पाकिस्तान: ईशनिंदा के आरोप में प्रोफेसर को मौत की सजा सुनाई गई
By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: December 22, 2019 08:34 AM2019-12-22T08:34:56+5:302019-12-22T08:34:56+5:30
बहाउद्दीन ज़कारिया विश्वविद्यालय के व्याख्याता 33 वर्षीय जुनैद हफीज को मार्च 2013 में पैगंबर मोहम्मद के खिलाफ सोशल मीडिया पर अपमानजनक टिप्पणी करने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था।
पाकिस्तान की एक अदालत ने शनिवार को मुल्तान स्थित विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर जुनैद हफीज को ईश निंदा के आरोप में मौत की सजा सुनाई। छह साल पहले 2013 में हफीज पर ईशनिंदा का आरोप लगा था। आलोचकों का कहना है कि अल्पसंख्यकों और उदारवादियों को निशाना बनाने के लिए अक्सर इस कानून का इस्तेमाल किया जाता है।
बहाउद्दीन जकारिया विश्वविद्यालय में अंग्रेजी साहित्य विभाग में पूर्व प्रोफेसर हाफिज को ईशनिंदा के आरोप में 13 मार्च, 2013 में गिरफ्तार किया गया था। वहीं मामले में ट्रायल 2014 में शुरू हुआ। हफीज पर पैगंबर मोहम्मद के खिलाफ सोशल मीडिया पर अपमानजनक टिप्पणी करने के आरोप थे।
बहाउद्दीन ज़कारिया विश्वविद्यालय के व्याख्याता 33 वर्षीय जुनैद हफीज को मार्च 2013 में पैगंबर मोहम्मद के खिलाफ सोशल मीडिया पर अपमानजनक टिप्पणी करने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। मुस्लिम बहुल पाकिस्तान में ईश निंदा बेहद संवेदनशील मुद्दा है, जहां इसके खिलाफ कानून में मौत की सजा प्रावधान है। कई बार ये आरोप लगने के बाद भीड़ आरोपी लोगों की हत्या कर देती है।
हाफ़िज़ की सजा की घोषणा मध्य शहर मुल्तान में की गई थी, जहां वह अपनी गिरफ़्तारी के समय विश्वविद्यालय के प्रोफेसर थे। हिन्दुस्तान टाइम्स में छपी खबर के अनुसार, उनके वकील असद जमाल ने निर्णय को "दुर्भाग्यपूर्ण" करार दिया और कहा कि फैसले के खिलाफ अपील करेंगे। हफीज ने कहा है कि उन्हें एक धार्मिक पार्टी के छात्र कार्यकर्ताओं द्वारा फंसाया गया था क्योंकि उन्होंने पहले विश्वविद्यालय में उनकी नियुक्ति पर आपत्ति जताई थी।
हफीज को बीते छह सालों से ईशनिंदा के झूठे आरोप में मुल्तान के सेंट्रल जेल में कैद कर रखा गया है। हाफिज के पहले वकील राशिद रहमान की उनके ऑफिस में मई 2014 में गोली मार कर हत्या कर दी गई थी। उनका दूसरा वकील मामले से हट गया और सुनवाई में एक तीसरे वकील को धमकी दी गई। उनके जेल में बंद रहने के दौरान करीब नौ न्यायाधीशों का तबादला हो चुका है।
कई मामलों में ये देखा गया कि पाकिस्तान में निचली अदालतें धार्मिक दलों से न्यायाधीशों को मिलने वाले खतरों के कारण ईशनिंदा के आरोप में मौत की सजा देती हैं। इन मामलों को फिर उच्च न्यायालय के स्तर पर पलट दिया जाता है। एकमात्र अपवाद आसिया बीबी का मामला था जिसकी अपील को 2014 में लाहौर उच्च न्यायालय ने खारिज कर दिया था और उसके खिलाफ अपर्याप्त सबूतों के आधार पर 2018 में पाकिस्तान सुप्रीम कोर्ट द्वारा उसे राहत प्रदान की गई थी।