गुजरात में गायब हो जाता है भगवान शिव का यह मंदिर!
By लोकमत समाचार हिंदी ब्यूरो | Published: December 20, 2017 12:13 PM2017-12-20T12:13:36+5:302017-12-20T13:43:49+5:30
किंवदंती के मुताबिक सभी देवताओं ने मिलकर महिसागर संगम तीर्थ पर विश्वनंदक स्तंभ की स्थापना की जिसे स्तंभेश्वर तीर्थ के नाम से जाना जाता है।
देश में ऐसे कई मंदिर हैं जो अपने आप में अनोखे और रहस्यों से भरे हुए है जिसकी कल्पना नहीं की जा सकती। ऐसा ही एक मंदिर भगवान शिव का है जो रहस्यों से भरा हुआ है। भगवान शिव के मंदिर का एक और रहस्य आपके सामने पेश कर रहा हूं जिसे जानकर आप हैरान हो जाएंगे। गुजरात का स्तंभेश्वर महादेव मंदिर जहां समुद्र देवता खुद शिव का जलाभिषेक करते हैं। इस मंदिर को 'गायब मंदिर' भी कहा जाता है। इसके लिए यह मंदिर दुनिया भर में जाना जाता है। यह मंदिर गुजरात के वड़ोदरा शहर से लगभग 60 किलोमीटर की दूरी कवि कम्बोई गांव में स्थित है।
मंदिर के बारे में
इस तीर्थ स्थल का उल्लेख श्री महाशिवपुराण में किया गया है। इस मंदिर की खोज लगभग 200 साल पहले हुई थी। स्तंभेश्वर मंदिर गुजरात के प्राचीन तीर्थ स्थलों में से एक है। यह मंदिर अरब सागर में खंभात की खाड़ी के किनारे स्थित है। मंदिर में स्थित शिवलिंग का आकार 4 फीट ऊंचा और दो फुट के व्यास वाला है। मंदिर दिन में गायब हो जाता है क्योंकि समुद्र में ज्वार भाटा आने के कारण समुद्र का पानी मंदिर तक पहुंच जाता है। पानी इतना बढ़ जाता है कि मंदिर डूब जाता है और दिखाई देना बंद हो जाता है। यह परंपरा सदियों से चली आ रही है।
पौराणिक कथा
पौराणिक कथा के अनुसार ताड़कासुर नाम के राक्षस ने भगवान शिव की कठोर तपस्या कर उन्हें प्रसन्न कर लिया। उसने शिव से वरदान मांगा कि मुझे केवल आपका पुत्र ही मार सकेगा वो भी छह दिन की आयु का। आखिरकार शिव के पुत्र कार्तिकेय ने 6 दिन की आयु में ताड़कासुर का वध किया। जब उसको मालूम चला कि ताड़का शिव का भक्त था तो उन्होंने विष्णु से कहा कि ताड़कासुर के वधस्थल पर शिवालय बनवा दें। उसके बाद सभी देवताओं ने मिलकर महिसागर संगम तीर्थ पर विश्वनंदक स्तंभ की स्थापना की जिसे स्तंभेश्वर तीर्थ के नाम से जाना जाता है।
इस प्राचीन महादेव मंदिर की यात्रा के लिए पूरे एक दिन और रात का समय लगता है। यह होने वाले चमत्कारी दृश्य को देखने में बहुत अधिक समय लग जाता है। इस चमत्कारी दृश्य को देखने कर लिए लोग बहुत दूर-दूर से आते है। इस दृश्य को देखने मे कितना समय लगता है यह अनुमान कोई नही लगा सकता। जैसा कि भोर के समय ज्वार का प्रभाव कम होता है। उस दौरान मंदिर को देखा जा सकता है।