पुण्यतिथि विशेष: चले भी आओ कि गुलशन का कारोबार चले, फैज अहमद फैज की 10 शायरियां
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: November 20, 2018 05:28 PM2018-11-20T17:28:46+5:302018-11-20T17:28:46+5:30
फैज अहमद फैज का जन्म 13 फरवरी 1911 सियालकोट, पंजाब (अब पाकिस्तान में) हुआ था। उर्दु साहित्य के पुरोधाओं में से एक फैज अहमद फैज सूफी परंपरा से प्रभावित थे। फैज अहमद फैज का निधन 20 नवंबर 1984 को हुआ था।
एशिया के सबसे महानत कवियों में से एक फ़ैज अहमद फ़ैज की 20 नवबंर पुण्यतिथि है। साम्यवादी विचारधारा के कवि रहे फैज अहमद फैज का जन्म 13 फरवरी 1911 सियालकोट, पंजाब (अब पाकिस्तान में) हुआ था। उर्दु साहित्य के पुरोधाओं में से एक फैज अहमद फैज सूफी परंपरा से प्रभावित थे। फ़ैज अहमद फ़ैज की शायरी का अनुवाद हिंदी, रूसी, अंग्रेजी आदि कई भाषाओं में हो चुका है। नक्श-ए-फरियादी, दस्त-ए-सबा, जिंदांनामा, दस्त-ए-तहे-संग, मेरे दिल मेरे मुसाफिर, सर-ए-वादी-ए-सिना इनकी प्रमुख रचनाओं में से एक हैं। फैज अहमद फैज की पुण्यतिथि पर पेश है उनकी कुछ नज्में-
गुलों में रंग भरे बाद-ए-नौबहार चले
चले भी आओ कि गुलशन का कारोबार चले
क़फ़स उदास है, यारो सबा से कुछ तो कहो
कहीं तो बहर-ए-ख़ुदा आज ज़िक्र-ए-यार चले
- फैज़ अहमद फैज़
ये वो सहर तो नहीं जिसकी आरज़ू लेकर
चले थे यार कि मिल जाएगी कहीं न कहीं
फ़लक के दश्त में तारों की आख़िरी मंज़िल
कहीं तो होगा शब-ए-सुस्त मौज का साहिल
कहीं तो जाके रुकेगा सफ़ीना-ए-ग़मे-दिल
-फैज़ अहमद फैज़
निसार मैं तेरी गलियों के ए वतन, कि जहां
चली है रस्म कि कोई न सर उठा के चले
जो कोई चाहने वाला तवाफ़ को निकले
नज़र चुरा के चले, जिस्म-ओ-जां बचा के चले
-फैज़ अहमद फैज़
बोल कि लब आज़ाद हैं तेरे
बोल ज़बां अब तक तेरी है
तेरा सुतवां जिस्म है तेरा
बोल कि जां अब तक तेरी है
-फैज़ अहमद फैज़
हम देखेंगे
लाज़िम है कि हम भी देखेंगे
वो दिन
कि जिसका वादा है
जो लौहे-अज़ल में लिखा है
जब ज़ुल्मो-सितम के कोहे गरां
रुई की तरह उड़ जाएंगे.
-फैज़ अहमद फैज़
बात बस से निकल चली है
दिल की हालत संभल चली है
अब जुनूं हद से बढ़ चला है
अब तबीयत बहल चली है
-फैज़ अहमद फैज़
निसार मैं तेरी गलियों के ऐ वतन, कि जहां
चली है रस्म कि कोई न सर उठा के चले
-फैज़ अहमद फैज़
आदमियों से भरी है यह सारी दुनिया मगर,
आदमी को आदमी होता नहीं दस्तयाब।
-फैज़ अहमद फैज़
जो गुज़र गई हैं रातें, उन्हें फिर जगा के लाएं
जो बिसर गई हैं बातें, उन्हें याद में बुलाएं
चलो फिर से दिल लगाएं, चलो फिर से मुस्कराएं
-फैज़ अहमद फैज़
जिंदगी क्या किसी मुफलिस की कबा है,
जिसमें हर घड़ी दर्द के पैबन्द लगे जाते हैं।
-फैज़ अहमद फैज़