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जैन धर्म का ऐतिहासिक पर्व पर्यूषण पर्व आज से शुरू, जानें क्या है इसका महत्व

By राजेश मूणत | Updated: September 12, 2023 10:55 IST

इस दिन प्राकृत भाषा के सूत्र वाक्य मिच्छामी दुक्कडम के संबोधन से जैन साधक सभी से समापन करते है।

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भारतीय संस्कृति पर्वों एवं त्योहारों की समृद्ध परंपरा का दूसरा नाम कही जाती है। इसी समृद्ध परंपरा में  जैन परम्परा के ऐतिहासिक पर्व पर्युषण का आज से आगाज हो गया है। 

पर्यूषण जैन परम्परा का एक महान पर्व है। पर्यूषण का शाब्दिक अर्थ है, परि  + उष्णता मतलब उष्णता का परित्याग करना। चारों ओर से सिमट कर स्वयं में वास करना।

इस साधना के माध्यम से व्यक्ति आधि, व्याधि और उपाधि से परे होकर समाधि तक पहुंच सकता है। पर्युषण पर्व जैन परम्परा के अनुसार आत्म शुद्धि व उत्थान का पर्व है । 

यह पर्व श्वेतांबर जैन अनुयायी प्रतिवर्ष भादो मास में मनाते है। पर्युषण पर्व को अपनी आत्मा में स्थिरवास करने का समय माना जाता है। इस दौरान साधक अपने भीतर पनप रहे गुणों और दुर्गुणों पर ध्यान केंद्रित कर अपने कार्य व्यवहार में बदलाव के लिए साधना करता है। इसी को पर्युषण पर्व का मूल भी माना जाता है। 

पर्युषण पर्व के आठ दिनों में संत महात्मा और आचार्य भगवंत अपने उपदेशों से समाज को जाग्रत करते है। इन उपदेशों में श्रमण भगवान महावीर के सिद्धांतो का प्रतिपादन किया जाता है। साधकों को प्रवचन के माध्यम से  विषय एवं कषायों से दूर होने की साधना कराई जाती है।

निराहार तपस्याओं से शरीर की शुद्धि और प्रवचनों के माध्यम से मन की शुद्धि के प्रयोग होते है। साधक अपनी आत्मा में लीन होकर चिंतन और मनन करें। इसे इस पर्व का मुख्य उद्देश्य कहा जाता है। आचार्य भगवंत श्री यशोभद्रसूरिश्वरजी महाराज साहेब के अनुसार गन्ने में जहां गांठ होती है। वहां रस नहीं होता है।

इसी तरह संबंधों में यदि गांठ है तो वहां भी नीरसता आ जाती हैं। जीवन में प्रेम,भाईचारा समझदारी सभी समाप्त हो जाता है। इसलिये आपसी संबंधों में गांठ को कैसे नहीं पड़ने दिया जाए इसका निरंतर प्रयोग होना चाहिए। पर्युषण पर्व एक अवसर देता है,जिसमे चिंतन के बाद प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष तरीके से आपसी मनमुटाव को दूर किया जा सकता है।

इस शुभ पर्व की सार्थकता तभी मानी जाती है।  अहिंसा के प्रतिपादक भगवान महावीर के अनुसार क्षमा व्यक्तित्व का हिस्सा बन जाए तो सम्पूर्ण जीवन विवादों से परे हो जाता है।  यह अहिंसा का मूल सूत्र  है। जगत के सभी जीवों से क्षमा की कामना।

क्षमापना पर्व केवल औपचारिकता नही है। पर्युषण पर्व के अंतिम दिन को संवत्सरी कहा जाता है। इस दिन साधक प्रतिक्रमण करते है। कहा गया है कि इस दौरान संसार के समस्त 84 लाख करोड़ जीव योनियों में रह रहे जीवों और प्राणीमात्र से जाने अनजाने में हुई त्रुटि के लिए क्षमा मांगी जाती है। इस दिन प्राकृत भाषा के सूत्र वाक्य मिच्छामी दुक्कडम के संबोधन से जैन साधक सभी से क्षमापना करते है।

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