Margashirsha Amavasya 2023: आज है साल की आखिरी अमावस्या, जानें इस दिन का महत्व और सब कुछ
By अंजली चौहान | Updated: December 12, 2023 09:32 IST2023-12-12T09:31:24+5:302023-12-12T09:32:53+5:30
इस बार मार्गशीर्ष अमावस्या 12 दिसंबर, मंगलवार को है। पितरों को प्रसन्न करने के लिए यह दिन शुभ माना जाता है।

Margashirsha Amavasya 2023: आज है साल की आखिरी अमावस्या, जानें इस दिन का महत्व और सब कुछ
Margashirsha Amavasya 2023: हिंदू धर्म में अमावस्या का विशेष महत्व है। साल 2023 की आखिरी अमावस्या के रूप में आज मार्गशीर्ष अमावस्या है जो बहुत महत्वपूर्ण है। मार्गशीर्ष माह के कृष्ण पक्ष की अमावस्या को मार्गशीर्ष अमावस्या के नाम से जाना जाता है। इसे अगहन अमावस्या या श्राद्ध अमावस्या भी कहा जाता है।
मार्गशीर्ष माह के दौरान देवी लक्ष्मी की विशेष पूजा और अनुष्ठान किये जाते हैं। इस बार मार्गशीर्ष अमावस्या 12 दिसंबर, मंगलवार को है। पितरों को प्रसन्न करने के लिए यह दिन शुभ माना जाता है।
मार्गशीर्ष अमावस्या पर करें ये काम
मार्गशीर्ष अमावस्या पर मृत हुए लोगों की आत्माओं की शांति के लिए तर्पण, स्नान, दान और अन्य अनुष्ठान जैसे विभिन्न कार्य निर्धारित हैं।
- इस दिन देवी लक्ष्मी की पूजा करना अत्यंत शुभ माना जाता है।
- सुबह उठकर किसी पवित्र नदी, तालाब या जलाशय में पवित्र स्नान करें और भगवान सूर्य को अर्घ्य दें।
- स्नान के बाद जल में तिल प्रवाहित करें और गायत्री मंत्र का जाप करें।
- इस दिन भगवान विष्णु या भगवान शिव की पूजा करें।
- पितरों के मोक्ष की कामना व्यक्त करते हुए उनके लिए तर्पण करें।
- पूजा और अनुष्ठान के बाद किसी जरूरतमंद व्यक्ति या ब्राह्मण को दान देना जरूरी है।
मार्गशीर्ष अमावस्या का महत्व
अगहन मास या मार्गशीर्ष माह की अमावस्या पर पूजा और व्रत करने से पापों का नाश होता है। अमावस्या होने के कारण इस दिन स्नान, दान और अन्य धार्मिक अनुष्ठान जैसे कार्य किये जाते हैं। मार्गशीर्ष अमावस्या पर तर्पण और पिंड दान का विशेष महत्व है।
माना जाता है कि इस दिन व्रत करने से सभी कष्टों का अंत होता है और जीवन में सुख-समृद्धि आती है। पौराणिक शास्त्रों के अनुसार इस दिन पूजा करने से पितृ दोष का शमन होता है और पितरों की कृपा परिवार पर बनी रहती है।
मार्गशीर्ष अमावस्या के दिन पितरों की शांति के लिए व्रत रखना लाभकारी माना जाता है। इस दिन भगवान सत्यनारायण की पूजा करना अत्यंत शुभ होता है। पूजा स्थल पर भगवान सत्यनारायण और देवी लक्ष्मी की तस्वीरें रखें और उचित अनुष्ठानों के साथ पूजा करें। पूजा के बाद हलवे का भोग लगाएं। सत्यनारायण कथा का पाठ पूजा का एक अभिन्न अंग है और इसके पूरा होने के बाद ही पूजा पूर्ण मानी जाती है।
(डिस्केलमर: यहां मौजूद सभी जानकारी सामान्य अध्ययन पर आधारित है। कृपया सटीक जानकारी के लिए हमेशा किसी विशेषज्ञ की सलाह जरूर लें, लोकमत हिंदी इसकी पुष्टि नहीं करता है।)