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इमरान खान ने पाकिस्तान को अमेरिकी कृतघ्नता का शिकार बताया

By भाषा | Updated: September 25, 2021 13:16 IST

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न्यूयॉर्क, 25 सितंबर (एपी) पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में दिए संबोधन में अपने देश को अमेरिकी कृतघ्नता का और अंतरराष्ट्रीय दोहरेपन का पीड़ित दिखाने की कोशिश की।

इमरान खान का पूर्व रिकॉर्डेड भाषण शुक्रवार शाम को प्रसारित किया गया जिसमें उन्होंने जलवायु परिवर्तन, वैश्विक इस्लामोफोबिया और “भ्रष्ट विशिष्ट वर्गों द्वारा विकासशील देशों की लूट” जैसे कई विषयों पर बात की। अपनी अंतिम बात को उन्होंने ईस्ट इंडिया कंपनी के भारत के साथ किए गए बर्ताव से जोड़ कर समझाने की कोशिश की।

खान ने भारत सरकार के लिए कठोर शब्दों का इस्तेमाल करते हुए एक बार फिर भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार को ‘हिंदू राष्ट्रवादी सरकार’ और “फासीवादी” बताया।

खान ने अमेरिका को लेकर गुस्सा और दुख जाहिर किया और उस पर पाकिस्तान तथा अफगानिस्तान दोनों का साथ छोड़ देने का आरोप लगाया।

खान ने कहा, “अफगानिस्तान में मौजूदा स्थिति के लिए, कुछ कारणों से, अमेरिका के नेताओं और यूरोप में कुछ नेताओं द्वारा पाकिस्तान को कई घटनाओं के लिए दोष दिया गया।” उन्होंने कहा, “इस मंच से, मैं उन सबको बताना चाहता हूं कि अफगानिस्तान के अलावा जिस देश को सबसे ज्यादा सहना पड़ा है, वह पाकिस्तान है जिसने 9/11 के बाद आतंकवाद के खिलाफ अमेरिकी युद्ध में उसका साथ दिया।”

खान ने कहा कि अमेरिका ने 1990 में अपने पूर्व साथी (पाकिस्तान) को प्रतिबंधित कर दिया था लेकिन 9/11 के हमलों के बाद फिर से उसका साथ मांगा। खान ने कहा कि अमेरिका को पाकिस्तान की तरफ से मदद दी गई लेकिन 80,000 पाकिस्तानी लोगों को जान गंवानी पड़ी। इसके अलावा देश में आंतरिक संघर्ष और असंतोष भी उपजा, वहीं अमेरिका ने ड्रोन हमले भी किए।

खान ने कहा कि ‘‘तारीफ’’ के बजाय पाकिस्तान के हिस्से सिर्फ इल्जाम आया।

खान के शांति कायम करने के बयानों के बावजूद, कई अफ़गानों ने अफगानिस्तान में तालिबान के पुनरुत्थान के लिए पाकिस्तान को तालिबान से उसके करीबी संबंधों के कारण दोषी ठहराया है।

अगस्त में संयुक्त राष्ट्र ने भी अफगानिस्तान पर एक विशेष बैठक में अपना पक्ष रखने के पाकिस्तान के अनुरोध को खारिज कर दिया था जो अंतरराष्ट्रीय समुदाय के साझा संदेह को दर्शाता है।

अपने भाषण में, खान ने उन्हीं बातों को दोहराया, जो उनके विदेश मंत्री, शाह महमूद कुरैशी ने संयुक्त राष्ट्र में इस सप्ताह की शुरुआत में कही थी कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय को तालिबान को अलग नहीं करना चाहिए, बल्कि वहां के लोगों की भलाई के लिए वर्तमान अफगान सरकार को मजबूत करना चाहिए।

उन्होंने तालिबान शासन के बारे में आशावादी लहजे में कहा कि उनके नेताओं ने मानवाधिकारों, एक समावेशी सरकार और अफगानिस्तान की धरती पर आतंकवादियों को पनपने नहीं देने की प्रतिबद्धता जताई है।

खान ने भी उसी समुदाय पर अपना गुस्सा उतारा, जिसे वह भारत को दिए गए एक मुफ्त पास के रूप में मानता है।

उन्होंने कहा, “यह दुर्भाग्यपूर्ण है, बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है कि मानवाधिकारों के उल्लंघन के प्रति दुनिया के दृष्टिकोण में समानता का अभाव है, और यहां तक कि चयनात्मक भी है। भू-राजनीतिक विचार, या कॉर्पोरेट हित, वाणिज्यिक हित अक्सर प्रमुख शक्तियों को अपने संबद्ध देशों के अपराधों की अनदेखी करने के लिए मजबूर करते हैं।”

लिंचिंग, सामूहिक हत्या और “भेदभावपूर्ण” नागरिकता कानून समेत उन्होंने कई ऐसी कार्रवाइयां कीं, जिन्होंने "भारत के 20 करोड़ मजबूत मुस्लिम समुदाय के खिलाफ भय और हिंसा का राज बना दिया।”

खान ने कहा, “नई दिल्ली ने वह भी शुरू कर दिया है जिसे वह जम्मू-कश्मीर विवाद का अंतिम समाधान कहता है।” अपने शब्दों में भारतीय बलों द्वारा किए गए "मानव अधिकारों के घोर और व्यवस्थित उल्लंघन" की एक सूची रखते हुए उन्होंने यह बातें रखीं।

उन्होंने विशेष रूप से "महान कश्मीरी नेता सैयद अली गिलानी के पार्थिव शरीर को जबरन छीनने" की निंदा की, जिनकी इस महीने की शुरुआत में 91 वर्ष की आयु में मृत्यु हो गई थी।

गिलानी के परिवार ने कहा है कि कश्मीर में सम्मानित अलगाववादी नेता को उचित इस्लामी परंपरा से न दफनाते हुए अधिकारी उनका शव ले लिया और उनकी सहमति के बिना गिलानी को दफन कर दिया।

खान ने महासभा से गिलानी के उचित अंत्येष्टि और संस्कार की मांग करने का आह्वान किया।

पाकिस्तानी प्रधानमंत्री ने कहा कि उनका देश शांति चाहता है, लेकिन यह भारत की जिम्मेदारी है कि वह सार्थक रूप से बातचीत करे।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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