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बार-बार और त्वरित कोविड- 19 जांच से एक हफ्ते में संक्रमण का प्रसार रोका जा सकता है : अध्ययन

By भाषा | Updated: November 22, 2020 16:35 IST

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ह्यूस्टन, 22 नवंबर हर हफ्ते अगर करीब आधी आबादी की रैपिड एंटीजन पद्धति से कोविड-19 जांच की जाती है तो इस महामारी को महज कुछ हफ्तों में खात्मे की ओर ले जाया जा सकता है, भले ही यह जांच आरटी-पीसीआर के मुकाबले कम विश्वसनीय रैपिड एंटीजन किट से हो। यह दावा एक नए अध्ययन में किया गया है।

जर्नल ऑफ साइंस एडवांस में प्रकाशित अनुसंधान में रेखांकित किया गया है कि ऐसी रणनीति में कुछ लोगों को ही घर पर रखने की जरूरत होगी न कि रेस्तरां, बार, बाजार और स्कूल बंद करने की ।

इस अनुसंधान में शामिल अमेरिका के बोल्डर स्थित यूनिवर्सिटी ऑफ कोलोराडो सहित विभिन्न संस्थानों के वैज्ञानिक ने कहा कि इस समय कोविड-19 जांच के लिए इस्तेमाल किट की संवेदनशीलता में काफी विविधता है।

उन्होंने कहा कि संक्रमण का पता लगाने के लिए एंटीजन जांच में आरटी-पीसीआर जांच के मुकाबले 1,000 गुना अधिक वायरस की मौजूदगी की जरूरत होती है।

अध्ययन में कहा गया कि एक अन्य जांच आरटी-लैम्प में भी आरटी-पीसीआर जांच के मुकाबले 100 गुना वायरस की मौजूदगी होनी चाहिए।

वैज्ञानिकों ने कहा कि अब तक मानक बने आरटी-पीसीआर जांच में संक्रमण का पता लगाने के लिए एक मिलीमीटर नमूने में 5,000 से 10,000 प्रति वायरस के अनुवांशिकी तत्व आरएनए की मौजूदगी होनी चाहिए। इसका अभिप्राय है कि इस पद्धति से या तो शुरुआती चरण में या फिर अंतिम चरण में संक्रमण का पता चलता है।

यूनिवर्सिटी ऑफ कोलोराडो में कार्यरत और अनुसंधान पत्र के प्रमुख लेखक डेनियल लैरेमोर ने कहा, ‘‘ हमारे अध्ययन की बड़ी तस्वीर यह है कि जब जन स्वास्थ्य की बात आती है तो बेहतर है कि आज नतीजे देने वाली कम संवेदनशील जांच की जाए बजाय कि नतीजों में देरी होने वाले अधिक संवेदनशील जांच की जाए।’’

उन्होंने कहा, ‘‘सभी लोगों को घर में रहने की सलाह देने के बजाय आपको सुनिश्चित करना चाहिए कि एक व्यक्ति जो संक्रमित है वह संक्रमण नहीं फैलाए, हमें केवल संक्रमित लोगों को ही घर में रहने का आदेश देना चाहिए ताकि बाकी लोग बाहर अपनी जिंदगी जी सके।’’

इस अध्ययन में वैज्ञानिको ने यह आकलन किया कि क्या जांच की संवेदनशीलता, बार-बार जांच और प्रक्रिया को पूरी करने में लगने वाला समय कोविड-19 को नियंत्रित करने में सबसे अहम है।

वैज्ञानिकों ने संक्रमण के दौरान शरीर में वायरस की संख्या में उतार-चढ़ाव को लेकर उपलब्ध साहित्य का विश्लेषण किया। उन्होंने यह अध्ययन किया कि कब लोग संक्रमण के लक्षण महसूस करते हैं और कब वे दूसरे में संक्रमण फैला सकते हैं।

अनुसंधानकर्ताओं ने गणित आधारित मॉडल की मदद से तीन संभावित परिस्थितियों में जांच से होने वाले असर का पूर्वानुमान लगाया। पहली स्थिति में 10 हजार आबादी, दूसरी स्थिति में विश्वविद्यालय स्तर पर 20 हजार की आबादी और तीसरी स्थिति में 84 लाख आबादी वाला शहर।

उन्होंने अध्ययन में पाया कि जब संक्रमण को नियंत्रित करने का सवाल आता है तो बार-बार जांच और जांच में लगने वाला समय जांच की सवेंदनशीलता से अधिक अहम हो जाते हैं।

वैज्ञानिकों ने उदाहरण देते हुए कहा कि अगर बड़े शहर में सप्ताह में दो बार बड़े पैमाने पर लेकिन कम संवेदनशील रैपिड एंटीजन जांच की जाती है तो वायरस के प्रसार की दर को 80 प्रतिशत तक कम किया जा सकता है।

उन्होंने कहा कि अगर इसी प्रकार सप्ताह में दो बार आरटी-पीसीआर से जांच की जाती है जिसके नतीजे आने में 48 घंटे लग जाते हैं तो संक्रमण को फैलने से केवल 58 प्रतिशत तक ही रोका जा सकता है।

वैज्ञानिकों ने कहा कि इसकी वजह यह है कि करीब दो तिहाई संक्रमितों में कोई लक्षण नहीं होता और वे नतीजों का इंतजार करते हैं व इस दौरान संक्रमण फैलाते हैं।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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