देश में ग्रामीण भारत के विकास और किसानों को आर्थिक-सामाजिक रूप से सशक्त बनाने के लिए यकीनन बहुआयामी प्रयास किए जा रहे हैं, लेकिन अभी भी गांवों में बड़ी संख्या में छोटे किसान साहूकारी कर्ज के घेरे में आते हुए दिखाई दे रहे हैं. ऐसे में ग्रामीण अर्थव्यवस्था के तेज विकास और गांवों में छोटे किसानों को वित्तीय राहत के मद्देनजर हरसंभव तरीके से साहूकारों के कर्ज से बचाते हुए, उन्हें सरकारी तथा सहकारी कर्ज की छतरी की छाया में लाया जाना चाहिए.
साथ ही प्राथमिक कृषि साख सहकारी समितियों के माध्यम से छोटे किसानों के लिए बिना ब्याज के ऋण वितरण का लक्ष्य बढ़ाया जाना सुनिश्चित किया जाना चाहिए. हाल ही में प्रकाशित राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) की ग्रामीण धारणा सर्वेक्षण रिपोर्ट 2025 के तहत ग्रामीण भारत में ऋण वितरण और चुनौतियों के संबंध में दो अत्यधिक महत्वपूर्ण बातें रेखांकित हुई हैं.
पहली अहम बात यह है कि ग्रामीण क्षेत्रों में अब 54.5 फीसदी परिवार केवल औपचारिक स्रोतों- क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक, सहकारी समितियां, सूक्ष्म वित्त संस्थान आदि से ऋण लेते हैं, जो सर्वेक्षण शुरू होने के बाद से अब तक का सबसे ऊंचा स्तर है. चूंकि ग्रामीणों को औपचारिक स्त्रोतों के माध्यम से जो ऋण दिए जाते हैं,
वे सरकार के द्वारा निर्धारित कुछ निश्चित नियमों व शर्तों के तहत उचित निर्धारित ब्याज दर से जुड़े होते हैं अतएव कर्ज लेने वाले ग्रामीण आर्थिक शोषण से बच जाते हैं. रिपोर्ट की दूसरी प्रमुख बात यह है कि यद्यपि ग्रामीण भारत में औपचारिक ऋण वितरण में सुधार हुआ है, लेकिन अभी भी कई परिवार साहूकारों, दोस्तों, परिवारों और अन्य अनौपचारिक स्रोतों पर निर्भर हैं.
लगभग 22 फीसदी ग्रामीण परिवार पूरी तरह साहूकारों और अनौपचारिक स्रोतों से प्राप्त ऋणों पर निर्भर हैं. यह वर्ग अभी भी ऊंची ब्याज दर पर कर्ज दे रहा है और औसत ब्याज दरें 17-18 फीसदी से भी अधिक होती हैं. रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि गांवों में लगभग 23.5 फीसदी परिवार औपचारिक एवं अनौपचारिक दोनों तरह के ऋणों पर निर्भर हैं.
इसमें कोई दो मत नहीं है कि गांवों में बैंक शाखाएं तेजी से बढ़ी हैं. भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की 2024-25 की सालाना रिपोर्ट के अनुसार पिछले एक दशक में ग्रामीण क्षेत्रों में बैंकिंग शाखाओं की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है. विशेष रूप से गांवों में बैंक शाखाओं की संख्या मार्च 2010 के 33,378 से बढ़कर दिसंबर 2024 तक 56,579 हो गई.
साथ ही गांवों में सहकारी समितियों का नया विस्तार दिखाई दे रहा है. ऐसे में गांवों में साहूकारों और अनौपचारिक ऋणों पर निर्भरता घटाने के लिए बैंक शाखा विस्तार के अलावा नई रणनीति के तहत दूसरे कदम भी उठाने की जरूरत है. छोटे ऋणों और कम अवधि के ऋण वाली कई योजनाएं तैयार करके साहूकारों पर निर्भरता कम करनी होगी.
यह भी महत्वपूर्ण है कि गांवों में साहूकारों पर ऋण निर्भरता की प्रवृत्ति को रोकने के लिए ग्रामीण क्षेत्र के छोटे व्यवसायों को विश्वसनीय संस्थागत वित्तीय सेवाएं प्रदान करने हेतु लक्षित नीतिगत उपाय सुनिश्चित किए जाने होंगे. खासतौर से ग्रामीण अर्थव्यवस्था के अंतिम छोर तक मजबूत गैरबैंकिंग वित्तीय कंपनी (एनबीएफसी) की भूमिका को प्रभावी बनाना होगा.