स्टारलिंक से इंटरनेट सेवाओं में होगा बड़ा बदलाव, एयरटेल के बाद जियो रिलायंस के साथ पार्टनरशिप?
By ऋषभ मिश्रा | Updated: May 26, 2025 05:39 IST2025-05-26T05:39:07+5:302025-05-26T05:39:07+5:30
स्टारलिंक को भारत में लाइसेंस प्राप्त करने के लिए सभी गाइडलाइंस को पूरा करना होगा और ऐसा करते ही उसे लाइसेंस मिल जाएगा.

file photo
एलन मस्क की स्टारलिंक सैटेलाइट इंटरनेट सर्विस अब भारत में भी आने को तैयार है. एयरटेल के बाद जियो रिलायंस ने भी साफ कर दिया है कि वह भारत में फास्ट इंटरनेट सर्विस के लिए मस्क की स्टारलिंक के साथ पार्टनरशिप कर रही है. एयरटेल ने तो स्टॉक एक्सचेंज फाइलिंग में भी इसकी जानकारी दे दी है. उधर, वोडा-आइडिया ने भी इसकी संभावना तलाशनी शुरू कर दी है. सरकार की ओर से भी इन पार्टनरशिप्स को हरी झंडी मिलने के संकेत मिल रहे हैं. हालांकि स्टारलिंक को भारत में लाइसेंस प्राप्त करने के लिए सभी गाइडलाइंस को पूरा करना होगा और ऐसा करते ही उसे लाइसेंस मिल जाएगा.
स्टारलिंक एलन मस्क की अंतरिक्ष कंपनी ‘स्पेसएक्स’ द्वारा विकसित एक सैटेलाइट इंटरनेट सेवा है. इसकी सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसके लिए न जमीन के भीतर कोई तार बिछाने होते हैं और न ही जगह-जगह मोबाइल टावर लगाने पड़ते हैं. यह सेवा ‘लो अर्थ ऑर्बिट’ (एलईओ) में स्थित हजारों छोटे उपग्रहों के नेटवर्क पर आधारित है.
जो पृथ्वी की सतह से लगभग 550 किमी की ऊंचाई पर परिक्रमा करते हैं. स्टारलिंक के उपग्रहों की कम ऊंचाई से यह तेज और अधिक स्थिर इंटरनेट सेवा प्रदान कर सकती है. भारत के कई हिस्सों में आज भी फास्ट इंटरनेट सर्विस नहीं है. ग्रामीण और दूरदराज की बात करें तो इन इलाकों में भी 100-200 एमबीपीएस तक की स्पीड मिल सकेगी.
वस्तुतः सामान्य इंटरनेट सेवाओं में विशालकाय टावर और भूमिगत केबलिंग की जरुरत पड़ती है लेकिन स्टारलिंक में टावर की दरकार नहीं होती अपितु केवल ग्राउंड स्टेशन बनाने पड़ते हैं. स्टारलिंक के साधारण नेटवर्क से तेज होने के कारण की बात करें तो दरअसल आम इंटरनेट सर्विस प्रदाता 35,786 किलोमीटर दूर स्थित जियोस्टेशनरी सैटेलाइट से सिग्नल प्राप्त करते हैं.
इससे डाटा को आने में 600 मिली सेकंड का समय (लेटेंसी) लगता है. वहीं स्टारलिंक के उपग्रह धरती से मात्र 550 किलोमीटर ऊपर स्थित हैं जिससे डेटा को आने में मात्र 25 मिली सेकंड लगते हैं. यानी कि 24 गुना कम वक्त लगता है. स्टारलिंक की भारत में चुनौतियां भी कम नहीं हैं. स्टारलिंक एक विदेशी निजी कंपनी के द्वारा संचालित है जिससे भारत में उपयोग किए जाने वाले डेटा का नियंत्रण भारत सरकार के हाथ में नहीं होगा. इससे डेटा लीक होने का खतरा बढ़ जाएगा. ऊंचाई वाले सीमावर्ती क्षेत्रों जैसे लद्दाख, अरुणाचल प्रदेश में स्टारलिंक टर्मिनल्स का उपयोग भारत की सुरक्षा के लिए चुनौती बन सकता है.
सामरिक स्थलों के पास स्थापित स्टारलिंक टर्मिनल्स से सैटेलाइट जासूसी का खतरा भी बढ़ सकता है. सरकार आमतौर पर स्थानीय इंटरनेट सेवा प्रदाताओं (आईपीएस) पर नियंत्रण रखती है. लेकिन स्टारलिंक सीधे उपग्रहों से सेवा प्रदान करता है जिससे इसे मॉनिटर करना कठिन हो सकता है. सरकार को स्टारलिंक को भारत में ऑपरेट करने के लिए सख्त लाइसेंसिंग शर्तें लागू करनी चाहिए. साथ ही डेटा स्टोरेज तथा ट्रांसमिशन को भारत के कानूनों के दायरे में लाने के लिए नियम बनाए जाने चाहिए.