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जलवायु-प्रेरित महासागर परिवर्तन पांच तरीकों से मानव स्वास्थ्य को खतरे में डाल सकते हैं

By भाषा | Updated: August 1, 2021 13:32 IST

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(लावल यूनिवर्सिटी से टिफ-एनी केनी, यूनिवर्सिटी ऑफ ओटावा से मलाया बिशप और लावल यूनिवर्सिटी से मेलानी लेमायर)

क्यूबेक सिटी/ओटावा, एक अगस्त (द कन्वरसेशन) मनुष्यों का समुद्र के साथ बहुत गहरा और जटिल रिश्ता रहा है। यह मनुष्यों को खाद्य सामग्री और जरूरी पोषक तत्व, दवाइयां और नवीकरणीय ऊर्जा उपलब्ध कराता है। लोग इन नीले समंदर में तैरते हैं, सर्फ करते हैं और स्कूबा डाइव का आनंद लेते हैं। यह युद्ध के शूरवीरों और ऑटिज्म से ग्रस्त बच्चों के लिए सर्फ थेरेपी का साधन बनकर नैदानिक चिकित्सा का अहम हिस्सा है।

अर्थव्यवस्थाएं समुद्र से भी जुड़ी होती हैं। मछली पकड़ना, पर्यटन, समुद्री परिवहन और जहाजों के परिचालन से रोजगार मिलते हैं, आय होती है और खाद्य सुरक्षा होती है, वहीं यह संस्कृति और स्वास्थ्य से भी जुड़ा है। लेकिन बढ़ते ग्रीन हाउस गैस के उत्सर्जन से महासागर में परिवर्तन हो रहा है जिससे हमारा स्वास्थ्य खतरे में है।

महासागर का पानी अब गर्म, अधिक अम्लीय और कम ऑक्सीजन क्षमता वाला है। महासागर पारिस्थितिकी तंत्र पहले से ही अत्यधिक मछली पकड़ने और प्रदूषण से दबाव में हैं,अब स्थिति और खराब होने का खतरा है। समुद्री बर्फ के पिघलने, समुद्र के बढ़ते जलस्तर और बढ़ती मौसमी घटनाओं के साथ विशेष कर तटीय आबादी वाले क्षेत्रों में मानव स्वास्थ्य और उनका कुशल क्षेम अब कई खतरों का सामना कर रहा है।

1. जलीय आपदाएं

जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाली प्राकृतिक आपदाएं चरम पर हैं और लगातार हो रही हैं। उदाहरण के लिए 20वीं सदी की शुरुआत से अब तक 13.3 लाख लोगों की जान ले चुके उष्णकटिबंधीय चक्रवात (जैसे तूफान और टाइफून) समुद्र के गर्म होते पानी के साथ और अधिक तीव्र होते जा रहे हैं।

2. पलायन और विस्थापन

वैश्विक समुद्र स्तर के बढ़ने के साथ तटीय क्षेत्रों में बाढ़ की घटनाएं अब सामान्य और गंभीर होती जा रही है। सदी के अंत तक एक और 250,000 वर्ग किलोमीटर तटीय क्षेत्रों में बाढ़ का अनुमान है, जिससे लाखों लोगों पर खतरा मंडरा रहा है। समुद्र में पानी बढ़ने, कटाव से कुछ तटीय बस्तियों के लोगों के लिए वहां रहना कठिन या असंभव बन सकता है। उदाहरण के लिए तटीय तूफान की घटनाओं और ध्रुवीय क्षेत्रों में बर्फ के पिघलने से न्यूटोक (निउगताक) के युपिक गांव ने 2019 में नियोजित स्थानांतरण का पहला चरण शुरू किया।

3. बर्फ का पिघलना

पिछले 40 वर्षों में आर्कटिक में समुद्री बर्फ छोटी और पतली हो गई है। इसकी कुल सीमा में लगभग 13 प्रतिशत प्रतिशत की कमी आई है और इसकी मोटाई में कम से कम 1.75 मीटर की कमी आई है। आर्कटिक में समुद्री बर्फ समुद्री यात्रा और फसल गतिविधियों के लिए एक मंच प्रदान करता है और पारिस्थितिक प्रक्रियाओं को आकार देता है जो स्थानीय संस्कृतियों, अर्थव्यवस्थाओं, ज्ञान और खाद्य प्रणालियों का आधार है।

समुद्री बर्फ के पिघलने से नौवहन अधिक खतरनाक बनता जा रहा है और इसका अनुमान लगा पाना भी मुश्किल होता जा रहा है। यह फसल के समय और स्थान को बदल सकता है, फसल की लागत को बढ़ा सकता है और इसकी मात्रा भी घट सकती है जिससे खाद्य संकट और आय की कमी हो सकती है। कम स्वास्थ्यप्रद खाद्य पदार्थों पर निर्भरता बढ़ने से खाद्य सुरक्षा और मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक असर पड़ सकता है।

4. समुद्री खाद्य पदार्थ में कमी

समुद्री खाद्य पदार्थ प्रोटीन और आवश्यक पोषक तत्वों का एक प्रमुख स्रोत हैं। लेकिन जलवायु परिवर्तन के कारण पहले से ही उत्तरी और दक्षिणी ध्रुवों की ओर प्रजातियों का पलायन हो रहा है। इससे 2050 तक समुद्री खाद्य पदार्थ में गंभीर कमी आ सकती है।

5. समुद्री जल, हवा और खाद्य पदार्थ खतरनाक

पारा, औद्योगिक रसायनों, फार्मास्यूटिकल्स, माइक्रोप्लास्टिक्स और अन्य विषाक्त पदार्थों ने महासागर को प्रदूषित किया है। समुद्र कई प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले सूक्ष्म जीवों को आश्रय देता है। लेकिन समुद्र के रसायन , तापमान और अन्य समुद्री गतिविधियों के साथ समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र में परिवर्तन के कारण ये मानव स्वास्थ्य के लिए खतरनाक हो सकते हैं।

यूएस ओशंस और ह्यूमन हेल्थ एक्ट जैसी नीतियां और संबंधित अनुसंधान एवं प्रशिक्षण केंद्र विभिन्न एजेंसियों, क्षेत्रों और विषयों में आवश्यक सहयोग और समन्वय को बढ़ाकर महासागरों की स्थिति में सुधार और लोगों की सेहत में योगदान दे सकते हैं।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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