Flashback 2018: कुछ कदम आगे बढ़े, लेकिन तब भी 2018 में भारतीय टेनिस में रही स्थिरता

By भाषा | Updated: December 20, 2018 10:16 IST2018-12-20T10:16:23+5:302018-12-20T10:16:23+5:30

भारतीय टेनिस में पिछले कुछ समय से चली आ रही निराशा और इसमें आया निर्वात साल 2018 में भी कायम रहा।

Flashback 2018: Progress made but stagnation of Indian Tennis remains after Mixed 2018 | Flashback 2018: कुछ कदम आगे बढ़े, लेकिन तब भी 2018 में भारतीय टेनिस में रही स्थिरता

Flashback 2018: कुछ कदम आगे बढ़े, लेकिन तब भी 2018 में भारतीय टेनिस में रही स्थिरता

नई दिल्ली, 20 दिसंबर। भारतीय टेनिस में पिछले कुछ समय से चली आ रही निराशा और इसमें आया निर्वात साल 2018 में भी कायम रहा, हालांकि कुछ खिलाड़ियों ने आगे की तरफ कदम भी बढ़ाये जिससे भविष्य के लिये थोड़ी उम्मीद भी जगी।

45 साल की उम्र में पेस ने जीता खिताब

यह निर्वात सच में है, इसका अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि 45 साल के लिएंडर पेस अब भी भारत के सबसे बड़े खिलाड़ी हैं और उन्होंने इस साल भी खिताब जीते और संन्यास लेने का कोई संकेत नहीं दिया। उनके इतने लंबे समय तक खेलने से भारतीय टेनिस में गहराई की कमी भी साफ दिखायी देती है।

युवा खिलाड़ियों ने आगे बढ़ाए कदम

ऐसा नहीं है कि युवा खिलाड़ियों ने आगे कदम नहीं बढ़ाये, वे आगे बढ़े परन्तु कोई भी सर्किट में धमाल मचाने का कारनामा नहीं कर सका। आगे कदम बढ़ाने वालों में प्रज्नेश गुणेश्वरन शामिल रहे जिन्होंने करियर को खत्म करने वाले घुटने के स्ट्रेस फ्रेक्चर के बावजूद सारी बाधाओं को पार किया। उन्होंने साल की शुरुआत 243वीं रैंकिंग से की, जिसमें बायें हाथ का यह खिलाड़ी युकी भांबरी और रामकुमार रामनाथन को पछाड़कर 107वीं रैंकिंग से देश का नंबर एक खिलाड़ी बन गया।

एशियाई खेलों की एकल स्पर्धा के कांस्य पदकधारी को कभी न हार मानने वाले जज्बे का पुरस्कार मिला जो उन्होंने अप्रैल में डेविस कप एशिया ओसेनिया ग्रुप ए के निर्णायक पांचवें मुकाबले में चीन के उभरते हुए स्टार खिलाड़ी यिबिंग वु को 6-4 6-2 हराकर दिखाया। प्रज्नेश की जीत उस समय आयी जब देश का शीर्ष खिलाड़ी युकी भांबरी चोट के कारण इस मुकाबले का हिस्सा नहीं था।

इस जीत ने भारत का विश्व ग्रुप प्ले ऑफ में स्थान सुनिश्चित किया। लेकिन टीम इस चरण से आगे नहीं बढ़ सकी और सर्बिया से 0-4 से हारकर 2019 टूर्नामेंट के लिये फिर से क्वालीफाइंग दौर में वापस आ गयी।

चेन्नई के 29 साल के खिलाड़ी ने इस साल चैलेंजर सर्किट में चार फाइनल्स में पहुंचकर और दो को खिताब (एनिंग और बेंगलुरू) में बदलकर शीर्ष 100 में प्रवेश किया। यह चीज इस खिलाड़ी के लिये अहम रही क्योंकि वह चोट के कारण पांच अहम वर्ष गंवा चुके हैं।

भांबरी और रामनाथन नहीं दिखा सके काबिलियत

भांबरी और रामनाथन सर्किट पर आने के बाद अपनी ख्याति के अनुसार काबिलियत नहीं दिखा सके। भांबरी के मामले में बात की जाये तो चोटों ने उनके करियर में काफी बाधा पहुंचायी है जबकि उन्होंने 2015 में पहली बार शीर्ष 100 में जगह बनायी थी।

रामनाथन हालांकि चोटों से मुक्त रहे लेकिन ज्यादातर समय दबाव के आगे झुक गये। फिटनेस को देखा जाये तो उन्होंने 2018 में 35 टूर्नामेंट खेले जिसकी वजह से वह सामान्य सफलता के बावजूद शीर्ष 150 में अपना स्थान कायम रख सके। रामनाथन को सबसे बड़ी सफलता तब मिली जब उन्होंने न्यूपोर्ट में अपने पहले एटीपी 250 फाइनल में जगह बनायी।

डबल्स में भारत ने जगाई उम्मीदें

भारत ने हालांकि युगल में फिर से उम्मीदें जगायी। एक समय सात खिलाड़ी शीर्ष 100 में शामिल थे। साल के अंत में हालांकि यह संख्या घटकर पांच हो गयी है क्योंकि विष्णु वर्धन और एन श्रीराम बालाजी सूची से बाहर हो गये।

दिविज शरण भले ही अपने विश्वस्त जोड़ीदार पूरव राजा से अलग हो गये लेकिन दिल्ली का बायें हाथ का यह खिलाड़ी रोहन बोपन्ना को पछाड़कर भारत का नंबर एक युगल खिलाड़ी बन गया। बोपन्ना इस प्रारूप में देश के सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी रहे हैं।

बोपन्ना और शरण ने मिलकर एशियाई खेलों की पुरूष युगल स्पर्धा में भारत को पांचवां स्वर्ण पदक दिलाया। शरण ने इस साल एटीपी खिताब नहीं जीता लेकिन वह आर्टेम सिटाक के साथ विम्बलडन के क्वार्टरफाइनल में पहुंचने के अलावा नौ बार सेमीफाइनल में पहुंचे। अब उन्होंने और बोपन्ना ने 2020 तोक्यो ओलंपिक को ध्यान में रखते हुए 2019 में जोड़ी बनाने का फैसला किया है।

एक और खिलाड़ी जिसके प्रदर्शन की इस साल प्रशंसा की जानी चाहिए वो हैं जीवन नेदुचेझियान जिन्होंने चैलेंजर सर्किट में नौ फाइनल्स खेले और चार में खिताब जीतने में कामयाब रहे। वह एटीपी 250 स्तर पर दूसरा खिताब जीतने के करीब भी पहुंचे लेकिन चेंग्डू ओपन के फाइनल में हार गये।

हालांकि पेस की रफ्तार में कोई कमी नहीं आयी जो डेविस कप में अपना 43वां मैच जीतने के बाद टूर्नामेंट के इतिहास का सबसे सफल युगल खिलाड़ी बन गये। हालांकि एशियाई खेलों के अंतिम क्षणों में हटने से कुछेक की भौंहे तन गयी क्योंकि इसके लिये जो कारण दिया गया वह भारतीय टेनिस के लिये हर बड़े बहु-स्पर्धा वाले टूर्नामेंट से पहले बार बार उठने लगा है। यह कारण था, ‘पसंद का जोड़ीदार नहीं दिया जाना’।

सानिया की गैरमौजूदगी में अंकिता ने किया अच्छा प्रदर्शन

महिलाओं के सर्किट में सानिया मिर्जा मातृत्व अवकाश पर थीं और साल के अंत में उन्होंने बेटे को जन्म दिया। वह अगले साल वापसी की तैयारी कर रही हैं। अन्य में अंकिता रैना अपना सर्वश्रेष्ठ कर रही है और करमन कौर थांडी ने भी दिखाया कि वह महिला सर्किट के भविष्य में से एक हैं। अंकिता ने एशियाई खेलों की एकल स्पर्धा में कांस्य पदक हासिल किया।

प्रशासनिक दृष्टि से कुछ ज्यादा बदलाव नहीं हुआ लेकिन केएसएलटीए और एमएसएलटीए की बदौलत भारतीय खिलाड़ियों ने घरेलू चैलेंजर्स का पूरा फायदा उठाया। प्रज्नेश इन दोनों टूर्नामेंट के फाइनल में पहुंचे। उन्होंने साकेत मायनेनी के खिलाफ बेंगलुरू ओपन में जीत दर्ज की और पुणे में एलियास इमर से हारकर उप विजेता रहे। लेकिन विश्व पटल पर भारतीय टेनिस को अपनी ताकत दिखाने के लिये इससे कहीं ज्यादा बेहतर करना होगा।

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