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काशी में चढ़ा बाबा विश्वनाथ का तिलक, विवाह की तैयारियां जोरों पर, शिवरात्रि को दूल्हा बनेंगे शिव शंकर

By आशीष कुमार पाण्डेय | Updated: February 5, 2022 21:21 IST

आज काशी में श्मशान के अधिपति बाबा विश्वनाथ का तिलकोत्सव पूर्व महंत कुलपति तिवारी के आवास पर मनाया गया।

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ठळक मुद्देकाशी में बसंत पंचमी के दिन बाबा विश्वनाथ का तिलक होता हैकाशी विश्वानथ ने दूल्हे के स्वरुप सजकर भक्तों को दर्शन दियामहाशिवरात्रि के दिन मां पार्वती के साथ भोलेनाथ का विवाह संपन्न होता है

वाराणसी: काशी में बाबा विश्वनाथ के भक्त शनिवार को भक्ति के रस में सराबोर रहे। ज्ञान की देवी मां सरस्वती के पावन दिन बसंत पंचमी के दिन दिगंबर विश्वनाथ महादेव के विवाहोत्सव की तैयारियां शुरू हो गईं। सदियों से चली आ रही परंपरा के मुताबिक आज काशीवासियों ने बड़े ही उत्साह के साथ तिलकोत्सव की रस्म अदायगी की।

तिलक विवाह से पूर्व होने वाले उस शुभ कार्य को कहते हैं, जिसमें वधु पक्ष के लोग वर पक्ष के आवास पर जाते हैं और वर का तिलक करके सामाजिक तौर पर विवाह के होने की सूचना देते हैं। ठीक उसी तरह से जैसे सांसारिक लोकाचार है, आज काशी में श्मशान के अधिपति बाबा विश्वनाथ का तिलकोत्सव भक्तों ने पूर्व महंत कुलपति तिवारी के आवास पर मनाया।

इस अवसर पर काशी विश्वानथ ने दूल्हे के स्वरुप सजकर भक्तों को दर्शन दिया। मालूम हो कि काशी में बसंत पंचमी के दिन बाबा विश्वनाथ का तिलक होता है।

वहीं महाशिवरात्रि के दिन मां पार्वती के साथ शिव का विवाह संपन्न होता है और रंगभरी एकादशी के दिन बाबा विश्वनाथ गौने करवाकर मां पार्वती को कैलाश ले जाते हैं। काशी के लोग इस परंपरा को सदियों से निभाते आ रहे हैं।

इस मामले में काशी विश्वनाथ मंदिर के पूर्व महंत कुलपति तिवारी ने बताया कि शनिवार की भोर में मंगल काल में सुहह 4 बजे से 4:30 बजे तक बाबा विश्वनाथ की पंचबदन रजत प्रतिमा की मंगला आरती की गई।

उसके बाद प्रातः 6 बजे से 8 बजे तक ब्राह्मणों ने वेदों ऋचाओं का पाठ किया और साथ ही बाबा विश्वनाथ का दूध से अभिषेक किया गया। उसके बाद सुबह 8:15 बजे बाबा विश्वनाथ को फलाहार का भोग लगाया गया।

फिर पांच ब्राह्मणों ने पांच प्रकार के फलों के रस से सुबह 8:30 से 11:30 बजे तक बाबा का पुनः रुद्राभिषेक किया। उसके बाद दोपहर 12:00 बजे से 12:30 बजे तक बाबा को भोग अर्पण किया गाय साथ ही आरती भी की गई। इसके बाद महिलाओं ने 12:45 से 02:30 बजे तक तिलकोत्सव के लिए मंगल गीत गाये।

इतना सब कुछ होने के बाद दोपहर 2 बजकर 30 मिनट पर बाबा महादेव जिस कक्ष में विराजमान थे, इसके पट को बंद कर दिया गया ताकि बाबा का राजसी दूल्हे स्वरुप में भव्य शृंगार किया जा सके। शाम पांच बजे संध्या आरती और भोग के बाद बाबा विश्वनाथ के कक्ष के पट आम श्रद्धालुओं के लिए खोल दिए गये और भक्तों ने देवादि देव महादेव के दूल्हे स्वरुप का दर्शन किया।

शाम 7 बजे मंगल ध्वनि और डमरू की नाद के साथ बाबा विश्वनाथ का तिलकोत्सव संपन्न हो गया। अब इस शुभ कारह्य के बाद काशी के भक्त बाबा विश्वनाथ के विवाह की तैयारियों में जुट गये हैं, जो आने वाली शिवरात्री को पूरे विधि-विधान से संपन्न होगा। 

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