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Navratri: दुर्गा सप्तशती के इन 7 श्लोकों के जप से मिलता है संपूर्ण सप्तशती के पाठ का फल, जानिए उनके बारे

By आशीष कुमार पाण्डेय | Updated: April 10, 2024 06:55 IST

हिंदू सनातन धर्म में नवरात्र की विशेष महत्ता है। नवरात्र आदिशक्ति माता भगवती की पूजा-उपासना का महापर्व है।

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ठळक मुद्देहिंदू सनातन धर्म में नवरात्र की विशेष महत्ता हैनवरात्र आदिशक्ति माता भगवती की पूजा-उपासना का महापर्व हैनवरात्र में मां दुर्गा की विशेष आराधना की जाती है, भक्त विशेषरूप से दुर्गा सप्तशती का पाठ करते हैं

Navratri: हिंदू सनातन धर्म में नवरात्र की विशेष महत्ता है। नवरात्र आदिशक्ति माता भगवती की पूजा-उपासना का महापर्व है। नौ दिन मां दुर्गा की विशेष आराधना की जाती है और इन दिनों में भक्त श्री दुर्गा सप्तशती का पाठ करते हैं। लेकिन संपूर्ण दुर्गा शप्तशती में 13 अध्यायों होते हैं, जिसमें बहुत ज्यादा समय लगता है।

अगर मां के भक्त को नवरात्र में किसी कार्य या अन्य व्यस्तताओं के कारण शप्तशती के संपूर्ण पाठ का समय नहीं मिलता और वो सात दिनों में तेरह अध्याय का पाठ कर नहीं कर पाते हैं तो उनके लिए दुर्गा शप्तशती को करने की एक संक्षिप्त विधि भी है।

नौकरीपेशा या बहुत सफर करने वाले के लिए दुर्गा शप्तशती के यह 7 श्लोक किसी दुर्लभ वरदान से कम नहीं है। मान्यता है इन्हीं सात श्लोकों में समाया है श्रीदुर्गासप्तशती का संपूर्ण पाठ। इस विधि से मां की आराधना करने पर भक्तों तो श्रीदुर्गासप्तशती के संपूर्ण पाठ का फल मिल जाता है।

यदि आपके मन में माता के विधिवत पूजन की बड़ी इच्छा है पर समय के अभाव के कारण नहीं कर पा रहे तो प्रातः या संध्याकाल में स्नानआदि करने के बाद सप्तश्लोकी दुर्गा पाठ से शुरुआत करें और नवमी तक श्रद्धाभाव से रोज 7 श्लोकों का पाठ करते रहें।

शास्त्रों में कहा गया है कि कवच, अर्गला और कीलक के पाठ के उपरांत श्रीदुर्गासप्तशती के सभी अध्यायों का सस्वर पाठ से समस्त अमंगलों का नाश होता है। माता की कृपा से सुख-शातिं, यश-कीर्ति, धन-धान्य, आरोग्य, बल-बुद्धि की प्राप्ति होती है।

संपूर्ण दुर्गा सप्तशती में सात सौ श्लोक हैं, जो कुल तेरह अध्यायों में विभक्त हैं। पूर्ण सप्तशती श्लोकों के पाठ में समय काफी लगता है। इस कारण शप्तशती में सात श्लोक ऐसे हैं, जो माता को सर्वाधिक प्रिय हैं और उनका पाठ करने से संपूर्ण सप्तशती का पाठ मान लिया जाता है।

पाठ कैसे करें आरंभः

सप्तश्लोकी का का आरंभ करने से पूर्व इस मंत्र द्वारा श्रीदुर्गासप्तशती ग्रंथ का पंचोपचार पूजन कर लें। यदि पूरा संभव न हो तो कम से कम निम्न मंत्र का उच्चारण करते हुए धूप-दीप दिखाएं, जल छिड़कें, पुष्प अर्पित करें, अक्षत आदि को समर्पित करें।

नमो देव्यै महादेव्यै शिवायै सततं नम:।नम: प्रकृत्यै भद्रायै नियता: प्रणता: स्मताम्॥

इसके बाद सप्तश्लोकी दुर्गा का पाठ आरंभ करें। इन सात श्लोकों में दुर्गा सप्तशती का संपूर्ण सार समाहित है।

।।अथ श्रीसप्तश्लोकी दुर्गा।।

शिव उवाच :

देवि त्वं भक्त सुलभे सर्वकार्य विधायिनी ।कलौ हि कार्य सिद्धयर्थम् उपायं ब्रूहि यत्नतः ॥

देव्युवाच :

श्रृणु देव प्रवक्ष्यामि कलौ सर्वेष्ट साधनम् ।मया तवैव स्नेहेनाप्यम्बा स्तुतिः प्रकाश्यते ॥

विनियोग :

ॐ अस्य श्रीदुर्गा सप्तश्लोकी स्तोत्र मन्त्रस्य नारायण ॠषिः, अनुष्टुपछन्दः, श्रीमहाकाली-महालक्ष्मी-महासरस्वत्यो देवताः, श्री दुर्गाप्रीत्यर्थं सप्तश्लोकी दुर्गापाठे विनियोगः ।

ॐ ज्ञानिनामपि चेतांसि देवी भगवती हि सा ।बलादाकृष्य मोहाय महामाया प्रयच्छति ।।1।।

दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेष जन्तोःस्वस्थैः स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि।दारिद्र्य दुःख भयहारिणि का त्वदन्यासर्वोपकार करणाय सदार्द्रचित्ता ।।2।।

सर्वमङ्गल माङ्गल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके ।शरण्ये त्र्यंम्बके गौरि नारायणि नमोस्तु ते ॥3॥

शरणागत दीनार्तपरित्राण परायणेसर्वस्यार्ति हरे देवि नारायणि नमोस्तु ते ॥4॥

सर्वस्वरुपे सर्वेशे सर्वशक्ति समन्विते।भयेभ्यस्त्राहि नो देवि दुर्गे देवि नमोस्तु ते ॥5॥

रोगानशेषानपंहसि तुष्टारुष्टा तु कामान् सकलानभीष्टान् ।त्वामाश्रितानां न विपन्नराणांत्वामाश्रिता हि आश्रयतां प्रयान्ति ॥6॥

सर्वबाधा प्रशमनं त्रैलोक्यस्याखिलेश्वरि ।एवमेव त्वया कार्यम् अस्मद् वैरि विनाशनम् ॥7॥

॥ इति श्रीसप्तश्लोकी दुर्गा सम्पूर्ण ॥

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