क्या है मालदीव में गहराते संकट का कारण- राजनीति या फिर पारिवारिक, जाने पूरा मामला
By ऐश्वर्य अवस्थी | Updated: February 9, 2018 18:55 IST2018-02-09T18:51:56+5:302018-02-09T18:55:01+5:30
पिछले कुछ दिनों से चारों और पानी और प्रकृति के बीच स्थित 1200 खूबसूरत द्वीपों से बना छोटा सा देश मालदीव चर्चा का विषय बना हुआ है।

क्या है मालदीव में गहराते संकट का कारण- राजनीति या फिर पारिवारिक, जाने पूरा मामला
पिछले कुछ दिनों से चारों और पानी और प्रकृति के बीच स्थित 1200 खूबसूरत द्वीपों से बना छोटा सा देश मालदीव चर्चा का विषय बना हुआ है। पूरे देशे अशांति का माहौल देखने को मिल रहा है। कहा जा रहा है कि यहां चल रहे राजनीतिक संकट का प्रभाव विश्व के कई अहम देशों पर पड़ेगा। उच्च न्यायालय के फैसले के उलट वहां के राष्ट्रपति अब्दुल्ला यमीन ने देश में आपातकाल की घोषणा कर दी है। ऐसे में सांस्कृतिक और आर्थिक रूप से मालदीव के पड़ोसी मुल्कों पर असर पड़ेगा। वहीं, इस देश की खूबसूरती को निगाहों में बसाने के लिए हजारो सैलानी हर साल यहां जाते हैं। लेकिन जिस तरह से देश में राजनितिक संकट उत्पन्न हुआ है उससे हर किसी की निगाहें इस पर ठहर गई हैं। इसे राजनीतिक संकट कहा जाए या फिर लोकतात्रिक इसे अभी साफ तौर पर नहीं कहा जा सकता है। आइए जानते हैं कि आखिर किस तरह से मालदीव आज इस संकट की स्थिति में घिर गया है।
ब्रिटेन से मिली थी आजादी
1965 मालदीव के लिए बेहद खास माना जाता है क्योंकि इसी साल मालदीव को ब्रिटेन का गुलामी से आजादी मिली थी, जिसके बाद भी यहां राजशाही का रूप रहा। 1968 में इस देश को पूर्ण रुप से गणतंत्र घोषित करारा गया। उस समय देश के इब्राहिम नासिर पहले राष्ट्रपति बने थे।इसके बाद वर्ष 1972 में अहमद जकी को प्रधानमंत्री बने। लेकिन 1975 में देश में तख्तापलट ने उन्हें एक द्वीप पर भेज दिया गया।
इसके बाद देश के आर्थिक हालात खराब हो गई। उस वक्त राष्ट्रपति नासिर 1978 में सरकारी खजानें से लाखों रुपए लेकर सिंगापुर चले गए। जिसके बाद मायदीव की सत्ताम में 30 साल तक रहे मोमून अब्दुल गयूम। उन्हें हटाने के लिए तीन बार प्रयास किए गए थे, लेकिन हमेशा नाकामयाबी हासिल हुई। 2003 में एक पत्रकार मोहम्मद नशीद ने मालदीवियन डेमोक्रैटिक पार्टी का गठन किया और गयूम सरकार पर राजनीतिक सुधार करने के लिए जोर दिया। जिसके बाद ये यहां का राजनीति रूप बदलना शुरू हुआ
आजादी के सालों बाद बना संविधान![]()
आजादी के सालों बाद 2008 में यहां संविधान का गठन किया गया। जिसके बाद यहां पहली बार राष्ट्रपति के लिए सीधे चुनाव हुए। इस चुनाव में मुहम्मद ने जीत दर्ज की जिसके बाद गयूम सत्ता से बाहर हो गए। यहां से सत्ता में परिवर्तन और संघर्ष दोनों शुरू हो गया था।
क्या है यहां का संकट
मालदीव में इस वक्त जो संकट है उस समझना आसान नहीं है। देश की सत्ता जब से नशीद ने संभाली तब से ही उन्हें हटाने के लिए प्रयास जारी है। सत्ता में आने के बाद से ही नशीद ने पर्यटन क्षेत्र की नीतियों फेर बदल करना शुरू किया। कहा जाता है कि नशीद के कुछ सलाहकार ब्रितानी भी थे। नशीद ने हिंद महासागर में अमरीका और ब्रिटेन को प्रवेश देना चाहा। जिससे मालदीव के कुछ वर्ग उनसे नाराज हो गए। उसके बाद से ही ये संघर्ष जारी है। 2011 में उन्होंने एक अभियान शुरू किया जिसका वहां की पुलिस और सेना ने नशीद के खिलाफ विद्रोह किया जिसके बाद नशीद को इस्तीफा देना जजो ने कुछ फैसले लिए थे जो नशीद को पसंद नहीं आए। बाद में तमाम सुरक्षा बलों ने उन्हें घेर लिया और उनसे इस्तीफा देने के लिए कहा गया। इसके बाद साल 2013 में चुनाव हुए, जिन्होंने नशीर को एक बार फिर से सत्ता दिलाई, हांलाकि इन परिणानों को कोर्ट ने अघोषित करारा था। इसके बाद दूसरे दौर में पूर्व राष्ट्रपति के सौतेले भाई अब्दुल्ला यामीन को ज्यादा वोट मिले और राष्ट्रपति बन गए।
नशीद के बाद मीन पर कैसे मंडराया ये संकट
जब नशीद को सत्ता से हटाया गया तो यामीन के हाथों में सत्ता गई थी। जिसमें सबसे अहम भूमिका पूर्व राष्ट्रपति गयूम ने निभाई थी। अब ऐसे में सवाल ये उठता है कि यामीन के लिए मुश्किलें क्यों खड़ी हो गई है। दरअसल कहा जा रहा है कि यामीन को लाने में गयूम का हाथ था ऐसे नें गयूम फिलहाल यामीन की पाार्टी से अलग है देखा जाए तो ये एक तरह से परिवार का भी झगड़ा है। बेटे पर आरोप लगने के बाद गयूम और यामीन में विवाद होने लगा, ऐसे में इसे परिवार बाद का रूप मिल गया है जो देश पर भारी पड़ता नजर आ रहा है।
क्यों स्थिरता की ओर नहीं बढ़ पा रहा है मालदीव
नशीद के जो मालदीव में हुआ उससे लोकतंत्र बुनियाद ही कमडोर पड़ी है। यहीं एक कारण है कि वहां अभी भी राजनीतिक स्थिरता नहीं आ रही है। गयूम ने काफी लंबे समय तक राज किया। इसके बाद लोकतांत्रिक सरकार बनी और लोकतांत्रिक सरकार इतने कम समय तक रही कि वहां कि आंतरिक प्रणाली ही कमजोर हो गई है अब ऐसे में लेकतंत्र का कमजोर होना तो लाज्मि है।
इसी संकट के बीच विपक्षी नेता और पूर्व राष्ट्रपति मोहम्मद नशीद ने भारत से भी मदद की गुहार लगाई। कहा जाता है कि यामीन ने चीन के साथ अपनी नजदकियां बढ़ाई हैं। नशीद को पद से जब हटाया गया था उसके 24 घंटे के अंदर मनमोहन सरकार ने उस फैसले का समर्थन किया था। चीन की मदद से ही यामीन अमेरिका ब्रिटेन समेत लोकतांत्रिक देशो को नजरअंदाज कर सत्ता बैठे हुए हैं। अब यामीन ने चीन के साथ साथ मालदीव के साथ भी अपनी नजदकियां बढ़ा दी है। मालदीव क्षेत्रफल के हिसाब से एशिया का सबसे छोटा देश है। पूरी दुनिया से लोग यहां घूमने आते है इसके बाद भी इस देश पर विदेशी कर्ज है। देश के बजट का एक बड़ा हिस्सा तो कर्ज चुकाने में ही निकल जाता है। ऐसे में ये संकट अब पारिवारवार के साथ आर्थिक में भी बदल गया है।
