रूस तैनात करेगा विध्वंसक मिसाइल जिरकोन, 7400 किमी प्रति घंटा की रफ्तार वाली मिसाइल यूरोप तक कर सकती है मार
By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: March 12, 2019 12:01 PM2019-03-12T12:01:25+5:302019-03-12T12:25:55+5:30
अमेरिका और रूस द्वारा मध्यम दूरी की मारक क्षमता वाली परमाणु बल संधि' (इंटरमीडिएट-रेंज न्यूक्लियर फोर्स ट्रीटी यानी INF संधि) से अलग होने के बाद दुनिया पर तीसरे विश्व युद्ध का खतरा मंडरा रहा है। दोनों देश इस संधि से मार्च के पहले हफ्ते में अलग हुए हैं। दोनों देशों के बीच यह संधि शीत युद्ध के दौर में 1987 में हुई थी।
रूस हाइपरसोनिक मिसाइल जिरकोन को पहली बार 2019 के अंत तक सैन्य जहाज से लॉन्च करेगा। समाचार एजेंसी TASS के अनुसार इस मिसाइल को एडमिरल गोर्शकोव-क्लास फ्रिगेट पर तैनात किया जाएगा। इसके अलावा रूस के पास सरमट, किंझल, एवनगार्ड, पानी के नीचे से स्वतः मार करने वाली परमाणु मिसाइल, असीमित रेंज वाली जैसी क्रूज मिसाइलें हैं जो दुनिया को मिनटों में तबाह कर सकती है।
अभी पिछले महीने ही अमेरिका और रूस के बीच 1987 में हुई 'मध्यम दूरी की मारक क्षमता वाली परमाणु बल संधि' (इंटरमीडिएट-रेंज न्यूक्लियर फोर्स ट्रीटी यानी INF संधि) से दोनों अलग हुए थे। इस संधि के टूटने के बाद रूस का यह पहला बड़ा सैन्य फैसला है।
विध्वंसक मिसाइल है जिरकोन
जिरकोन नाम की इस हाइपरसोनिक एंटी-शिप मिसाइल की रफ्तार लगभग 7400 किमी. प्रति घंटा है। लॉन्च करने के बाद इसका पता लगाना या मार गिराना मुश्किल है। दो साल पहले रूसी रक्षा मंत्रालय ने इसकी पहली तस्वीर जारी की थी। इस मिसाइल की क्षमता 400 किमी बताई जा रही है। रूस अपनी नई हाइपरसोनिक मिसाइल के जरिये पांच मिनट से भी कम समय में यूरोप में अमेरिकी सैन्य ठिकानों को ध्वस्त कर सकता है।
शीत युद्ध के समय हुई थी मिसाइल संधि
इंटरमीडिएट रेंज न्यूक्लियर फोर्स यानी आईएनएफ संधि शीत युद्ध के जमाने में अमेरिकी राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन और रूसी राष्ट्रपति मिखाइल गोर्बाच्योफ के बीच हुआ था। आईएनएफ संधि के तहत रूस और अमरीका पर छोटी और मध्य दूरी की मिसाइलें इस्तेमाल पर प्रतिबंध था। हालांकि अमेरिका लगातार यह आरोप लगाता रहा है कि रूस इस संधि का उल्लंघन कर रहा है। फरवरी 2019 में पहले अमेरिका ने इस संधि के अलग होने की घोषणा की, उसके बाद रूस ने भी करार तोड़ दिया।
यह संधि 500 से 5,500 किलोमीटर दूरी तक मारक क्षमता वाली जमीन से दागी जाने वाली मिसाइलों पर प्रतिबंध लगाती थी। इस संधि से पश्चिमी देशों पर सोवियत संघ के परमाणु हमले के खतरे को खत्म कर दिया था।
चीन को भी है डर
रूस के ताकतवत राष्ट्रपति पुतिन ने अतीत में धमकी दी थी कि अगर आईएनएफ को रद्द किया जाता है तो रूस इस संधि के तहत प्रतिबंधित परमाणु मिसाइल को विकसित करेगा। पुतिन ने यह भी कहा है कि यह संधि तोड़ने के बाद अगर अमेरिका यूरोप में अधिक मिसाइलें लगाने के लिए कदम उठाता है तो रूस भी उसी तरह से जवाब देगा। साथ ही अगर यूरोप का कोई भी देश अपने यहां अमेरिकी मिसाइलें लगाने के लिए सहमति देता है तो उसपर रूसी हमले का खतरा मंडराएगा। चीन ने अमेरिका से अपील की कि वह संधि से अलग होने के बजाए रूस से बातचीत करे। लेकिन अब संधि टूट चुकी है।
बढ़ सकता है रूस और अमेरिका के बीच टकराव
रक्षा विश्लेषक मान रहे हैं कि रूस के इस मिसाइल की तैनाती के बाद अमेरिका से उसका टकराव बढ़ सकता है। दोनों देश इस संधि से मार्च के पहले हफ्ते में अलग हुए हैं। दोनों देशों के बीच यह संधि शीत युद्ध के दौर में 1987 में हुई थी।
कुछ दिनों पहले ही अमेरिका में रूस के राजदूत एनाटोली एंटोनोव ने कहा है कि यदि अमेरिका यूरोपीय क्षेत्र हथियारों को तैनात करता है, तो रूस पूरे यूरोपीय देशों में मार कर सकने वाली मिसाइल तैनात करने के लिए मजबूर हो सकता है।