैं! 

आरबीआई के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने भी आर्थिक वृद्धि के  आंकड़ों पर संदेह जाहिर किया है. मैं आंकड़ों के विश्लेषण में नहीं जाना चाहता लेकिन इतना जानता हूं कि महंगाई को काबू में रखने के लिए ब्याज की ऊंची दरों ने कारोबार के लिए परेशानियां पैदा कीं. यह बात हमारी सरकार और हमारे रिजर्व बैंक को बड़ी देर से समझ आई. 

अर्थव्यवस्था जब ज्यादा लड़खड़ा गई तो आरबीआई ने इस साल ब्याज दरों में लगातार तीसरी बार कटौती की. मैं एक बात और कहना चाहूंगा कि ब्याज दरों में आरबीआई तो कटौती करता है लेकिन इसका लाभ आम आदमी तक नहीं पहुंचता. इसका लाभ बैंक उठा लेते हैं. सरकार उन पर कोई नकेल भी नहीं कस रही है.

अर्थव्यवस्था की बदहाली के लिए आंकड़ों का भारी भरकम विश्लेषण करने वालों की कमी नहीं है लेकिन मुङो लगता है इस मामले को बिल्कुल प्रैक्टिकल तरीके से समझने और समस्या को दूर करने की जरूरत है. दरअसल हमारे यहां उद्योगों के लिए सकारात्मकता नहीं है. ‘ईज ऑफ डूइंग’ नहीं है. यानी ऐसी परिस्थिति नहीं है जिसमें आप सहजता से काम कर सकें. जबकि यह वक्त भारत के लिए बहुत अच्छा है. पूरा फ्रांस डगमगाया हुआ है. वहां लगातार स्ट्राइक हो रहे हैं. वहां हैवी इंडस्ट्रीज, आयल, ऑटोमोबाइल, कास्मेटिक, डिफेंस और फैशन इंडस्ट्रीज हैं लेकिन स्थिति अच्छी नहीं है. बहुत से उद्योगपतियों से मेरी बातचीत होती रहती है. वे इंडिया  आना चाहते हैं लेकिन उनकी चाहत है कि अच्छा माहौल तो बने. वे चीन से ज्यादा भारत को तरजीह देना चाहते हैं, लेकिन वे ‘ईज ऑफ डूइंग’ चाहते हैं. हमारी ब्यूरोक्रेसी को इसके लिए अपना रवैया बदलना होगा.

यदि बाहर से उद्योग नहीं आएंगे, निवेश नहीं आएगा और देश के उद्योगों के लिए फलने-फूलने का माहौल नहीं बनेगा तो रोजगार पैदा कहां से होगा? देश के लिए धन कहां से पैदा होगा? धन नहीं होगा तो गरीबी कैसे मिटेगी? इन सवालों पर हमें गंभीरता से विचार करना होगा. हमें अपनी नीतियां बदलनी होंगी. मेरी स्पष्ट राय है कि श्रमिकों का आर्थिक विकास होना चाहिए, उन्हें सारी सुविधाएं मिलनी चाहिए लेकिन श्रमिकों के नाम पर झंडा उठाकर उद्योगों को बर्बाद करने की प्रवृत्ति पर सख्ती से रोक लगनी चाहिए! आखिर कोई किसी को यूं ही तो नौकरी से बाहर नहीं करता! कुशल और अच्छे व्यक्ति की जरूरत हर उद्योगपति को होती है. उद्योगों के लिए वातावरण अच्छा होगा तो श्रमिकों की उन्नति भी होगी, उनका विकास भी होगा. हां, जो उद्योगपति श्रमिकों का शोषण करते हैं उनके लिए बेहद सख्त कानून बनाइए. उसे कड़ी से कड़ी सजा होनी चाहिए लेकिन जो अच्छा काम कर रहे हैं, उन्हें तकलीफ क्यों दी जाती है? 

इसके साथ ही हमें अपनी कार्यसंस्कृति भी बदलनी होगी. मैंने जापान में देखा है कि लोग ड्यूटी पर बीस मिनट पहले आ जाते हैं. खुद को वार्मअप करते हैं और तीन मिनट पहले उस मशीन के पास खड़े हो जाते हैं, जिस मशीन पर अब उनकी ड्यूटी शुरू होने वाली है. यही कारण है कि इतना छोटा सा देश कितना आगे है! हमें यदि दुनिया में श्रेष्ठ होना है तो पूंजी और श्रम की पूजा करनी होगी. ब्यूरोक्रेसी को सहयोगात्मक बनाना होगा. 

Web Title: First create an atmosphere for wealth creators, most severe indian economic crisis in 70 years

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