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महाभारत: कौरव और पांडव जिस वंश में पैदा हुए उसे कुरु वंश क्यों कहते हैं, पढ़ें राजा कुरु के जन्म की कथा

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: March 2, 2021 15:41 IST

कौरव और पांडव कुरु वंश के थे। महाभारत की लड़ाई कुरुवंशियों के ही बीच हुई। कुरु राजा का जन्म कैसे हुआ था, कौन हैं उनके माता-पिता, जानिए।

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ठळक मुद्देहस्तिनापुर के राजा संवरण और उनकी पत्नी तपनी के पुत्र थे कुरुमहाभारत की कथा के अनुसार तपनी सूर्यदेव की पुत्री थीराजा संवरण सूर्यदेव की घोर तपस्या करने के बाद उन्हें खुश कर तपनी से विवाह कर सके थे

महाभारत की कहानी मुख्य तौर पर पांडव और कौरव की बीच हुई युद्ध की कहानी है। इसमें लाखों योद्धा मारे गए और आखिरकार सत्य यानी पांडवों की जीत हुई। कौरव और पांडव दोनों ही एक वंश यानी कुरु वंश से थे। ऐसे में क्या आप जानते हैं कि इनके वंश को कुरु वंश क्यों कहा जाता है। कुरु कौन थे, उनके जन्म की कथा क्या है? आईए आपको बताते हैं।

राजा संवरण और उनकी पत्नी तपनी के पुत्र कुरु

महाभारत में कुरु को लेकर जिक्र है। वेदव्यास ने इस बारे में प्रकाश डाला है। इस कथा के अनुसार कुरु हस्तिनापुर के एक प्रतापी राजा संवरण और उनकी पत्नी तपनी के पुत्र थे।

कथा के अनुसार संवरण सूर्य के समान तेज और अपनी प्रजा का ध्यान रखने वाले राजा था। वे किसी भी स्थिति में अपनी प्रजा के कष्टों को हमेशा दूर करने का पूरा प्रयास करते थे। संवरण सूर्य देव के भी बड़े भक्त थे। 

एक समय की बात है संवरण शिकार खेलने के लिए गये थे। इसी दौरान उन्हें एक पर्वत पर सुंदर युवती दिखाई पड़ी। राजा संवरण उसकी सुंदरता को देख हतप्रभ रह गए और विवाह का प्रस्ताव रखा।

उस युवती ने संवरण को बताया कि वो भी उन्हें देख कर उन पर मुग्ध हैं। युवती ने हालांकि विवाह में असमर्थता जताते हुए कहा कि वो पिता की आज्ञा के वश में है। युवती ने कहा, 'मैं सूर्य देव की छोटी बेटू हूं। मेरा नाम तपती है। मेरे पिता जब तक अनुमति नहीं देते हैं मैं आपसे विवाह नहीं कर सकती। यदि मुझे पाना है तो मेरे पिता को प्रसन्न करें।' इतना कहते ही तपती अदृश्य हो गईं।

संवरण की तपस्या से सूर्यदेव हुए खुश

इसके बाद संवरण ने तपती को पाने के लिए सूर्य देव की आराधना शुरू की। संवरण की तपस्या से सूर्य देव प्रसन्न हो उठे और उन्होंने प्रकट होकर कहा वे सब कुछ जानते हैं और तपती से विवाह कराने के लिए तैयार हैं। 

इसके बाद सूर्य देव ने अपनी पुत्री तपती का संवरण के साथ विवाह कर दिया। संवरण इसके बाद अपने राज्य को भूल वहीं तपती को लेकर पर्वत पर रहने लगे। वे पत्नी की प्रेम में सबकुछ भूल गये। 

इधर संवरण के राज्य में भीषण अकाल पैदा हुआ। लोग और जानवर भूखे मरने लगे। प्रजा राज्य छोड़ दूसरी जगह जाने लगी। ऐसे में राजा संवरण के मंत्री ने संवरण का पता लगाने का फैसला किया और घूमते-घूमते उसी पर्वत पर जा पहुंचा।

मंत्री ने राजा संवरण को सिखाया पाठ

संवरण के साथ तपती को देखकर मंत्री समझ गया कि उसका राजा स्त्री के सौंदर्य जाल में फंसा हुआ है। इसके बाद मंत्री ने बुद्धिमानी से काम लेते हुए संवरण को वासना के जाल से छुड़ाने के लिए एक युक्ति रची। 

मंत्री ने अकाल की अग्नि में जलते हुए मनुष्यों के चित्र बनवाए और उसे लेकर संवरण के पास पहुंचा। उसने भेंट के नाम पर संवरण को चित्रों से बनी वह पुस्तक दी। पुस्तक को देखते हुए संवरण हैरान रह गए। हर पृष्ठ पर विभत्स दृश्य थे। कहीं माताएं अपने बच्चों को कुएं में फेंक रही थीं तो किसी पृष्ठ में भूखे मनुष्य जानवरों को कच्चा मांस खा रहे थे। एक पन्ने पर प्यासे मनुष्य हाथों में कीचड़ लेकर चाट रहे थे। 

चित्रों को देख संवरण ने पूछा कि ये यह किस राजा के राज्य की प्रजा का दृश्य है? मंत्री ने जवाब दिया- उस राजा का नाम संवरण है। यह सुनकर संवरण सब समझ गए। उन्हें अपनी गलती का अहसास हुए। 

वे तुरंत तपती के साथ अपनी राजधानी पहुंचे और प्रजा की सेवा में लग गए। कुछ दिन बाद हालात एक बार फिर ठीक हो गए। वर्षा होने लगी और पृथ्वी हरियाली से ढक गई। अकाल दूर हो गया। 

प्रजा भी अपने राजा और रानी को पूजने लगे। आगे जाकर तपती से एक पुत्र का जन्म हुआ, जिसका नाम 'कुरु' रखा गया। कुरु भी अपने पिता के समान बहुत ही प्रतापी राजा बने और इन्हीं से आगे चलकर कुरु वंश की शुरुआत हुई।

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