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मुजफ्फरपुरः प्रोफेसर डॉ ललन कुमार ने कायम की मिसाल, 2 साल 9 माह के कार्यकाल की पूरी सैलरी 23 लाख 82 हजार 228 रुपए लौटाई, जानें कारण

By एस पी सिन्हा | Updated: July 6, 2022 20:04 IST

प्रोफेसर डॉ. ललन कुमार जब बीआरए बिहार विश्वविद्यालय के कुलसचिव डा. आरके ठाकुर से मिलकर यह राशि लौटाने पहुंचे थे, तो एक पल के लिए कुल सचिव भी हैरान रह गए और उन्होंने यह पैसे वापस लेने से इनकार कर दिया.

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ठळक मुद्देप्रोफेसर ललन कुमार ने नौकरी से इस्तीफा देने की बात की, तो कुलसचिव को उनकी बात माननी पड़ी.1100 छात्रों का हिंदी में नामांकन तो है, लेकिन उपस्थिति लगभग शून्य रहने से वे शैक्षणिक दायित्व का निर्वहन नहीं कर पाए. डॉ. ललन की नियुक्ति 24 सितंबर 2019 को हुई थी.

पटनाः बिहार में मुजफ्फरपुर जिले के नीतीश्वर कॉलेज में हिंदी के सहायक प्रोफेसर डॉ ललन कुमार ने अपना वेतन इस कारण से लौटा दिया है, क्योंकि दो साल नौ माह तक बगैर पढ़ाये उन्हें वेतन मिलता रहा था. ऐसे में बिना पढ़ाए वेतन लेना उन्हें गंवारा नहीं है.

इस कारण से उन्होंने अपने वेतन मद में मिले 23 लाख से ज्यादा की राशि सरकार को वापस लौटा दी है. इस संबंध में प्रोफेसर डॉ. ललन कुमार ने बताया कि यह वेतन उन्हें तब मिला था जब कोरोना काल चल रहा था. इस दौरान दो साल नौ माह तक सभी कॉलेज बंद थे. ऐसे में वह बिना पढ़ाए वेतन लेना उन्हें गंवारा नहीं है.

बताया जाता है कि प्रोफेसर डॉ. ललन कुमार जब बीआरए बिहार विश्वविद्यालय के कुलसचिव डा. आरके ठाकुर से मिलकर यह राशि लौटाने पहुंचे थे, तो एक पल के लिए कुल सचिव भी हैरान रह गए और उन्होंने यह पैसे वापस लेने से इनकार कर दिया. लेकिन, जब प्रोफेसर ललन कुमार ने नौकरी से इस्तीफा देने की बात की, तो कुलसचिव को उनकी बात माननी पड़ी.

इस दौरान ललन कुमार ने 2 साल 9 माह के कार्यकाल की पूरी सैलरी 23 लाख 82 हजार 228 रुपए लौटा दी. डॉ. ललन कुमार ने कहा कि मैं नीतीश्वर कॉलेज में अपने अध्यापन कार्य के प्रति कृतज्ञ महसूस नहीं कर रहा हूं. इसलिए राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के बताए ज्ञान और अंतरात्मा की आवाज पर नियुक्ति तारीख से अब तक के पूरे वेतन की राशि विश्वविद्यालय को समर्पित करता हूं.

उन्होंने विश्वविद्यालय की गिरती शिक्षण व्यवस्था पर भी सवाल उठाते हुए कहा कि जबसे नियुक्त हुआ, कॉलेज में पढ़ाई का माहौल नहीं देखा. 1100 छात्रों का हिंदी में नामांकन तो है, लेकिन उपस्थिति लगभग शून्य रहने से वे शैक्षणिक दायित्व का निर्वहन नहीं कर पाए. ऐसे में वेतन लेना अनैतिक है.  

डॉ. ललन की नियुक्ति 24 सितंबर 2019 को हुई थी. सामान्य किसान परिवार से आने के बाद भी वैशाली निवासी डॉ. ललन इंटर की पढ़ाई के बाद दिल्ली गए. दिल्ली विश्वविद्यालय से ग्रेजुएशन, जेएनयू से पीजी और फिर दिल्ली विश्वविद्यालय से पीएचडी, एमफिल की डिग्री ली. गोल्ड मेडलिस्ट डॉ. ललन को एकेडमिक एक्सीलेंस प्रेसिडेंट अवॉर्ड भी मिल चुका है.

इनकी मानें तो शिक्षक इसी तरह सैलरी लेते रहे तो 5 साल में उनकी एकेडमिक डेथ हो जाएगी. कॅरियर तभी बढे़गा जब लगातार एकेडमिक अचीवमेंट हो. उन्होंने बताया कि वरीयता में नीचे वाले शिक्षकों को पीजी में पोस्टिंग मिली, जबकि इन्हें नीतीश्वर कॉलेज दिया गया. उन्हें यहां पढ़ाई का माहौल नहीं दिखा तो विश्वविद्यालय से आग्रह किया कि उस कॉलेज में स्थानांतरित किया जाए.

जहां एकेडमिक कार्य करने का मौका मिले. विश्वविद्यालय ने इस दौरान 6 बार ट्रांसफर ऑर्डर निकाले, लेकिन डॉ. ललन को नजरअंदाज किया जाता रहा. इस संबंध में पूछे जाने पर कुलसचिव डॉ. आरके ठाकुर का कहना है कि छात्र किस कॉलेज में कम आते हैं, यह सर्वे करके तो किसी की पोस्टिंग नहीं होगी. प्राचार्य से स्पष्टीकरण लेंगे कि डॉ. ललन के आरोप कितने सही हैं.

टॅग्स :बिहारजवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू)पटना
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