भगवान विष्णु के कानों के मैल से दो दानवों की उत्पत्ति और इस पौराणिक कहानी के मायने
By शक्तिनन्दन भारती | Updated: August 31, 2021 15:43 IST2021-08-31T15:43:25+5:302021-08-31T15:43:25+5:30
पौराणिक कहानियों के अलग निहितार्थ होते हैं। यह कहानियां मानवों के मार्गदर्शन के लिए रची गई हैं।

भगवान विष्णु के कानों के मैल से दो दानवों की उत्पत्ति और इस पौराणिक कहानी के मायने
सृष्टि के शुरुआत में पौराणिक मान्यता के अनुसार दो असुर थे। इनके नाम थे मधु और कैटभ। ऐसा माना जाता है कि इन असुरों की उत्पत्ति योग निद्रा में सोए हुए भगवान महा विष्णु के कानों के मैल से हुई थी।
इन असुरों के समय पूरी धरती पर केवल जल ही जल था। अपने बल के घमंड में चूर इन दोनों असुरों ने ब्रह्मा जी को युद्ध के लिए ललकारा। भयभीत ब्रह्मा भगवान विष्णु के पास गए। भगवान विष्णु दोनों असुरों से युद्ध के लिए तैयार हुए।
मधु कैटभ दोनों असुरों को इच्छा मृत्यु का वरदान प्राप्त था। विष्णु से इनकी लड़ाई 5000 वर्षों तक चली। योग माया के वशीभूत हो इन असुरों ने भगवान विष्णु से अपनी मृत्यु ही मांग ली।
संक्षेप में कहानी बस इतनी सी ही है। पौराणिक कहानियों के अलग निहितार्थ होते हैं। यह कहानियां मानवों के मार्गदर्शन के लिए रची गई हैं।
इस कहानी का आशय यह है कि व्यक्ति को सदैव निद्रा तंद्रा से दूर रहना चाहिए तथा उसे मीठी और कड़वी बोली सुनने और बोलने से परहेज करना चाहिए। मधु का अर्थ है मीठा तथा कैटभ का अर्थ है कड़वा।
दोनों ही महा विष्णु के कान से उत्पन्न हुए हैं, मीठी बोली और कड़वी बोली दोनों ही अलग-अलग तरह की मनःस्थिति को संतुष्ट करती हैं। मीठे वचन से व्यक्ति आह्लादित होता है तथा जिसके प्रति मीठे वचन का प्रयोग किया जाता है उसे सम्मान महसूस होता है।
कड़वी बोली का प्रभाव ठीक इसके उलट होता है। मीठी और कड़वी बोली का दैनिक व्यवहार चित्त की समता पूर्ण स्थिति को नष्ट करता है, ऐसी स्थिति में व्यक्ति सही निर्णय नहीं ले सकता।
सरल और स्पष्ट शब्दों में बिना निंदा और स्तुति के अपनी बात कहने का साहस और ऐसी ही बात सुनने का अभ्यास जीवन को निरापद बना सकता है।