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महाशिवरात्रि 2018: ये है भगवान शिव का इकलौता ऐसा प्राचीन मंदिर जहां शिव-विष्णु दोनों की होती है पूजा

By धीरज पाल | Updated: February 9, 2018 15:11 IST

मान्यता है कि भगवान शिव व विष्णु ने रातभर अर्बुदांचल की परिक्रमा की थी, इस मंदिर में दोनों देवों की विधिवत पूजा की जाती है।

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हिंदू धर्म में तीन देवताओं को सर्वश्रेष्ठ माना गया है, ब्रह्मा, विष्णु और महेश। इन्हें हिन्दू धर्म में 'त्रिमूर्ति' कहकर संबोधित किया जाता है। इन तीनों देवताओं में से ब्रह्मा जी को सृष्टि के रचयिता, विष्णु जी को पालनहार और भगवान शिव को अधर्मियों का विनाश करने वाला माना जाता है। हिन्दू धर्म के मुताबिक इन तीनों देवताओं की अपनी मान्यताएं और पौराणिक महत्व है जिनके लिए करोड़ों लोग इनकी पूजा करते हैं।

हिंदू धर्म में भगवान शिव का विशेष महत्व है। भारत में भगवान शिव के कई मंदिर हैं और इनमें से कुछ विभिन्न रहस्यों से भी भरे हैं जिनका आजतक पता नहीं चल पाया है। एक ऐसे ही रहस्यमयी मंदिर के बारे में हम आपको बताने जा रहे हैं। दरअसल, यह इकलौता ऐसा मंदिर है जो भगवान शिव व विष्णु को समर्पित है। 

राजस्थान में स्थित है ये मंदिर 

यह मंदिर राजस्थान के हिल स्टेशन माउंटआबू से 65 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इस मंदिर का नाम वानस्थानजी महादेव मंदिर, आबूराज है। इस मंदिर को आबूराज इसलिए कहा जाता है कि क्योंकि अर्बुद पर्वत सर्प पर टिका हुआ है। माना जाता है कि गुरुशिखर के करीब 5,500 साल पुराना यह मंदिर उस समय से है जब यहां 33 करोड़ देवी-देवताओं का आवाहन किया गया था। दुनिया का ये इकलौता मंदिर है जहां भगवान विष्णु से पहले इस मंदिर में भगवान शंकर की पूजा होती है।

नाग के फन पर टिका है ये मंदिर 

यह मंदिर अपने आप में अद्भुत मंदिर है। जैसा कि इस मंदिर को आबूराज मंदिर भी कहा जाता है क्योंकि अर्बुद पर्वत अर्बुद सर्प पर टिका हुआ है। नाग का नाम होने की वजह से ही आबूराज कहा जाता है। अर्बुद पर्वत वह जगह है जहां 33 करोड़ देवी-देवताओं का आवाह्न किया गया था। माना जाता है कि 33 करोड़ देवी देवताओं की एक साथ अरावली पर्वत पर आराधना की गई थी। इसका व्याख्यान आपको स्कंद पुराण के अर्बुद खंड में मिलता है। 

मन्नतें होती हैं पूरी 

यह मंदिर भगवान शिव और विष्णु को समर्पित है जहां दोनों की पूजा की जाती है। ऐसी मान्यता है कि जो भी इस तीर्थ पर आकर कुछ भी मांगता है या मन्नत करता है उसे भगवान शिव व विष्णु का आशीर्वाद मिलता है और मन्नते भी पूरी होती है। 

मंदिर से जुड़ी है ये पौराणिक कथा 

ऐसी मान्यता है कि पौराणिक कथा ये है कि ब्रह्मा, विष्णु और महेश के संयुक्त अवतार भगवान दत्तात्रेय और कई ऋषि मुनियों की तपस्या के बाद 33 करोड़ देवी देवताओं का अरावली पर्वत पर आने का निमंत्रण दिया गया था। 33 करोड़ देवी-देवता अरावली पर्वत पर 11 दिन तक रहे। अर्बुद पर्वत पर भगवान शिव के मेहमान बनकर आए भगवान विष्णु। भगवान शंकर प्रसन्न हो गए।

भगवान शिव व विष्णु ने रातभर अर्बुदांचल की परिक्रमा की। इस बात से भगवान विष्णु प्रसन्न हो गए और उन्होंने घोषणा की कि यहां आपकी पूजा मुझसे पहले होगी। सबसे पहले यहां भगवान शंकर की पूजा होगी और उसके बाद मेरी। इसके बाद से ये मंदिर यहां बना और पूजा भगवान शंकर की पहले होती है। आरती भी भगवान शंकर की पहले होती है और उसके बाद भगवान विष्णु की। भगवान शंकर के सेवाभाव से भगवान विष्णु काफी प्रसन्न हो गए थे और उन्होंने ये व्यवस्था कायम की थी। सदियों पुरानी ये व्यवस्था आजतक चली आ रही है।  

महाशिवरात्रि विशेष पर्व में से एक 

यह मंदिर तीर्थ स्थलों में से एक है। यहां बहुत से लोग भगवान शिव व विष्णु का आशिर्वाद लेने के लिए आते हैं। इस मंदिर में सोमवार के दिन काफी भीड़ देखने को मिलती है। इसके साथ ही इस मंदिर में महाशिवरात्रि पर विशेष आयोजन देखा जा सकता है।ऐसी पौराणिक मान्यता है कि शिवरात्रि, महाशिवरात्रि और सावन के हर सोमवार के दिन यहां भगवान शंकर और भगवान विष्णु की संयुक्त शक्तियां वास करती है।

टॅग्स :भगवान शिवट्रेवलहिंदू धर्मरहस्यमयी मंदिर
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