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Sawan 2020: भगवान शिव के व्यक्तित्व से सीखें जीवन में कैसे लाएं संतुलन

By गुणातीत ओझा | Updated: July 31, 2020 17:26 IST

समुद्रमंथन से जब विष बाहर आया, तो सभी ने कदम पीछे खींच लिए थे क्योंकि विष कोई नहीं पी सकता था। ऐसे में महादेव ने स्वयं विष (हलाहल) पिया और उन्हें नीलकंठ नाम दिया गया।

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ठळक मुद्देजब कोई व्यक्ति भौतिक जीवन को त्याग कर सच्चे मन से मनन करे तो शिव की प्राप्ति होती है।भगवान शिव के व्यक्तित्व से सीखा जा सकता है कि कैसे जीवन में संतुलन लाना है।

सावन 2020: हजारों सालों से विज्ञान 'शिव' के अस्तित्व को समझने का प्रयास कर रहा है। जब भौतिकता का मोह खत्म हो जाए और ऐसी स्थिति आए कि ज्ञानेंद्रियां भी बेकाम हो जाएं, उस स्थिति में शून्य आकार लेता है, और जब शून्य भी अस्तित्वहीन हो जाए तो वहां शिव का प्राकट्य होता है। शिव यानी शून्य से परे। जब कोई व्यक्ति भौतिक जीवन को त्याग कर सच्चे मन से मनन करे तो शिव की प्राप्ति होती है। पाल बालाजी ज्योतिष संस्थान जयपुर के निदेशक ज्योतिषाचार्य अनीष व्यास व्यास ने बताया कि भगवान शिव को देवों के देव महादेव ही नहीं कहा जाता बल्कि उन्हें उनके व्यक्तित्व के कई गुणों की वजह से भी सबसे श्रेष्ठ माना जाता है। कभी वो सौम्य-शांत है, तो कभी वो अत्यंत क्रोधी। ऐसे में उनके व्यक्तित्व से सीखा जा सकता है कि कैसे जीवन में संतुलन लाना है।

नकरात्मकताओं से गुजरते हुए भी सकरात्मक बने रहना 

समुद्रमंथन से जब विष बाहर आया, तो सभी ने कदम पीछे खींच लिए थे क्योंकि विष कोई नहीं पी सकता था। ऐसे में महादेव ने स्वयं विष (हलाहल) पिया और उन्हें नीलकंठ नाम दिया गया। इस घटना से बहुत बड़ा सबक मिलता है कि हम भी जीवन में आने वाली नकरात्मक चीजों को अपने अंदर  रखकर या इससे गुजरते हुए भी जीवन की सकरात्मकता बनाए रख सकते हैं।

शांत रहकर खुद को नियंत्रित रखना 

शिव से बड़ा कोई योगी नहीं हुआ। किसी परिस्थिति से खुद को दूर रखते हुए उस पर पकड़ रखना आसान नहीं होता है। महादेव एक बार ध्यान में बैठ जाएं, तो दुनिया इधर से उधर हो जाए लेकिन उनका ध्यान कोई भंग नहीं कर सकता है। शिव का यह गुण हमेंं जीवन की चीजों पर नियंत्रण रखना सिखाता है।

अपनी प्राथमिकताओं को समझना 

भगवान शिव को हमेशा से अपनी प्राथमिकताओं का भान रहा। उन्होंने अपनी पत्नी से प्रेम और सम्मान को सबसे ऊपर रखने के साथ अपने मित्र और भक्तों को भी उचित स्थान दिया।

जीवन के हर रूप को खुलकर जीना 

शिव की जीवन शैली हो या उनका कोई अवतार, वे हर रूप में बिल्कुल अलग हैं। फिर वो रूप तांडव करते हुए नटराज हो, विष पीने वाले नीलकंठ, अर्धनारीश्वर, सबसे पहले प्रसन्न  होने वाले भोलेनाथ का हो। वे हर रूप में जीवन को सही राह देते हैं।

बाहरी सुंदरता की जगह गुणों को चुनना 

शिव का संपूर्ण रूप देखकर यह संदेश मिलता है कि हम जिन चीजों को अपने आस-पास देख भी नहीं सकते, उसे उन्होंने बड़ी आसानी से अपनाया है। उनके विवाह में भूतों की मंडली पहुंची थी। वहीं, शरीर में भभूत लगाए भोलेनाथ के गले में सांप लिपटा होता है। बुराई किसी में नहीं बस एक बार आपको उसे अपनाना होता है।

टॅग्स :सावनभगवान शिव
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