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INDIA Vs NDA: बसपा मतदाताओं के न्यूट्रल होने से क्या भाजपा को फायदा होगा?, बिखरते वोट बैंक से परेशान मायावती बदल रही अपना गेम प्लान!

By राजेंद्र कुमार | Updated: September 6, 2023 20:16 IST

INDIA Vs NDA: भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के समर्थित माने जाने वाले नोनिया चौहान, राजभर, निषाद और कुर्मी मतदाताओं ने मतदान में बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया.

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ठळक मुद्देमायावती के इस ऐलान के बाद भी घोसी में 51 प्रतिशत वोट पड़े. एनडीए और इंडिया के तैयार हुए प्लेटफार्म की मजबूती के तौर पर आंका जा रहा है. सियासी जंग में मायावती की सियासी चाल कितनी असरदार साबित होगी.

लखनऊ: बहुजन समाज पार्टी चीफ मायावती घोषणा कर चुकी हैं कि वह न तो एनडीए (नेशनल डेमोक्रेटिक अलायन्स) के  साथ जाएंगी और न ही उन्हें इंडियन नेशनल डेवलपमेंट इंक्लूसिव अलायन्स (इंडिया) पर भरोसा है. यही नहीं इस ऐलान के बाद मायावती ने यूपी की घोसी विधानसभा सीट पर मतदान के ठीक अपने अपने मतदाताओं से यह कहा कि वह वोट देने ना जाएं.

यदि जाएं तो फिर नोटा दबाकर आएं. मायावती के इस ऐलान के बाद भी घोसी में 51 प्रतिशत वोट पड़े. कहा जा रहा है कि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के समर्थित माने जाने वाले नोनिया चौहान, राजभर, निषाद और कुर्मी मतदाताओं ने मतदान में बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया.

वहीं दूसरी तरफ समाजवादी पार्टी (सपा) के परंपरागत वोट बैंक मुस्लिम और यादव समाज के साथ सपा प्रत्याशी सुधाकर सिंह के सजातीय ठाकुर मतदाताओं ने भी पूरे जोश से मतदान कर मुकाबले को न केवल रोचक बल्कि कांटे का बनाया. जिसके चलते सियासी नजरिए से इस उपचुनाव के नतीजों को एनडीए और इंडिया के तैयार हुए प्लेटफार्म की मजबूती के तौर पर आंका जा रहा है. 

बिखर रहे वोटबैंक को लेकर मायावती परेशान: 

कहा तो यह भी जा रहा है कि घोसी सीट के उपचुनाव का परिणाम यह बताएगा कि यूपी की सियासत में गठबंधन की राजनीति कितनी बढ़त लेगी और इस सियासी जंग में मायावती की सियासी चाल कितनी असरदार साबित होगी. सूबे के राजनीतिक जानकारों का कहना है कि यूपी के सियासत में अब  बसपा सुप्रीमो मायावती अपने बिखरते जा रहे वोट बैंक को लेकर परेशान हैं.

ऐसे में वह तरह-तरह के प्रयोग कर रही हैं. जिसके चलते कभी वह भाजपा के साथ खड़ी दिखाई देती है तो कभी वह कांग्रेस और सपा के खिलाफ मोर्चा खोलने लगती हैं. वह अकेले लोकसभा लड़ने का दावा करती हैं तो पार्टी के सांसद कांग्रेस और सपा के नेताओं से मिलने लगते हैं.

इन सब के बीच मायावती अपने भतीजे को पार्टी की बागडोर सौंपने की दिशा में भी फूक-फूक का कदम उठा रही हैं. यह सब करते हुए मायावती ने घोसी के अपने मतदाताओं को वोट देने ना जाने और यदि जाएं तो फिर नोटा दबाकर आने की सलाह देकर एक बड़ा सियासी संदेश दिया है.

सियासी जानकारों का कहना है कि ऐसा संदेश देकर मायावती ने एक तरह से भाजपा को घोसी में मतदान के दिन खुला मैदान दे दिया था. ऐसे में अब यहां के चुनाव नतीजों से मायावती के वोटों का 'वजन' भी पता चल जाएगा. लखनऊ के वरिष्ठ पत्रकार कुमार भावेश कहते हैं कि इससे पहले के चुनाव में घोसी में बसपा का ठीक-ठाक वोट प्रतिशत भी होता था.

ऐसे में अब घोसी के उपचुनाव के परिणाम बताएंगे कि मायावती का वोट बैंक के वास्तव में नोटा ही दबा कर आया है, या वह इंडिया और एनडीए में से किसी एक को मजबूती दे आया. वह यह भी कहते हैं कि इस चुनाव के नतीजे किसी भी पार्टी के पक्ष में आएगा, लेकिन इस परिणाम के बड़े सियासी मायने भी निकाले जाएंगे. 

बसपा के वोट बैंक में सेंधमारी का मौका दिया? 

कुछ ऐसे ही विचार वरिष्ठ पत्रकार रतनमणि लाल के भी हैं. वह कहते हैं कि राजनीतिक गलियारों में तो चर्चा इस बात की भी हो रही है कि आखिर बसपा ने अपने वोटरों को नोटा दबाने या घर से न निकलने की बात कह कर अपरोक्ष रूप से किसी एक दल की ओर जाने का इशारा तो नहीं किया है.

बीते कुछ चुनाव के परिणाम बताते हैं कि बसपा का एक बड़ा वोट बैंक भाजपा की ओर शिफ्ट हुआ है. अब घोसी उपचुनाव के परिणाम बताएंगे कि मायावती पार्टी का वोट बैंक वास्तव में न्यूट्रल होकर घर में बैठा या नोटा दबाने के लिए पोलिंग स्टेशन पहुंचा. या फिर इन सब से हटकर उसने पोलिंग स्टेशन में जाकर भाजपा या सपा प्रत्याशी को वोट दिया.

रतनमणि कहते हैं कि घोसी सीट पर 90 हजार से ज्यादा अनुसूचित जाति के वोटर हैं. यह वोटरों की वह संख्या है जो किसी भी चुनाव के परिणाम को बदलने की क्षमता रखते हैं. इसके अलावा तकरीबन 95 हजार मुस्लिम, 50 हजार राजभर, 50 हजार नोनिया, 30 हजार बनिया, 19 हजार निषाद, 15 हजार क्षत्रिय, इतने ही कोइरी, 14 हजार भूमिहार, 7 हजार ब्राह्मण, 5 हजार कुम्हार वोटर हैं.

इन्ही मतदाताओं में से बीते विधानसभा चुनाव में बसपा प्रत्याशी को घोसी सीट पर 54000 वोट हासिल हुए थे. अब देखना है कि बसपा के ये वोट किस दल को इस बार प्राप्त हुए हैं. रतनमणि का मानना है कि  जिस तरीके से दलित बाहुल्य क्षेत्र में भाजपा ने चुनाव जीते हैं, उससे घोसी में बसपा के न्यूट्रल होने से भाजपा का उत्साह बढ़ गया है.

वह कहते हैं कि ऐसे चुनावी साल में आखिर मायावती ने अपने वोटरों को घर से न निकलने की बात कहकर वह कौन सा सियासी दांव चला है, यह तो बसपा मुखिया मायावती या पार्टी के रणनीतिकार ही जानते होंगे, लेकिन यह तय है कि ऐसा करके बसपा ने एनडीए और इंडिया गठबंधन के नेताओं को उनके वोट बैंक में सेंधमारी करने का खुला मौका दे दिया है. 

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