बेटे ने पिता की कमी पूरी करने के लिए लाखों खर्च कर ऐसा बनवाया स्टैच्यू , कीमत जान चौंक जाएंगे आप
By वैशाली कुमारी | Published: September 26, 2021 03:22 PM2021-09-26T15:22:03+5:302021-09-26T15:29:28+5:30
अरुण और उनके परिवार को उनके पिता कि कमी महसूस होती थी, ऐसे में अरुण ने पिता की सिलिकॉन स्टेच्यू बनवाने की सोची जिससे उनके पिता को उनका सम्मान भी मिले और घरवालों को उनकी कमी भी ना महसूस हो।
कहानी एक ऐसे बेटे की जिसने अपने पिता के गुजरने के बाद उनकी याद में कुछ ऐसा किया जिससे हर तरफ उसकी तारीफ हो रही है। पिता की याद में उसने कुछ ऐसा किया मानो उसके पिता वापिस आ गए हों। पिता के जाने का गम क्या होता है कोई उससे पूछे जिसने पिता को खोया हो। ऐसे में इस बात को अरुण कोरे से अच्छा कौन समझ सकता है। वक्त हर गम भुला देता है लेकिन अपनों के बिछड़ने का ग़म भुलाए नहीं भूलता।
ऐसे में अपने पिता को सम्मान देने के लिए अरुण ने एक ऐसा तरीका अपनाया जिससे उनके पिता को महसूस किया जा सके। दरअसल महाराष्ट्र के सांगली में रहने वाले अरुण कोरे ने पिछले साल कोरोना महामारी में अपने इंस्पेक्टर पिता को हमेशा के लिए खो दिया था। पिता के देहांत के बाद उनके परिवार को उनकी कमी महसूस होती थी, बेटे ने अपने कोरोना वारियर पिता को उनका सम्मान देने के लिए एक ऐसा तरीका निकाला जिससे उन्हें उनका सम्मान मिल सके और घर वालों को उनकी कमी भी महसूस ना हो।
अरुण और उनके परिवार को उनके पिता कि कमी महसूस होती थी, ऐसे में अरुण ने पिता की सिलिकॉन स्टेच्यू बनवाने की सोची जिससे उनके पिता को उनका सम्मान भी मिले और घरवालों को उनकी कमी भी ना महसूस हो।
अरुण ने यह स्टैच्यू सोफे पर बैठने की मुद्रा में बनवाया है ताकि उन्हें अपने पिता के जीवित होने का अहसास हो। सिलिकॉन की बनी इस मूर्ति को देखकर हर कोई धोखा खा जाता है कि ये मूर्ति है या कोई जीवित व्यक्ति सोफे पर बैठा है। अरुण ने दावा किया कि ये महाराष्ट्र कि पहली सिलिकॉन स्टेच्यू है।
32 साल के अरुण कोरे ने 6 सितंबर 2020 को अपने पिता रावसाहेब शामराव को खो दिया था। मृत्यु के वक्त रावसाहेब शामराव 55 वर्ष के थे। अरुण ने बताया कि उनके पिता की मृत्यु कोरोना के कारण हुई थी, उनकी मौत हमारे लिए एक सदमा थी हम सब उन्हें बहुत याद करते हैं। एक दिन ऐसे ही यूट्यूब पर वीडियो देखते हुए उन्हें पता चला कि कर्नाटक के एक व्यक्ति ने अपनी पत्नी के निधन पर उनका स्टैच्यू बनवाया है। इसके बाद उन्होंने भी अपने पिता की मौत के बाद उनकी एक मूर्ति बनवाने का फैसला किया।
अरुण ने अपने दोस्त विजय पाटिल को फोन किया जिससे उन्हें बंगलुरू के एक आर्टिस्ट का नंबर मिला। ऑर्डर देने के दो महीने बाद उन्हें यह स्टेच्यू मिला। अरुण बताते हैं कि मूर्ति देखने के बाद वे आश्चर्यचकित हो गए। वह इतना असली लग रहा था कि बता नहीं सकते थे कि मूर्ति असली है या उनके पिता आराम फरमा रहे हैं।