महानवमी नवरात्रि का अंतिम दिन होता है। इस दिन नौ दिनों तक चलने वाला नवरात्रि पर्व समाप्त हो जाता है। महानवमी के दिन मां सिद्धिदात्रि की पूजा की जाती है। मां सिद्धि के स्वरूप की बात करें तो उनकी चार भुजाएं हैं। वे लाल रंग के वस्त्र पहने हुए कमल के आसन पर विराजमान हैं। उनके एक हाथ में चक्र, दूसरे में गदा, तीसरे हाथ में शंख और चौथे हाथ में कमल पुष्प है। नवमी के दिन कन्या पूजन कर व्रत का पारण किया जाता है।
महानवमी हवन का शुभ मुहूर्त
अभिजित मुहूर्त सुबह - 11:44 AM से 12:30 PM तकरवि योग - सुबह 9:36 बजे से पूरे दिन तक
महानवमी की पूजा विधि
सुबह जल्दी उठकर स्नान ध्यान करें। मां सिद्धिदात्री के लिए प्रसाद तैयार करें। मां को भोग में नौ रस से युक्त भोजन और 9 प्रकार के फूल-फल चढ़ाएं। इसके बाद धूप-दीप जलाएं। नवमी के दिन मां के बीज मंत्र का जाप जरूर करना चाहिए। इससे भक्त की सारी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। इसके साथ ही पूरे विधि-विधान से हवन करना चाहिए। पूजा के समापन में आरती गान करें। 2 से 10 साल की कन्याओं का पूजन करें। उन्हें हलवा-पूरी का भोजन कराना चाहिए और भेंट देकर विदा करना चाहिए। कन्या के साथ एक भैरव देव की पूजा करें।
मां सिद्धिदात्री का मंत्र
या देवी सर्वभूतेषु सिद्धिरूपेण संस्थिता, नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमो नम:.
मां सिद्धिदात्री की आरती
जय सिद्धिदात्री तू सिद्धि की दातातू भक्तों की रक्षकतू दासों की माता,तेरा नाम लेते ही मिलती है सिद्धितेरे नाम से मन की होती है शुद्धिकठिन काम सिद्ध कराती हो तुमहाथ, सेवक, केसर, धरती हो तुम,तेरी पूजा में न कोई विधि हैतू जगदंबे दाती, तू सर्वसिद्धि हैरविवार को तेरा सुमरिन करे जोतेरी मूर्ति को ही मन में धरे जो,तू सब काज उसके कराती हो पूरेकभी काम उस के रहे न अधूरेतुम्हारी दया और तुम्हारी यह मायारखे जिसके सर पैर मैया अपनी छाया,सर्व सिद्धि दाती वो है भाग्यशाली जो है तेरेदर का ही अम्बे सवाली, हिमाचल है पर्वतजहां वास तेरा, महानंदा मंदिर में है वास तेरा,मुझे आसरा है तुम्हारा ही मातावंदना है सवाली तू जिसकी दाता