Navratri: मां चंद्रघंटा की आराधना से मिलती है कई सिद्धियां, जानिए मां के इस दिव्य स्वरूप के महत्व को

By आशीष कुमार पाण्डेय | Published: April 11, 2024 06:56 AM2024-04-11T06:56:01+5:302024-04-11T06:56:01+5:30

नवरात्री का तीसरा दिन मां चंद्रघंटा को समर्पित है। मां के नवदुर्गा स्वरूप में तृतीय स्थान पर विराजमान मां चंद्रघंटा की पूजा नवरात्रि के तीसरे दिन की जाती है।

Navratri: Many achievements are achieved by worshiping Maa Chandraghanta, know the importance of this form of Maa Chandraghanta | Navratri: मां चंद्रघंटा की आराधना से मिलती है कई सिद्धियां, जानिए मां के इस दिव्य स्वरूप के महत्व को

फाइल फोटो

Highlightsनवरात्री का तीसरा दिन मां चंद्रघंटा को समर्पित हैदेवी का यह स्वरूप परम शांतिदायक और कल्याणकारी माना गया हैमां चंद्रघंटा की पूजा से भक्तों का इस लोक तथा परलोक दोनों में ही कल्याण होता है

Navratri: नवरात्री का तीसरा दिन मां चंद्रघंटा को समर्पित है। मां के नवदुर्गा स्वरूप में तृतीय स्थान पर विराजमान मां चंद्रघंटा की पूजा नवरात्रि के तीसरे दिन की जाती है। देवी का यह स्वरूप परम शांतिदायक और कल्याणकारी माना गया है।

नवरात्र के तीसरे दिन योगीजन अपने मन को मणिपुर चक्र में स्थित कर भगवती आद्यशक्ति का आह्वाहन करते हैं और विभिन्न प्रकार की सिद्धियां प्राप्त करते हैं। मां चंद्रघंटा की पूजा से भक्तों का इस लोक तथा परलोक दोनों में ही कल्याण होता है।

मां चंद्रघंटा का स्वरूप अत्यंत शांतिदायक तथा कल्याणकारी है। इनके मस्तक पर अर्द्धचन्द्र विराजमान है व इनके हाथ में भयावह गर्जना करने वाला घंटा है जिस कारण इन्हें चंद्रघंटा कहा जाता है। इनके शरीर का वर्ण स्वर्ण के समान सुनहरा चमकीला है। इनके दस हाथ हैं, जिनके द्वारा भगवती ने विभिन्न अस्त्र-शस्त्र धारण किए हुए हैं। इनका वाहन सिंह है तथा इनके घंटे की सी भयानक ध्वनि से दानव, दैत्य आदि भयभीत रहते हैं और देवताजन तथा मनुष्य सुखी होते हैं।

माता चंद्रघंटा की मंत्र

पिण्डजप्रवरारूढ़ा चण्डकोपास्त्रकेर्युता।
प्रसादं तनुते मह्यं चंद्रघण्टेति विश्रुता॥

मां चंद्रघंटा के दिव्य स्वरूप की पावन कथा

सनातन धर्म की पौराणिक कथा के अनुसार एक बार महिषासुर नाम के एक राक्षस ने स्वर्ग पर आक्रमण कर दिया। उसने देवराज इंद्र को युद्ध में हराकर स्वर्गलोक पर विजय प्राप्त कर ली और स्वर्गलोक पर राज करने लगा।

युद्ध में हारने के बाद सभी देवता इस समस्या के निदान के लिए त्रिदेवों के पास गए। देवताओं ने भगवान विष्णु, महादेव और ब्रह्मा जी को बताया कि महिषासुर ने इंद्र, चंद्र, सूर्य, वायु और अन्‍य देवताओं के सभी अधिकार छीन लिए हैं और उन्हे बंदी बनाकर स्वर्ग लोक पर कब्जा कर लिया है। महिषासुर के अत्याचार के कारण देवताओं को धरती पर निवास करना पड़ रहा है।

देवताओं की बात सुनकर त्रिदेवों को अत्यधिक क्रोध आ गया और उनके मुख से ऊर्जा उत्पन्न होने लगी। इसके बाद यह ऊर्जा दसों दिशाओं में जाकर फैल गई। उसी समय वहां पर देवी चंद्रघंटा ने अवतार लिया। भगवान शिव ने देवी को त्रिशूल, विष्णु जी ने चक्र दिया।

इसी तरह अन्य देवताओं ने भी मां चंद्रघंटा को अस्त्र शस्त्र प्रदान किए। इंद्र ने मां को अपना वज्र और घंटा प्रदान किया। भगवान सूर्य ने मां को तेज और तलवार दिए। इसके बाद मां चंद्रघंटा को सवारी के लिए शेर भी दिया गया। मां अपने अस्त्र शस्त्र लेकर महिषासुर से युद्ध करने के लिए निकल पड़ीं।

मां चंद्रघंटा का रूप इतना विशालकाय था कि उनके इस स्वरूप को देखकर महिषासुर अत्यंत डर गया। महिषासुर ने अपने असुरों को मां चंद्रघंटा पर आक्रमण करने के लिए कहा। सभी राक्षस से युद्ध करने के लिए मैदान में उतर गए। मां चंद्रघंटा ने सभी राक्षसों का संहार कर दिया। मां चंद्रघंटा ने महिषासुर के सभी बड़े राक्षसों को मार दिया और अंत में महिषासुर का भी अंत कर दिया। इस तरह मां चंद्रघंटा ने देवताओं की रक्षा की और उन्हें स्वर्गलोक की प्राप्ति कराई।

माता के इस रूप का महत्व

नवरात्रि में तीसरे दिन इसी देवी की पूजा का महत्व है। इस देवी की कृपा से साधक को अलौकिक वस्तुओं के दर्शन होते हैं। दिव्य सुगंधियों का अनुभव होता है और कई तरह की ध्वनियां सुनाईं देने लगती हैं। इन क्षणों में साधक को बहुत सावधान रहना चाहिए। इस देवी की आराधना से साधक में वीरता और निर्भयता के साथ ही सौम्यता और विनम्रता का विकास होता है।

माता चंद्रघंटा की आरती

जय मां चन्द्रघंटा सुख धाम। पूर्ण कीजो मेरे काम॥
चन्द्र समाज तू शीतल दाती। चन्द्र तेज किरणों में समांती॥

क्रोध को शांत बनाने वाली। मीठे बोल सिखाने वाली॥
मन की मालक मन भाती हो। चंद्रघंटा तुम वर दाती हो॥

सुन्दर भाव को लाने वाली। हर संकट में बचाने वाली॥
हर बुधवार को तुझे ध्याये। श्रद्धा सहित तो विनय सुनाए॥

मूर्ति चन्द्र आकार बनाए। शीश झुका कहे मन की बाता॥
पूर्ण आस करो जगत दाता। कांचीपुर स्थान तुम्हारा॥

कर्नाटिका में मान तुम्हारा। नाम तेरा रटू महारानी॥
भक्त की रक्षा करो भवानी। जय मां चंद्रघंटा ।

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