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रुद्राक्ष की पौराणिक कथा में ही छिपा है इसे धारण करने का महत्व, जानें और पाएं लाभ

By गुलनीत कौर | Updated: February 10, 2018 12:31 IST

शिव कृपा पाने के लिए पचास या सत्ताईस मनकों की रुद्राक्ष माला बनाकर धारण करें। रोजाना नहीं तो ग्रहण, संक्रांति, अमावस्या, पूर्णमासी या शिव पर्वों पर रुद्राक्ष की माला अवश्य धारण करें।

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शिव रुद्राक्ष की कहानी

रुद्राक्ष का महत्व और इसे क्यों धारण करें, इसका उल्लेख शिव पुराण में मिलता है। कहते हैं कि भगवान शिव को यदि प्रसन्न करता हो तो शिव रुद्राक्ष माला से ही उनके मंत्रों का जाप करें। रुद्राक्ष को भगवान शिव का अंग माना गया है, इसी को आधार मानते हुए शिव भक्त रुद्राक्ष के मनके या मानकों से बनी माला को पहनते हैं। शिव पर्वों जैसे कि महाशिवरात्रि या श्रावण मास के दौरान इसे धारण करने का महत्व और भी बढ़ जाता है। लेकिन यह रुद्राक्ष धरती पर कैसे आया, इसके चमत्कारी गुणों के पीछे क्या रहस्य है, इसके पीछे एक पौराणिक कथा प्रचलित है।

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एक बार की बात है, पृथ्वी पर त्रिपुर नामक एक राक्षस ने सभी को परेशान किया हुआ था। उसके आतंक से दुखी होकर ब्रह्मा, विष्णु और इंद्र देव आदि भगवान शिव के पास पहुंचे और उनसे इस राक्षस से मुक्ति दिलाने के लिए प्रार्थना करने लगे। तब भगवान शिव ने उन्हें उनके 'अघोर' नामक दिव्य अस्त्र के बारे में बताया। यह अस्त्र बहुत विशाल और तेजयुक्त है किन्तु इसकी प्राप्ति कठोर तपस्या से ही होती है। 

इस तरह धरती पर आया 'रुद्राक्ष'

देवताओं की चिंता को समझते हुए भगवान शिव ने अपने नेत्र बंद कर लिए और तपस्या में लीन हो गए। कहते हैं कि तपस्या के दौरान अचानक शिव के बंद नेत्रों से जल की बूंदें निकलकर भूमि पर गिर गईं। ये बूंदें जहां जहां गिरीं वहां रुद्राक्ष के विशाल वृक्ष उत्पन्न हो गए। भगवान शिव की आज्ञा से इन्हीं वृक्षों पर रुद्राक्ष के फल लग गए।

कहा जाता है कि इन सभी रुद्राक्षों में एक विशेष प्रकार की ऊर्जा समाई है। इन रुद्राक्षों के भिन्न भिन्न प्रकार हैं, इनमें कत्थई वाले बारह प्रकार के रुद्राक्षों में सूर्य के नेत्रों की ऊर्जा है। श्वेतवर्ण के सोलह प्रकार के रुद्राक्षों में चन्द्रमा और कृष्ण वर्ण वाले दस प्रकार के रुद्राक्षों मदन अग्नि के नेत्रों की भरपूर ऊर्जा का वास माना जाता है। 

रुद्राक्ष के चमत्कारी गुण

रुद्राक्ष की इस प्रत्येक ऊर्जा को शिव भक्त उपयोग में लाकर अपना जीवन सफल बना सकते हैं। मान्यता है कि शिव तो 'भोले' हैं, यानी कि यदि कलोई भक्त सच्चे मन से उनकी उपासना करे तो वे जल्द ही प्रसन्न हो जाते है और मुंह मांगा वरदान भी देते हैं। शिव को प्रसन्न करने की एक मात्र और सरल साधन है उनके मंत्रों का शुद्ध उच्चारण सहित जाप। किन्तु यदि यह जाप रुद्राक्ष माला से किया जाए तो अधिक उचित और फलदायी माना जाता है।

शास्त्रों के अनुसार एकमुखी, द्विमुखी, पंचमुखी या सप्तमुखी रुद्राक्ष माला से शिव मंत्रों का जाप करें। यदि चाहते हैं कि भगवान शिव हर पल आपके ऊपर अपनी कृपा बनाए रखें, शत्रुओं से आपकी रक्षा करें तो रुद्राक्ष के पचास या सत्ताईस मनकों की माला बनाकर धारण करें। रोजाना नहीं तो ग्रहण, संक्रांति, अमावस्या, पूर्णमासी, शिव पर्वों  आदि पर रुद्राक्ष की माला अवश्य धारण करें।

रुद्राक्ष धारण करने के बाद ये ना करें

किन्तु एक बात का ध्यान रखें, रुद्राक्ष माला धारण करने के बाद  मांस-मदिरा आदि पदार्थों का सेवन कतई ना करें। शास्त्रों के अनुसार ऐसा करने वाला महापापी कहलाता है और शिव के करोड़ का शिकार भी हो जाता है।

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