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Tulsidas Jayanti 2020: गोस्वामी तुलसीदास की जयंती पर पढ़ें उनके लोकप्रिय दोहे

By गुणातीत ओझा | Published: July 27, 2020 11:13 AM

Tulsidas Jayanti 2020: तुलसी दास जी प्रभु श्री राम के भक्त थे। तुलसी दास जी ने कवितावली, दोहावली, हनुमान बाहुक, पार्वती मंगल, रामलला नहछू आदि कई रचनाएं की लेकिन उनके द्वारा रचित श्रीरामचरित्र मानस सारे हिंदू धर्म के लोगों के लिए बहुत मायने रखता है।

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ठळक मुद्देआज सावन की सप्तमी तिथि है, आज ही के दिन तुलसीदास जयंती मनाई जाती है।उनके पिता का नाम आत्माराम और माता का नाम हुलसी देवी था।

Tulsidas Jayanti in Hindi: आज सावन की सप्तमी तिथि है, आज ही के दिन तुलसीदास जयंती मनाई जाती है। गोस्वामी तुलसीदास का जन्म उत्तर प्रदेश के बांदा जनपद के राजापुर में विक्रम संवत 1554 की श्रावण शुक्ल सप्तमी के दिन हुआ था। उनके पिता का नाम आत्माराम और माता का नाम हुलसी देवी था। कहा जाता है कि जन्म के समय तुलसीदास रोये नहीं थे और उनके मुख में पूरे बत्तीस दांत थे। लोगों का मानना है कि तुलसीदास संपूर्ण रामायण के रचयिता महर्षि वाल्मीकि के अवतार थे। उनके बचपन का नाम रामबोला था। गोस्वामी तुलसीदास ने कुल 12पुस्तकों की रचना की है, लेकिन सबसे अधिक ख्याति उनके द्वारा रचित रामचरितमानस को मिली। दरअसल, इस महान ग्रंथ की रचना तुलसी ने अवधीभाषा में की है और यह भाषा उत्तर भारत के जन-साधारण की भाषा है। इसीलिए तुलसीदास को जन-जन का कवि माना जाता है।

तुलसीदास के दोहे: 1

काम क्रोध मद लोभ की जौ लौं मन में खान,तौ लौं पण्डित मूरखौं तुलसी एक समान,

हिन्दी अर्थ : जब तक किसी भी व्यक्ति के मन में कामवासना की भावना, गुस्सा, अंहकार, लालच से भरा रहता है तबतक ज्ञानी और मुर्ख व्यक्ति में कोई अंतर नही होता है दोनों एक ही समान के होते है

तुलसीदास के दोहे: 2

सुख हरसहिं जड़ दुख विलखाहीं, दोउ सम धीर धरहिं मन माहींधीरज धरहुं विवेक विचारी, छाड़ि सोच सकल हितकारी

हिन्दी अर्थ : मुर्ख व्यक्ति दुःख के समय रोते बिलखते है सुख के समय अत्यधिक खुश हो जाते है जबकि धैर्यवान व्यक्ति दोनों ही समय में समान रहते है कठिन से कठिन समय में अपने धैर्य को नही खोते है और कठिनाई का डटकर मुकाबला करते है

तुलसीदास के दोहे: 3

करम प्रधान विस्व करि राखा,

जो जस करई सो तस फलु चाखा

हिन्दी अर्थ : ईश्वर ने इस संसार में कर्म को महत्ता दी है अर्थात जो जैसा कर्म करता है उसे वैसा ही फल भी भोगना पड़ेगा

तुलसीदास के दोहे: 4

तुलसी देखि सुवेसु भूलहिं मूढ न चतुर नर सुंदर के किहि

पेखु बचन सुधा सम असन अहि

हिन्दी अर्थ : सुंदर वेशभूशा देखकर मुर्ख व्यक्ति ही नही बुद्धिमान व्यक्ति भी धोखा खा बैठते है ठीक उसी प्रकार जैसे मोर देखने में बहुत ही सुंदर होता है लेकिन उसके भोजन को देखा जाय तो वह साँप और कीड़े मकोड़े ही खाता है

तुलसीदास के दोहे: 5

तुलसी मीठे बचन ते सुख उपजत चहुँ ओर,बसीकरन इक मंत्र है परिहरू बचन कठोर,

हिन्दी अर्थ : मीठी वाणी बोलने से चारो ओर सुख का प्रकाश फैलता है और मीठी बोली से किसी को भी अपने ओर सम्मोहित किया जा सकता है इसलिए सभी सभी मनुष्यों को कठोर और तीखी वाणी छोडकर सदैव मीठे वाणी ही बोलना चाहिए.

तुलसीदास के दोहे: 6

आगें कह मृदु वचन बनाई। पाछे अनहित मन कुटिलाई,जाकर चित अहिगत सम भाई, अस कुमित्र परिहरेहि भलाई,

हिन्दी अर्थ : तुलसी जी कहते है की ऐसे मित्र जो की आपके सामने बना बनाकर मीठा बोलता है और मन ही मन आपके लिए बुराई का भाव रखता है जिसका मन साँप के चाल के समान टेढ़ा हो ऐसे खराब मित्र का त्याग कर देने में ही भलाई है

तुलसीदास के दोहे: 7

दया धर्म का मूल है पाप मूल अभिमान,

तुलसी दया न छांड़िए, जब लग घट में प्राण,

हिन्दी अर्थ : तुलसीदास जी कहते है की मनुष्य को कभी भी दया का साथ नही छोड़ना चाहिए क्योकि दया ही धर्म का मूल है और उसके विपरीत अहंकार समस्त पापो की जड़ है.

तुलसीदास के दोहे: 8

तुलसी इस संसार में, भांति भांति के लोग,सबसे हस मिल बोलिए, नदी नाव संजोग,

हिन्दी अर्थ : तुलसी जी कहते है की इस संसार में तरह तरह के लोग है हमे सभी से प्यार के साथ मिलना जुलना चाहिए ठीक वैसे ही जैसे एक नौका नदी में प्यार के साथ सफर करते हुए दुसरे किनारे तक पहुच जाती है वैसे मनुष्य भी अपने इस सौम्य व्यवहार से भवसागर के उस पार अवश्य ही पहुच जायेगा

तुलसीदास के दोहे: 9

तुलसी भरोसे राम के, निर्भय हो के सोए,अनहोनी होनी नही, होनी हो सो होए,

हिन्दी अर्थ : तुलसीदास जी कहते है की हमे भगवान आर भरोषा करते हुए बिना किसी डर के साथ निर्भय होकर रहना चाहिए और कुछ भी अनावश्यक नही होगा और अगर कुछ होना रहेगा तो वो होकर रहेगा इसलिए व्यर्थ चिंता किये बिना हमे ख़ुशी से जीवन व्यतीत करना चाहिए

तुलसीदास के दोहे: 10

काम क्रोध मद लोभ सब नाथ नरक के पन्थसब परिहरि रघुवीरहि भजहु भजहि जेहि संत

हिन्दी अर्थ : तुलसी जी कहते है की काम, क्रोध, लालच सब नर्क के रास्ते है इसलिए हमे इनको छोडकर ईश्वर की प्रार्थना करनी चाहिए जैसा की संत लोग करते है।

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