इस्लामिक स्टेट को काबू में करने के लिए अमेरिका के साथ मिलकर काम नहीं करेंगे: तालिबान
By भाषा | Updated: October 9, 2021 18:16 IST2021-10-09T18:16:50+5:302021-10-09T18:16:50+5:30

इस्लामिक स्टेट को काबू में करने के लिए अमेरिका के साथ मिलकर काम नहीं करेंगे: तालिबान
वाशिंगटन, नौ अक्टूबर (एपी) अफगानिस्तान में कट्टरपंथी समूहों को काबू करने में अमेरिका के साथ सहयोग करने की संभावना को तालिबान ने शनिवार को सिरे से खारिज कर दिया। इसके साथ ही अफगानिस्तान से अमेरिकी बलों की अगस्त में पूरी तरह से वापसी के बाद अमेरिका तथा तालिबान के बीच होने जा रही पहली सीधी वार्ता के पहले तालिबान ने इस अहम मुद्दे पर सख्त रूख अपना लिया है।
अमेरिकी अधिकारी शनिवार और रविवार को तालिबान के वरिष्ठ अधिकारियों के साथ कतर की राजधानी दोहा में बैठक करेंगे।
इसका उद्देश्य विदेशी नागरिकों और ऐसे अफगान लोगों की अफगानिस्तान से निकासी को आसान बनाना है, जिन पर खतरा है। इसके अलावा, अफगानिस्तान में उग्रपंथी समूहों को नियंत्रित करने के बारे में भी बात हो सकती है। दोनों पक्षों के अधिकारियों ने यह जानकारी दी। तालिबान ने संकेत दिए हैं कि लोगों की अफगानिस्तान से निकासी को लेकर वह लचीला रूख अपना सकता है।
तालिबान के राजनीतिक प्रवक्ता सुहैल शाहीन ने एसोसिएटेड प्रेस को शनिवार को बताया कि अफगानिस्तान में तेजी से सक्रिय होते जा रहे इस्लामिक स्टेट समूह से जुड़े संगठनों को लेकर उसकी ओर से वाशिंगटन को किसी तरह का सहयोग नहीं दिया जाएगा। शाहीन ने कहा, ‘‘दाएश (इस्लामिक स्टेट) से अपने दम पर निबटने में हम सक्षम हैं।’’
गौरतलब है कि इस्लामिक स्टेट ने मस्जिद में नमाज के दौरान धमाके में 46 अल्पसंख्यक शियाओं की हुई मौत सहित हाल में अफगानिसतान में हुए कई हमलों की जिम्मेदारी ली है।
पूर्वी अफगानिस्तान में 2014 से आईएस ने देश के शिया मुस्लिम समुदाय पर निरंतर हमले किए हैं। वह अमेरिका के लिए भी बहुत बड़ा खतरा है।
इस सप्ताहांत हो रही बैठक अमेरिकी सैनिकों की अफगानिस्तान से पूरी तरह से वापसी के बाद पहली बार हो रही है। अमेरिकी सैनिकों की 20 साल की मौजूदगी के बाद अफगानिस्तान से वापसी हुई और तालिबान ने सत्ता पर कब्जा किया था। अमेरिका ने साफ किया है कि यह वार्ता तालिबान की सरकार को मान्यता देने के लिए नहीं है।
यह वार्ता पाकिस्तानी अधिकारियों और अमेरिका की उप विदेशमंत्री वेंडी शर्मन की इस्लामाबाद में हुई गंभीर विमर्श के बाद हो रही है जो अफगानिस्तान मुद्दे पर केंद्रित थी। पाकिस्तानी अधिकारियों ने अमेरिका से आह्वान किया था कि वह अफगानिस्तान की नयी सरकार से संपर्क बनाए और अर्थव्यवस्था को ध्वस्त होने से बचाने के लिए अरबों डॉलर के अंतरराष्ट्रीय कोष को जारी करे।
पाकिस्तान ने तालिबान को भी अधिक समावेशी बनने और अपने जातीय एवं धार्मिक अल्पसंख्यकों के मानवाधिकार पर ध्यान केंद्रित करने का संदेश दिया।
अफगानिस्तान के शिया धार्मिक नेताओं ने शुक्रवार के हमलों को लेकर तालिबान शासकों पर निशाना साधा और उनकी मस्जिदों को अधिक सुरक्षा मुहैया कराने की मांग की। वहीं, शुक्रवार को मस्जिद में हुए धमाके की जिम्मेदारी इस्लामिक स्टेट ने ली है और हमलावर की पहचान उइगर मुस्लिम के तौर पर की गई है।
दावे में कहा गया कि यह हमला शिया और तालिबान को निशाना बनाकर किया गया क्योंकि उन्होंने चीन की मांग के अनुरूप उइगर को देश से निकालने की इच्छा जताई है। अगस्त में अफगानिस्तान से विदेशी सैनिकों की वापसी के बाद यह सबसे बड़ा हमला था।
अमेरिका स्थित विल्सन सेंटर में एशिया प्रोग्राम के उप निदेशक माइकल कुगेलमैन ने कहा कि शुक्रवार के हमलों से और हिंसा बढ़ेगी।
अमेरिका के एक अधिकारी ने शुक्रवार को बताया कि कतर के दोहा में होने वाली वार्ता के केंद्र में अफगानिस्तान के तालिबान नेताओं से यह वादा लेना होगा कि वे अमेरिकी लोगों, विदेशी नागरिकों और अमेरिका सरकार तथा सेना के मददगार रहे अफगान सहयोगियों को अफगानिस्तान से निकलने की इजाजत दें।
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