श्रीमद्भगवद्गीता के पहले अध्याय 'कुरुक्षेत्र के युद्धस्थल में सैन्यनिरीक्षण' का दूसरे श्लोक में संजय राजा धृतराष्ट्र को आंखों देखा हाल बताना शुरू करता है। श्रीमद्भगवद्गीता का दूसरा श्लोक इस प्रकार है-
सञ्जय उवाचदृष्ट्वा तु पाण्डवानीकं व्यूढं दुर्योधनस्तदा |आचार्यमुपसङ्गम्य राजा वचनमब्रवीत् ||
श्लोक का अर्थ इस प्रकार है- संजय ने कहा - हे राजन! पाण्डुपुत्रों द्वारा सेना की व्यूहरचना देखकर राजा दुर्योधन अपने गुरु के पास गया और उसने ये शब्द कहे।
आसान भाषा में इसका मतलब है-
पहले श्लोक के अनुसार जब धृतराष्ट्र संजय से युद्धक्षेत्र का हाल बताने को कहते हैं तो दूसरे श्लोक में संजय धृतराष्ट्र के पुत्र दुर्योधन को राजा उच्चारित करते हुए बताता है कि वह पांडवों की व्यूहरचना देखकर अपने गुरु के पास गए। गुरु द्रोणाचार्य उस वक्त दुर्योधन की सेना के सेनापति की भूमिका में थे।
चूंकि संजय ने दुर्योधन को राजा कहकर संबोधित किया। राजा अपने आप में सक्षम होता और युद्धक्षेत्र में जाने से पहले अपनी सभी शंकाएं मिटा देता है लेकिन पांडवों की व्यूह रचना देखकर दुर्योधन ने अपने सेनापति की राह पकड़ी। उसके इस व्यवहार को कूटनीतिक कहा जा सकता है लेकिन इससे यह भी पता चलता है कि पांडवों की व्यूह रचना देखकर वह भयभीत हुआ या उसे शंका हुई और वह सेनापति द्रोण के पास पहुंचा।
श्लोक के निचोड़ में एक बार फिर भय यानी डर की बात सामने आ रही है। इसलिए जीवन में अगर किसी लक्ष्य को हासिल करना चाहते हैं और उसे पाने के लिए घोर संघर्ष करना पड़े तो पूरी तैयारी के साथ आगे बढ़ जाइए, फिर यह मत सोचिए कि क्या होगा? दुर्योधन के पास पांडवों के मुकाबले कई गुना बड़ी सेना थी लेकिन फिर भी वह भयभीत था। इससे यह भी सीखा जा सकता है कि हमें अपनी सही क्षमता का पता होना चाहिए और दिखावे से बचना चाहिए। तभी जीवन में किसी बड़े लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है।