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भरत झुनझुनवाला का ब्लॉगः भारत को भी अपनानी चाहिए संरक्षण की नीति

By लोकमत समाचार हिंदी ब्यूरो | Updated: June 24, 2018 03:41 IST

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने भारत से आयात होने वाले स्टील तथा एल्युमीनियम के उत्पादों पर आयात कर बढ़ा दिए हैं। भारत ने भी जवाबी कार्रवाई की है। इस प्रकरण से स्पष्ट होता है कि मुक्त व्यापार का सिद्धांत कारगर नहीं रह गया है।

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ठळक मुद्देनब्बे के दशक में अमेरिका मुक्त व्यापार का समर्थक था।राष्ट्रपति ट्रम्प द्वारा मुक्त व्यापार से पीछे हटना अमेरिकी नागरिकों के लिए खट्टा मीठा परिणाम देगाट्रम्प का अनुसरण करते हुए मुक्त व्यापार से पीछे हटकर संरक्षणवाद की नीति अपनानी चाहिए।

भरत झुनझुनवाला

नब्बे के दशक में अमेरिका मुक्त व्यापार का समर्थक था। अमेरिका  ने बड़े जतन से विश्व व्यापार संधि को लागू किया था और वर्ल्ड ट्रेड ऑर्गेनाइजेशन (डब्ल्यूटीओ) बनवाया था। उस समय अमेरिका में नई तकनीकों का आविष्कार हो रहा था। जैसे माइक्रोसॉफ्ट कंपनी ने विंडोज सॉफ्टवेयर का आविष्कार किया था। इस सॉफ्टवेयर को बनाने में माइक्रोसॉफ्ट को लगभग एक डॉलर प्रति सॉफ्टवेयर का खर्च आता है जबकि उस समय वह दस डॉलर में बेच रहा था।

इसी प्रकार सिस्को सिस्टम के द्वारा इंटरनेट के राउटर, आईबीएम तथा ह्यूलेट पेकार्ड द्वारा कम्प्यूटर बना कर पूरी दुनिया को सप्लाई किए जा रहे थे। मोनसेंटो द्वारा जीन परिवर्तित बीज जैसे बीटी कॉटन बना कर निर्यात किए जा रहे थे। इन हाईटेक उत्पादों के निर्यात से अमेरिका को भारी लाभ हो रहा था इसलिए अमेरिका के लिए उस समय मुक्त व्यापार डबल लाभ का सौदा था। अमेरिकी कंपनियों को अपने हाईटेक उत्पादों को पूरी दुनिया में बेचने का मौका मिल रहा था। दूसरी तरफ भारत जैसे देशों से सस्ते कपड़े और खिलौने अमेरिकी उपभोक्ता को मिल रहे थे।

बीते दो दशक से परिस्थिति में मौलिक परिवर्तन हो गया है। आज अमेरिका में विंडो सॉफ्टवेयर जैसे नए उत्पाद नहीं बन रहे हैं। इंटरनेट का चीन ने अपना विकल्प बना लिया है। चीन तथा कोरिया में बड़ी संख्या में आधुनिक कम्प्यूटर बन रहे हैं। भारत में जीन परिवर्तित जैसे बीज महिको जैसी कंपनियां बना रही हैं। इस प्रकार अमेरिका के लिए हाईटेक उत्पादों का व्यापार करना कठिन हो गया है। फलस्वरूप अमेरिका के निर्यातक दबाव में हैं जबकि आयात बढ़ रहा है। आयातों के बढ़ने से अमेरिकी मजदूरों का हनन हो रहा है। जबकि हाईटेक उत्पादों के निर्यात में कमी आने से भी अमेरिकी इंजीनियरों का हनन हो रहा है।

इस समस्या से उबरने के लिए अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प ने भारत से आयातित होने वाले स्टील तथा चीन से आयातित होने वाले तमाम उत्पादों पर आयात कर बढ़ा दिए हैं। उनकी सोच है कि भारत तथा चीन से माल नहीं आएगा तो उनका उत्पादन अमेरिका में होगा। इसलिए ट्रम्प मुक्त व्यापार से पीछे हट रहे हैं। जिस मुक्त व्यापार को नब्बे के दशक में अमेरिका की समृद्धि का रास्ता समझा जा रहा था, उसी मुक्त व्यापार को अमेरिका में रोजगार हनन का कारण माना जा रहा है।

राष्ट्रपति ट्रम्प द्वारा मुक्त व्यापार से पीछे हटना अमेरिकी नागरिकों के लिए खट्टा मीठा परिणाम देगा। एक तरफ उनके लिए रोजगार बनेंगे क्योंकि भारत से स्टील तथा एल्युमीनियम कम आएगा और इनका उत्पादन अमेरिका में होगा।लेकिन दूसरी तरफ भारत के द्वारा प्रतिक्रिया में आयात कर बढ़ाने से अमेरिका के निर्यात भी घटेंगे। तकनीकी आविष्कारों की कमी के कारण अमेरिका  के निर्यात पहले ही प्रभावित थे। अब ये और ज्यादा प्रभावित होंगे। रोजगार की दृष्टि से ट्रम्प की पॉलिसी सही दिखती है। लेकिन साथ-साथ भारत के सस्ते स्टील व एल्युमीनियम के अनुपलब्ध हो जाने से अमेरिकी उपभोक्ता को इन मालों को अमेरिका में ऊंचे दाम पर खरीदना होगा।

इस पृष्ठभूमि में भारत को तय करना है कि हम मुक्त व्यापार को अपनाएंगे या इससे पीछे हटेंगे। मुक्त व्यापार के हमारे लिए दो पहलू हैं। पहला पहलू विदेशी निवेश का है। सोचा गया था कि मुक्त व्यापार के साथ अमेरिकी बहुराष्ट्रीय कंपनियां भारत में फैक्ट्रियां लगाएंगी जिससे भारत को उच्च तकनीकी एवं विदेशी निवेश दोनों मिलेगा। लेकिन जैसा ऊपर बताया गया है, आज अमेरिका के पास उच्च तकनीक न होने के कारण विदेशी निवेश के आधार पर भारत में इनका आना कम ही हो गया है। दूसरा पहलू है कि यदि हम वैश्वीकरण को अपनाए रखते हैं तो भी हमारे निर्यात कम होंगे।

इस परिस्थिति में मेरी दृष्टि से हमें भी ट्रम्प का अनुसरण करते हुए मुक्त व्यापार से पीछे हटकर संरक्षणवाद की नीति अपनानी चाहिए। विदेशी निवेश के स्थान पर घरेलू निवेश को प्रोत्साहन देना चाहिए। इस बात के पर्याप्त प्रमाण उपलब्ध हैं कि भारत के उद्यमी आज भारत में निवेश करने के स्थान पर विदेशों में कारखाने लगाना ज्यादा पसंद कर रहे हैं। विदेशी निवेश के माध्यम से नई तकनीकों को हासिल करने के स्थान पर भारत को स्वयं नई तकनीकों के आविष्कार के प्रयास करने चाहिए।

इस संरक्षणवाद को अपनाने में मुख्य समस्या सरकारी नौकरशाही की है। आज भारत सरकार के कुल बजट में लगभग पचास प्रतिशत रकम सरकारी कर्मचारी के वेतन एवं पेंशन में खप रही है। भारत सरकार को इनके वेतन अदा करने के लिए भारी मात्ना में बाजार से ऋ ण लेना पड़ रहा है। विदेशी निवेश के आने से भारत के मुद्रा बाजार में तरलता बढ़ती है और भारत सरकार के लिए ऋ ण लेना आसान हो जाता है। इसके विपरीत यदि घरेलू निवेश को बढ़ाया जाय तो घरेलू निवेशक और भारतीय सरकार अपने एक ही मुद्रा बाजार में एक दूसरे से प्रतिस्पर्धा करते हैं। इससे ब्याज दर बढ़ती है और भारत सरकार के लिए उधार लेना कठिन हो जाता है। इसलिए भारतीय नौकरशाही चाहती है कि विदेशी निवेश आए जिससे भारत सरकार के लिए ऋ ण लेना आसान हो जाए और उनको मिलने वाले वेतन तथा पेंशन में उत्तरोत्तर वृद्धि होती रहे। इसमें कोई व्यवधान उत्पन्न न हो।

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