एक मुस्लिम जिसने पूरी जिंदगी भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति में गुजार दी, मथुरा में आज भी मौजूद है इनकी कब्र
By विनीत कुमार | Published: February 28, 2020 10:45 AM2020-02-28T10:45:43+5:302020-02-28T10:52:22+5:30
रसखान के नाम से प्रचलित सैयद इब्राहिम के श्रीकृष्ण को लेकर कविताएं और दोहे आज भी बेहद प्रचलित हैं। 'सुजान रसखान' और 'प्रेम वाटिका' उनकी प्रसिद्ध रचनाएं हैं।
आज के दौर में जब हिंदू-मुस्लिम भाईचारे के संबंध कई बार तार-तार होते नजर आते हैं, ऐसे में हम सभी को 'सैयद इब्राहिम' की कहानी के बारे में भी जानना जरूरी है। 'सैयद इब्राहिम' यानी श्रीकृष्ण के सबसे बड़े भक्तों में शुमार वो शख्स जिसने भगवान की लीलाओं को लेकर ऐसी-ऐसी कविताएं लिखी जिसकी चर्चा आज भी होती है।
हिंदी साहित्य में 'सैयद इब्राहिम' को ही 'रसखान' के नाम से जाना जाता है जिनकी भक्ति और प्रेम कविताएं आज भी पढ़ी जाती हैं। 'सुजान रसखान' और 'प्रेम वाटिका' उनकी प्रसिद्ध रचनाएं रहीं।
सैयद इब्राहिम कैसे बने श्रीकृष्ण के भक्त
रसखान के नाम से ज्यादा प्रचलित सैयद इब्राहिम का जन्म सोलहवीं शताब्दी में दिल्ली के एक समृद्ध पठान परिवार में हुआ था। कहते हैं कि एक बार उन्होंने श्रीमदभागवत गीता से जुड़ी कुछ बातें सुनी। वे एक कथा समारोह में पहुंचे थे और वहीं उन्होंने श्रीकृष्ण की बाल-लीलाओं के बारे में भी सुना।
सैयद इब्राहिम इसे सुन इतना भाव विभोर हो गए कि श्रीकृष्ण के प्रेमी 'रसखान' बन गए। ऐसा कहते हैं कि उन्होंने श्रीमदभागवत का फारसी में अनुवाद भी किया था। हालांकि, इसका ठोस प्रमाण नहीं मिलता।
महिला से था प्रेम फिर कृष्ण की भक्ति में डूबे
सैयद इब्राहिम के बारे में ये कथा भी प्रचलित है कि जब वे दिल्ली में रहते थे तो एक महिला के प्रति उनके मन में खास आसक्ति थी। वह महिला लेकिन उन्हें कठोर शब्द कहा करती थी। एक बार वे कृष्ण की कथा पढ़ रहे थे। इसमें गोपियों के साथ कृष्ण की लीला का प्रसंग आया।
रसखान के मन में अचानक ये प्रश्न आया कि गोपियों का प्रेम कितना स्वार्थरहित और पावन है। कहते हैं कि उन्होंने उसी समय कृष्ण के प्रेम में खुद को रमाने का निश्चय कर लिया। इसके बाद वे वृंदावन चले गए और गुरु विट्ठल जी से शिक्षा ली।
भगवान कृष्ण ने दिया जब रसखान को दर्शन
रसखान से जुड़ी एक कथा के अनुसार एक बार किसी वैष्णव ने उन्हें वृंदावन जाने की सलाह दी थी। जब वे वहां गए तो मुस्लिम होने के कारण कृष्ण मंदिर में उन्हें प्रवेश करने से रोक दिया गया। इससे रसखान बहुत आहत हुए और मंदिर के बार ही तीन दिनों तक भूखे-प्यासे बैठे रहे। कहते हैं इससे प्रसन्न होकर भगवान कृष्ण ने स्वयं उन्हें दर्शन दिए और उसी समय उनका नाम ‘रसखान (जिसके हृदय में अगाध प्रेम है)’ रखा।
इसके बाद रसखान ने अपना पूरा जीवन भगवान कृष्ण को समर्पित कर दिया और आखिरी सांस तक वृंदावन में ही रहे। ब्रज भाषा में लिखी उनकी कविताओं में कृष्ण-भक्ति के अलावा प्रेम-रस खास तौर से रहा। रसखान का निधन मथुरा में 1628 में हुआ और आज भी वहां उनका मकबरा है। रसखान के अलावा अमीर खुसरो, नजीर अकबराबादी और वाजिद अली शाह जैसे कई दूसरे मुस्लिम मतावलंबियों ने कृष्ण की स्तुति की है।