Kartik Purnima 2025: कार्तिक पूर्णिमा आज, जानें महत्व, पूजा विधि और शुभ मुहूर्त
By रुस्तम राणा | Updated: November 5, 2025 05:26 IST2025-11-05T05:26:34+5:302025-11-05T05:26:34+5:30
मान्यता है कि इस दिन गंगा स्नान करने से समस्त प्रकार से रोग-दोष और पापों से छुटकारा मिलता है। कार्तिक पूर्णिमा के दिन काशी में देव दिवाली मनाई जाती है।

Kartik Purnima 2025: कार्तिक पूर्णिमा आज, जानें महत्व, पूजा विधि और शुभ मुहूर्त
Kartik Purnima 2025: हिंदू धर्म में कार्तिक पूर्णिमा का बड़ा महत्व है। कार्तिक मास की पूर्णिमा तिथि को गंगा स्नान किया जाता है, इसलिए इस पर्व को गंगा स्नान भी कहा जाता है। इस साल कार्तिक पूर्णिमा 05 नवंबर (बुधवार) को है। इस दिन गंगा स्नान, दीपदान और भगवान की आराधना का विधान है। मान्यता है कि इस दिन गंगा स्नान करने से समस्त प्रकार से रोग-दोष और पापों से छुटकारा मिलता है। कार्तिक पूर्णिमा के दिन काशी में देव दिवाली मनाई जाती है।
कार्तिक पूर्णिमा शुभ मुहूर्त
ब्रह्म मुहूर्त- सुबह में 04:52 से 05:44
प्रातः सन्ध्या- सुबह में 05:18 से 06:36
अभिजित मुहूर्त- नहीं है
विजय मुहूर्त- दोपहर में 01:54 से 02:38
गोधूलि मुहूर्त- शाम में 05:33 से 05:59
सायाह्न सन्ध्या- शाम में 05:33 से 06:51
निशिता मुहूर्त- रात 11:39 से सुबह 12:31
इस विधि से करें गंगा स्नान
कार्तिक पूर्णिमा के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठना चाहिए।
ब्रह्म मुहूर्त में उठने के बाद स्नान करें।
यदि संभव हो तो कार्तिक माह की पूर्णिमा पर गंगा स्नान करें।
आप घर पर पानी में गंगाजल डालकर स्नान कर सकते हैं।
घर में और पूजा स्थल पर गंगाजल छिड़कर शुद्ध करेंय़
आप भगवान विष्णु मां लक्ष्मी और गणेश जी की प्रतिमा स्थापित कर पूजा करें।
इस दिन सत्यनारायण की कथा का पाठ करें।
शाम के समय दीपदान कर आरती अवश्य करें।
इस अवसर पर ऐसे पाएं लाभ
कार्तिक पूर्णिमा के दिन तुलसी के समीप और तालाब, सरोवर या गंगा तट पर दीप जलाने से या दीप दान करने से मां लक्ष्मी प्रसन्न होकर सुख समृद्धि का वरदान देती हैं। वहीं विष्णु जी को तुलसी पत्र की माला और गुलाब का फूल चढ़ाने से हर मनोकामना पूरी होती हैं। शुभ और मांगलिक कार्यों की शुरुआत के लिए भी कार्तिक पूर्णिमा का दिन बेहद अच्छा माना जाता है।
पौराणिक महत्व
हिन्दू धर्म के अनुसार त्रिपुरासुर ने देवताओं को पराजित कर उनके राज्य छीन लिए थे। भगवान शिव ने इसी दिन त्रिपुरासुर का वध किया था। इसीलिए इसे त्रिपुरी पूर्णिमा या त्रिपुरारी पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। उसकी मृत्यु के बाद देवताओं में उल्लास था। इसलिए इस दिन को देव दिवाली कहा गया। देवताओं ने स्वर्ग में दीये जलाए थे। मान्यता है कि कार्तिक मास में भगवान विष्णु ने मत्स्य अवतार लिया था।