रक्षाबंधन 2018: पारिवारिक कलह दूर करने के लिए करें पूर्णिमा व्रत, जानें पूजा का समय, व्रत विधि, नियम
By गुलनीत कौर | Published: August 25, 2018 03:32 PM2018-08-25T15:32:23+5:302018-08-25T15:32:23+5:30
पूर्णिमा तिथि पर शिवलिंग पर शहद, कच्चा दूध, बेलपत्र, शमीपत्र आदि चढ़ाने से भगवान शिव प्रसन्न होते हैं
भाई-बहन के प्यार का प्रतीक रक्षाबंधन इस साल देशभर में 26 अगस्त 2018, दिन रविवार को मनाया जाएगा। श्रावण शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को हिन्दू धर्म में रक्षाबंधन के रूप में मनाया जाता है। ज्योतिर्विद पं दिवाकर त्रिपाठी पूर्वांचली के अनुसार यूं तो प्रत्येक माह में पूर्णिमा तिथि आती है, लेकिन श्रावण मास और रक्षाबंधन दोनों के होने से इस पूर्णिमा तिथि का महत्व काफी बढ़ जाता है। 26 अगस्त को प्रातः 5 बजकर 59 मिनट से रक्षासूत्र बांधने का शुभ मुहूर्त आरम्भ हो जाएगा जो कि शाम 5 बजकर 25 मिनट तक मान्य है।
पं दिवाकर त्रिपाठी आगे बताते हैं कि श्रावण की पूर्णिमा का व्रत करने के अनेकों लाभ हैं। यह व्रत परिवार से जुड़े सुख दिलाता है और अशांति दूर करता है। पं दिवाकर त्रिपाठी के अनुसार श्रावण पूर्णिमा 25 अगस्त, दिन शनिवार की दोपहर 2 बजकर 16 मिनट से ही प्रारम्भ हो जाएगी जो कि अगले दिन रविवार को दोपहर बाद 4 बजकर 16 मिनट तक चलेगी। लेकिन 26 अगस्त को उड़ाया तिथि होने के कारण पूर्णिमा इसीदिन की मानी जाएगी और सभी व्रत एवं धार्मिक कार्य 26 अगस्त को ही किये जाएंगे।
पूर्णिमा व्रत के 7 लाभ
1. लंबे समय से मानसिक कष्ट झेल रहे लोगों के लिए पूर्णिमा का व्रत करना लाभदायक होता है
2. इस व्रत को पूर्ण विधि-विधान से करने से पारिवारिक कलह से मुक्ति मिलती है
3. पूर्णिमा व्रत करने से परिवार में खुशियां आती हैं और अशांति दूर रहती है
4. यदि कुडली में कोई चंद्रमा दोष हो तो पूर्णिमा व्रत करना लाभदायक होता है
5. पूर्णिमा तिथि पर शिवलिंग पर शहद, कच्चा दूध, बेलपत्र, शमीपत्र आदि चढ़ाने से भगवान शिव प्रसन्न होते हैं
6. पूर्णिमा व्रत जीवन से शत्रुओं और भय का नाश करता है
7. पूर्णिमा व्रत करने से प्रेम और दांपत्य जीवन संबंधी सुख प्राप्त होते हैं
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पूर्णिमा व्रत विधि
महान धार्मिक ग्रन्थ भविष्यपुराण के अनुसार व्रती को इसदिन सुबह जल्दी उठ जाना चाहिए और किसी तीर्थ स्थान पर स्नान करना चाहिए। लेकिन अगर ऐसा संभव ना हो नहाने के जल में शुद्ध गंगा जल मिलाकर स्नान करें।
स्नान के बाद व्रत का संकल्प लें और फिर निम्नलिखित मंत्र से चंद्र देव की पूजा करनी चाहिए:
वसंतबान्धव विभो शीतांशो स्वस्ति न: कुरु।
गगनार्णवमाणिक्य चन्द्र दाक्षायणीपते।
पूजा के दिन दिनभर व्रत के नियमों का पालन करते हुए केवल फलाहार ही ग्रहण करें। रात में मौन होकर व्रत का भोजन करें।