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सीओपी26: यदि कार्बनडाईऑक्साइड में कटौती से न भटकें, तो वैश्विक मीथेन संकल्प अच्छी पहल है

By भाषा | Updated: November 3, 2021 13:14 IST

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(मिशेल कैन, क्रैनफील्ड विश्वविद्यालय के एन्वायरमेंट डेटा एनालिटिक्स विभाग में लेक्चरर और ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के वायुमंडलीय विज्ञान विभाग में अतिथि अनुसंधानकर्ता)

ऑक्सफोर्ड (ब्रिटेन), तीन नवंबर (द कन्वरसेशन) अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन और यूरोपीय आयोग की अध्यक्ष उर्सुला वान डेर लेयेन ने 100 से अधिक देशों के गठबंधन का नेतृत्व करते हुए ‘वैश्विक मीथेन संकल्प’ की शुरुआत की। ‘वैश्विक मीथेन संकल्प’ 2020 से 2030 के बीच मीथेन उत्सर्जन में 30 प्रतिशत की कमी करने के लिए किया गया समझौता है।

‘जलवायु परिवर्तन पर अंतरसरकारी पैनल’ के नवीनतम आकलन के अनुसार, मीथेन एक ऐसी ग्रीनहाउस गैस है, जो लगभग 0.5 डिग्री सेल्सियस ग्लोबल वार्मिंग के लिए जिम्मेदार है। वायुमंडल में शामिल होने वाले इसके प्रत्येक अणु में कार्बनडाईऑक्साइड के एक अणु की तुलना में वैश्विक तापमान बढ़ाने की 26 गुना अधिक क्षमता होती है, लेकिन यह लगभग केवल एक दशक के करीब तक वायुमंडल में रहता है। तेल और गैस के कुंओं से मीथेन लीक होती है और पशुधन भी इसके उत्सर्जन का बड़ा कारण है। समझौते पर जिन देशों ने हस्ताक्षर किए हैं, वे वैश्विक अर्थव्यवस्था का दो-तिहाई हिस्सा हैं। ब्राजील, चीन, भारत एवं रूस समेत शीर्ष 30 मीथेन उत्सर्जकों में से आधे देशों ने रिपोर्ट लिखे जाते समय तक इस पर हस्ताक्षर नहीं किए थे।

मैं मीथेन उत्सर्जन और जलवायु पर पड़ने वाले उसके प्रभाव के बारे में लगभग एक दशक से सार्वजनिक रूप से बात कर रही हूं और इस क्षेत्र में अनुसंधान कर रही हूं। वातावरण में मीथेन का स्तर तेजी से बढ़ गया है, जिससे वैश्चिक तापमान में इजाफे की गति तेज हो रही है। मुझे लगता है कि 2030 तक मीथेन उत्सर्जन को 30 प्रतिशत तक कम करना बहुत अच्छा होगा, लेकिन मेरे दिमाग में क्या बात खटक रही है?

मेरे मन में इस बात को लेकर संदेह है कि क्या मीथेन कटौती को लेकर इतनी चर्चा एक अच्छी खबर है? आप पूछ सकते हैं: क्या यह इतनी बड़ी समस्या है? क्या इस कदम की सराहना नहीं की जानी चाहिए? इसका उत्तर ‘हां’ भी है और ‘नहीं’ भी। इसका उत्तर ‘हां’ इसलिए है, क्योंकि ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कोई कमी पेरिस समझौते के तहत तापमान संबंधी लक्ष्यों को हासिल करने की दिशा में प्रगति है। यह बात निर्विवाद है। इसका उत्तर ‘नहीं’ तब है, यदि मीथेन संकल्प ग्लोबल वार्मिंग के मुख्य संवाहक- जीवाश्म कार्बनडाईआक्साइड उत्सर्जन को कम करने के प्रयासों से भटकाव पैदा करता है।

जब मीथेन कार्बनडाईऑक्साइड की तुलना में ग्लोबल वार्मिंग में कम योगदान देती है, तो मीथेन में कटौती कार्बनडाईऑक्साइड में कटौती की तुलना में अधिक प्रभावी कैसे हो सकती है? ऐसा इसलिए है क्योंकि मीथेन कार्बनडाईऑक्साइड की तुलना में वातावरण में बहुत कम समय तक रहती है। इसलिए मोटे तौर पर, यदि आप आज 10 टन मीथेन उत्सर्जित करते हैं, तो एक दशक के बाद पांच टन मीथेन वातावरण में रह जाएगी। अगर हम आज मीथेन का उत्सर्जन पूरी तरह से बंद कर दें, तो इसके कारण होने वाली ग्लोबल वार्मिंग लगभग 20 वर्ष में आधी रह जाएगी। यह कार्बनडाईऑक्साइड के बिल्कुल विपरीत है, जो जलवायु प्रणाली में अधिक लंबे समय तक रहती है। यदि कार्बनडाईऑक्साइड का उत्सर्जन पूरी तरह से बंद कर दिया जाए, तो भी इसके कारण सदियों तक ग्लोबल वार्मिंग होती रहेगी।

लघुकालीन जीत या दीर्घकालीन सफलता?

यदि हम मीथेन के उत्सर्जन को आज रोक देते हैं (उदाहरण के लिए हम 2020 के स्तर से 30 प्रतिशत नीचे पर वैश्विक मीथेन उत्सर्जन को स्थिर करते हैं) तो मीथेन के कारण होने वाली ग्लोबल वार्मिंग स्थिर हो जाएगी, लेकिन यह धीरे-धीरे फिर से बढ़ना शुरू हो जाएगी। ऐसा इसलिए है क्योंकि ग्रीनहाउस गैस के स्तर में बदलाव के प्रति वातावरण अपेक्षाकृत तेजी से प्रतिक्रिया देता है, लेकिन गहरा महासागर काफी धीरे-धीरे प्रतिक्रिया देता है। पूरी जलवायु प्रणाली को बदलावों के साथ तालमेल बिठाने में सैकड़ों साल लगेंगे।

मीथेन उत्सर्जन में कटौती निकट-अवधि के आधार पर तापमान में कमी लाती है। इस तथ्य से एक ही मौलिक विज्ञान से दो अलग-अलग निष्कर्ष निकाले जा रहे हैं।

पहला रुख यह है कि मीथेन उत्सर्जन में कटौती से कार्बनडाईऑक्साइड के उत्सर्जन में कटौती की तुलना में तेजी से परिणाम मिलते हैं और इसलिए हमें ग्लोबल वार्मिंग पर तत्काल लगाम लगाने के लिए ऐसा करना चाहिए। यह तर्क अल्पावधि में ग्लोबल वार्मिंग को सीमित करने को प्राथमिकता देता है।

यदि कार्बनडाईऑक्साइड में कटौती के बजाय मीथेन कटौती पर धन खर्च किया जाता है, तो तापमान अल्पावधि में तो कम होगा लेकिन लंबी अवधि में यह बढ़ेगा। इसलिए दूसरा रुख यह है कि हमें मीथेन में कटौती के बजाय कार्बनडाईऑक्साइड में कटौती को प्राथमिकता देनी चाहिए।

ये विरोधाभासी रुख भ्रमित करने वाले लग सकते हैं, लेकिन एक साधारण तथ्य है जिससे कोई भी असहमत नहीं हो सकता। करीब एक तिहाई मानवजनित मीथेन उत्सर्जन का कारण जीवाश्म ईंधन हैं। इसलिए, यदि हम 2030 तक जीवाश्म का उपयोग रोक देते हैं, तो कार्बनडाईऑक्साइड के अधिकतर मानवजनित उत्सर्जन को समाप्त करने के साथ-साथ वैश्विक मीथेन संकल्प को भी साकार किया जा सकता है।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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