पाक से रिश्ते सुधारने की हर कोशिश का स्वागत हो

By लोकमत समाचार हिंदी ब्यूरो | Published: August 23, 2018 02:39 PM2018-08-23T14:39:55+5:302018-08-23T14:39:55+5:30

हमारी सेना पाकिस्तान की बेशर्म हरकतों का लगातार मुंहतोड़ जवाब दे रही है, पर कहीं न कहीं यह बात दोनों पक्ष समझते हैं कि युद्ध हमारी समस्याओं का समाधान नहीं है।

Welcome every effort to improve relations with Pak | पाक से रिश्ते सुधारने की हर कोशिश का स्वागत हो

पाक से रिश्ते सुधारने की हर कोशिश का स्वागत हो

दिवंगत प्रधानमंत्नी अटल बिहारी वाजपेयी का यह कथन अक्सर दुहराया जाता है कि ‘हम दोस्तों को तो चुन सकते हैं, पर पड़ोसियों को नहीं।’ पड़ोसी हमेशा पड़ोसी रहेगा, और पड़ोस के रिश्तों को बनाए रखने का दायित्व दोनों पक्षों पर आता है। पड़ोस से रिश्तों वाली यह बात वाजपेयीजी ने भारत-पाकिस्तान के संदर्भ में कही थी। तब वे भारत के प्रधानमंत्नी थे।

तब वे दोस्ती और भाई-चारे का पैगाम लेकर बस से पाकिस्तान गए थे। दुर्भाग्य से पाकिस्तान ने भारत की इस अभूतपूर्व पहल का जवाब कारगिल पर हमले से दिया था। इस कार्रवाई से हमारे तत्कालीन प्रधानमंत्नी दुखी तो हुए थे, पर निराश नहीं। दोनों देशों के संबंधों को सुधारने की कोशिश उन्होंने जारी रखी और कारगिल के बावजूद पाकिस्तान के राष्ट्रपति को बातचीत के लिए आगरा बुलाया।

यह सही है कि पाकिस्तान की हठधर्मी के कारण आगरा का यह शिखर-सम्मेलन सफल नहीं हो पाया, पर इससे यह बात अवश्य रेखांकित हुई कि रिश्ते सुधारने की यह कवायद जारी रहनी चाहिए। 

तब से लेकर अब तक गंगा और ङोलम, दोनों, में बहुत पानी बह चुका है। आतंकवाद को शह देकर और भारतीय सीमा पर आक्रमण करके पाकिस्तान लगातार हठधर्मी का परिचय देता रहा है। हमारी सेना पाकिस्तान की बेशर्म हरकतों का लगातार मुंहतोड़ जवाब दे रही है, पर कहीं न कहीं यह बात दोनों पक्ष समझते हैं कि युद्ध हमारी समस्याओं का समाधान नहीं है।

सच तो यह है कि युद्ध किसी भी समस्या का समाधान नहीं है। शायद इसी समझ का परिणाम है कि जब भारत में भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार बनी तो हमारे प्रधानमंत्नी नरेंद्र मोदी ने अपने पड़ोसी देशों के शासनाध्यक्षों को शपथ-ग्रहण समारोह में भाग लेने के लिए आमंत्रित किया था, और पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्नी नवाज शरीफ समेत सार्क देशों के सभी शासनाध्यक्षों ने इस आमंत्नण को स्वीकार किया था।

अटल बिहारी वाजपेयी की पाकिस्तान की बस-यात्ना के साथ तुलना की गई थी तब प्रधानमंत्नी मोदी द्वारा पाकिस्तान के प्रधानमंत्नी को बुलाए जाने की। संबंध सुधारने की प्रधानमंत्नी मोदी की कोशिशें यहीं नहीं रुकीं। पाकिस्तानी प्रधानमंत्नी के जन्मदिन पर अचानक पाकिस्तान पहुंच कर हमारे प्रधानमंत्नी ने फिर से उन्हें गले लगाया। संदेश स्पष्ट था- सैनिक कार्रवाई हमारी समस्याओं का हल नहीं है। यह बात दूसरी है कि इस सबके बावजूद पाकिस्तान अपनी करनी से बाज नहीं आया। आतंकवादी हमले भी जारी रहे और हमारी सीमाओं पर घुसपैठ भी।

लेकिन यह बात अपनी जगह कायम है कि युद्ध किसी समस्या का समाधान नहीं होता। भारत ने यह बात भी हमेशा रेखांकित की है कि बातचीत से समस्या सुलझाने की कोशिश की उसकी नीति को किसी तरह की कमजोरी का परिणाम न समझा जाए। वाजपेयीजी इस बात को समझते थे और हमारे वर्तमान प्रधानमंत्नी भी अवश्य समझते होंगे कि शांति भारत और पाकिस्तान की साझा जरूरत है।  


नरसिंह राव के शासन-काल में, जब वाजपेयी विपक्ष में थे तो एक बार प्रधानमंत्नी ने एक वरिष्ठ राजनयिक को लोकसभा में विपक्षी नेता अटलजी के पास भेजा था कि वे उन्हें भारत-पाक रिश्तों की नवीनतम स्थिति से अवगत कराएं। उस राजनयिक का कहना है कि वाजपेयीजी ने दोनों देशों के रिश्ते सुधारने की नीति का समर्थन किया था, लेकिन इतना अवश्य कहा था कि इस संदर्भ में जब भी कोई प्रस्ताव पाकिस्तान के समक्ष रखा जाए तो ऐसा नहीं लगना चाहिए कि वह इसे हमारी कमजोरी का संकेत समङो। कहने की आवश्यकता नहीं है कि भारत की हर सरकार ने इस नीति का पालन किया है।

कारगिल-युद्ध के बाद आगरा शिखर सम्मेलन में भी यह बात साफ हो गई थी कि शांति-वर्ता हमारी कमजोरी नहीं, दोनों देशों की जरूरत है। भाजपा के नेतृत्व वाली वर्तमान सरकार भी पाकिस्तान की कायराना हरकतों के बावजूद इस नीति के अनुसार चलना चाह रही है। पाकिस्तान ही क्यों, चीन के संदर्भ में भी हमने इसी नीति का पालन किया है। यह सही है कि जब हमारे प्रधानमंत्नी अहमदाबाद में चीनी प्रधानमंत्नी को झूला झुला रहे थे तो चीनी सेना ने सीमा पर घुसपैठ की शर्मनाक हरकत की थी, पर इसके बावजूद बातचीत की नीति को हमने छोड़ा नहीं।

हमारे प्रधानमंत्नी गाली देने में नहीं, गले लगाने में विश्वास करते हैं। मामला चाहे कश्मीर में अपने नागरिकों का हो या फिर कश्मीर के एक हिस्से पर कब्जा जमाकर बैठे पाकिस्तान का, हमारी कोशिश हमेशा यही रही है कि शांति-पूर्ण तरीके से बातचीत के माध्यम से समस्या सुलझाई जाए।

पाकिस्तान के नए प्रधानमंत्नी इमरान खान को बधाई का संदेश भेजकर और अच्छे पड़ोसी रिश्तों के प्रति प्रतिबद्धता जताकर प्रधानमंत्नी मोदी ने इसी दिशा में एक नई पहल की है। प्रधानमंत्नी ने अपने संदेश में पाकिस्तान के प्रधानमंत्नी को दोनों नेताओं की टेलीफोन वार्ता का भी ध्यान दिलाया है जिसमें उन्होंने भारतीय उपमहाद्वीप में शांति, सुरक्षा और समृद्धि के साझा सपने की बात की थी। संदेश में ‘अर्थपूर्ण और सकारात्मक कार्रवाई’ की बात भी कही गई है। हमारे प्रधानमंत्नी की इस पहल के संदर्भ में पाकिस्तान के नए विदेशमंत्नी ने दोनों देशों में बातचीत की संभावनाओं को पा किया है।

इस पहल को दोनों देशों में बातचीत का रास्ता अपनाने की पेशकश बताए जाने पर देश में कुछ लोगों को आपत्ति हो रही है। कुछ लोगों को लग रहा है कि जब पाकिस्तान की सेना हमारे सैनिकों पर गोलियां चला रही है तो भारत के प्रधानमंत्नी को बातचीत का प्रस्ताव रखते हुए बताया जाना भारत को कमजोर दिखाने की कोशिश है। देखा जाए तो यह ‘बात का बतंगड़’  बनाए जाने वाली बात है। अपनी सीमाओं की रक्षा करने और अपने सैनिकों के बलिदान का बदला लेने में भारत पूरी तरह सक्षम है। पाकिस्तान की अब तक की सारी शर्मनाक कोशिशों को हमने विफल बनाया है।

ऐसे में भारत के प्रधानमंत्नी की ‘सकारात्मक कार्रवाई’ की बात हमारी कमजोरी नहीं, हमारी ताकत और नेकनीयती का ही संकेत है। पाकिस्तान के विदेशमंत्नी यदि इसे बातचीत की इच्छा का संकेत मानते हैं, तो इसे उनकी बुरी नीयत के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए। 

भारत और पाकिस्तान के रिश्तों को सुधारने के हर अवसर और हर कोशिश का स्वागत किया जाना चाहिए। हालांकि अबतक का पाकिस्तान का इतिहास इस संदर्भ में ‘गलत कार्रवाई’ वाला ही रहा है, पर गलती को सुधारने की मंशा की संभावनाओं को क्यों नकारा जाए? पाकिस्तानी विदेश मंत्नी की शब्दावली पर विरोध जताना भी वैसी ही बात का बतंगड़ बनाना है जैसा नवजोतसिंह सिद्धू  के इमरान खान की ताजपोशी में शामिल होने पर हल्ला मचाना।

पाकिस्तानी सेनापति के गले मिलना सिद्धू के अति उत्साह का परिणाम हो सकता है, पर इसे अपराध घोषित करके तो हम अपने प्रधानमंत्नी की गले मिलने की नीति पर ही प्रश्नचिह्न् लगाएंगे।

हालांकि ‘जरा फासले से मिला करो’  की बशीर बद्र जैसे वरिष्ठ शायर की सलाह का अपना महत्व है, पर उन्होंने यह भी कहा है- ‘दुश्मनी जम कर करो, लेकिन यह गुंजाइश रहे/ फिर कभी हम दोस्त बन जाएं तो शर्मिदा न हों।’ यह बात हमसे ज्यादा पाकिस्तान को समझनी है। और यह भी समझना है कि साथ जीने के अलावा कोई विकल्प नहीं है

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