पर्यावरण को प्रदूषण से बचाने और पेट्रोल-डीजल जैसे सीमीत ऊर्जा के संसाधनों की खपत कम करने के लिये इलेक्ट्रिक वाहनों पर जोर दिया जा रहा है। कई देशों में तो ये योजना काफी सफल भी है। इनमें चीन काफी आगे है लेकिन भारत अभी इलेक्ट्रिक व्हीकल को सड़कों पर दौड़ाने में कई तरह की मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है इनमें सबसे प्रमुख है इलेक्ट्रिक वाहनों में इस्तेमाल होने वाली बैटरी। इस समस्या को सुलझाने के लिये अब पब्लिक सेक्टर की कंपनी इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन (IOC) ने कदम बढ़ाया है।
आईओसी ऐसी बैटरी पर काम कर रहा है जिसके निर्माण में मेटल्स का इस्तेमाल होगा। इससे विदेशों से आय़ात की जाने वाली लिथियम ऑयन बैटरी से निर्भरता घटेगी। संभावना है कि इससे इलेक्ट्रिक वाहनों की कीमत में भी कमी आएगी।
आईओसी के चेयरमैन संजय सिंह ने कहा कि इन मेटल-एयर बैटरियों में इस्तेमाल होने वाले आयरन, जिंक और एल्युमिनियम जैसे मेटल्स के ऑक्सिडाइजेशन से एनर्जी पैदा होगी। इन बैटरियों की एक खासियत यह भी है कि इन्हें रिचार्ज करने की जरूरत नहीं होगी। बैटरियों में फिर से पावर लाने के लिये इनके प्लेट्स बदलने होंगे।
प्लेट्स बदलकर पावर लाने वाली इस टेक्निॉलॉजी से चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर की जरूरत भी नहीं पड़ेगी। फास्ट चार्जिंग टेक्नॉलॉजी अभी इतनी विकसित भी नहीं हो पायी है कि वाहन चालक की गाड़ी इतनी जल्दी चार्ज हो जाए जितनी जल्दी उन्हें पेट्रोल मिल जाता है। लेकिन प्लेट्स बदलने वाली टेक्नॉलॉजी से मात्र तीन मिनट में मेटल प्लेट्स बदल दिए जाते, इससे वाहन चालक इधर-उधर की बातें नहीं सोचेंगे।
आईओसी की तरफ से तैयार की जाने वाली ये मेटल प्लेट वाली बैटरी हाई एनर्जी डेंसिटी होती है। एक लिथियम ऑयन बैटरी से गाड़ी 300 किलोमीटर दूरी का सफर तय करती है तो मेटल बैटरी वाली गाड़ी 500 किलोमीटर का सफर तय कर सकती है।
इस तरह के बैटरियों की खासियत यह है कि इसे फिर से मेटल में बदला जा सकता है। कुल मिलाकर ये रिसाइकल की जा सकने वाली बैटरी होंगी। जबकि एक रिपोर्ट के मुताबिक लिथियम ऑयन बैटरी को रिसाइकल करना शामिल नहीं है।